पटना: एनडीए (NDA) में शामिल होने को लेकर चिराग पासवान (Chirag Paswan) की चर्चा इन दिनों तेज हो गई है. 18 जुलाई को एनडीए की बैठक में चिराग पासवान को बीजेपी ने निमंत्रण भेजा है. चिराग पासवान बीजेपी (BJP) के लिए हमेशा से ही वफादार रहे हैं और बीजेपी भी चिराग पासवान को खास तवज्जो देती है. चिराग का ही खेला का नतीजा था कि 2020 के चुनाव में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी 71 से 43 सीटों पर आ गई थी. वहीं, बीजेपी लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) को लेकर बिहार पर काफी फोकस की हुई है. नीतीश विरोधी सभी नेताओं को भाव दे रही है. इसमें चिराग पासवान पहले से ही पसंदीदा रहे हैं. बिहार में हुए उपचुनाव में बीजेपी चिराग के करामत को देख चुकी है. बीजेपी इसलिए लोकसभा चुनाव में चिराग के बल पर जेडीयू के वोट बैंक एनडीए की तरफ शिफ्ट करने में लगी हुई है.
2020 चुनाव में चिराग नीतीश को कर चुके हैं डैमेज
2020 विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने 135 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया और ज्यादातर ऐसी सीटों पर उम्मीदवार दिए जहां से जेडीयू के उम्मीदवार मैदान में थे. हालांकि यह भी कहा गया कि वे यह सब बीजेपी के इशारे पर कर रहे थे. नतीजा यह हुआ कि करीब 6 फीसदी वोट पा कर खुद की पार्टी को तो नहीं जीत दिला पाए लेकिन जेडीयू की सीटों की संख्या पिछले चुनाव के मुकाबले 28 कम करने में वे सफल रहे. जेडीयू 43 सीटों पर ही जीत सकी. जेडीयू 71 से 43 सीटों पर आ गई. चिराग के इस खेल से नीतीश कुमार को काफी नुकसान हुआ था.
तेजस्वी को चिराग देंगे टक्कर
चिराग पासवान की पार्टी लोजपा रामविलास की बिहार में दलित सीटों पर मजबूत जनाधार है. 2014 और 2019 के चुनाव में लोजपा खुद बिहार की 6 सीटों पर जीत हासिल की. साथ ही 6-7 सीटों पर बीजेपी की मदद भी की. लोजपा का खगड़िया, मधेपुरा, वैशाली, मधुबनी, बेगूसराय, जमुई, समस्तीपुर और बेतिया में मजबूत जानाधार है. पार्टी टूटने के बाद से ही चिराग पासवान लोगों के बीच है. लोजपा का कोर वोटर पासवान है, जिसकी आबादी 4-5 प्रतिशत के आसपास है. वहीं, चिराग पासवान की बिहार में युवा नेता के रूप में काफी लोकप्रियता है. बीजेपी को तेजस्वी को टक्कर देने के लिए एक मजबूत साथी की जरूरत है, जो अभी चिराग ही बीजेपी को दिख रहे हैं. चिराग में वो पूरा दमखम है जो महागठबंधन के लिए परेशानी के खड़ा कर सकते हैं. 2022 में बिहार में तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. इसमें दो सीटों पर बीजेपी की जीत हुई. इस चुनाव में चिराग पासवान बीजेपी के लिए प्रचार-प्रसार किए थे. महगठबंधन को सिर्फ अनंत सिंह की सीट पर जीत हासिल हुई थी.
चिराग के परंपरागत वोट पर बीजेपी की है नजर
चिराग पासवान के जरिए बीजेपी की नजर रामविलास पासवान की विरासत से जुड़े उस वोट बैंक पर है, जो एलजेपी के साथ जुड़ा रहा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी एनडीए की सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ती है और दोनों ही बार 6-6 सीट जीतने में कामयाब हो जाती है. 2014 में एलजेपी का वोट शेयर 6.4% और 2019 में 7.86% रहता है. पासवान जाती में एलजेपी की पकड़ है. बीजेपी को पूरा एहसास है कि एलजेपी का परंपरागत वोट बैंक चिराग के साथ ही रहेगा. इसलिए बिहार के जातीय समीकरणों के लिए लिहाज से जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन की तोड़ के लिए बीजेपी चिराग को खुलकर अपने साथ लाना चाहती है.
बिहार में समीकरण बनाने में जुटी बीजेपी
अभी के समीकरण के हिसाब से आरएलजेडी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए के साथ हैं. कुशवाहा समाज में उपेंद्र कुशवाहा की अच्छी पकड़ है. इससे जेडीयू के वोट बैठक बैक एनडीए की तरफ शिफ्ट होते दिख रहा है. इसके साथ ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम (से) के संरक्षक जीतन राम मांझी भी एनडीए के पाले में आ चुके हैं. 2020 में हम को 0.89 फीसदी वोट मिले, जबकि 4 सीटों पर जीत हुई. मांझी बिहार में मुसहर समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं. जीतन राम मांझी के मुताबिक बिहार में मुसहर जातियों की आबादी करीब 55 लाख हैं. हालांकि, सरकारी आंकड़े में यह 30 लाख से कम है. वहीं, इस सब से एनडीए को लाभ मिलेगा. बीजेपी आरजेडी के एमवाई समीकरण के तोड़ के लिए चिराग, उपेंद्र और मांझी के सहारे दलित और पिछड़ा समीकरण बनाना चाहती है, जो सीधे-सीधे बीजेपी को फायदा पहुंचेगा.
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