पटना: पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने रविवार को समान नागरिक संहिता का समर्थन करते हुए कहा कि जब भारतीय दंड संहिता (IPC) में सभी धर्म के लोगों के लिए सजा का कानून समान है, तब विवाह, तलाक, गुजारा-भत्ता से संबंधित नागरिक कानून में समानता क्यों नहीं होनी चाहिए? दुनिया के अधिकतर देशों में नागरिक कानून सबके लिए समान हैं, लेकिन भारत में धर्म-विशेष के वोट-बैंक की राजनीति करने वाले लोग समान नागरिक संहिता का विरोध करते हैं. बात-बात पर संविधान की दुहाई देने वाले विपक्षी दल संविधान की धारा - 44 की चर्चा क्यों नहीं करते, जिसमें देश की निर्वाचित सरकार से समान नागरिक संहिता लागू करने की अपेक्षा की गई है? 


आधी आबादी को बड़ी राहत मिलेगी- सुशील कुमार मोदी 


सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी आधा दर्जन से अधिक मामलों में सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही. समान नागरिक संहिता लागू होने से आधी  आबादी को बड़ी राहत मिलेगी और धर्म के नाम पर उनके समानता के अधिकारों का हनन नहीं हो सकेगा. भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में जब किसी का धर्म देख कर सजा तय नहीं होती, तब पारिवारिक मामलों में धार्मिक पहचान के आधार पर अलग-अलग कानून क्यों होने चाहिए? 


विधि आयोग ने मांगी सभी हितधारकों से राय


बता दें कि समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग ने सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित सभी हितधारकों से राय मांगी है. इसी के साथ विधि आयोग ने बुधवार को समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से परामर्श प्रक्रिया शुरू कर दी है. दरअसल केन्द्र सरकार समान नागरिक संहिता को पूरे देश में लागू करना चाहती है. सरकार जस्टिस देसाई कमेटी की रिपोर्ट के मंजूरी मिलने का इंताजर किए बगैर इससे जुड़ी सभी प्रक्रियाएं पूरी कर लेना चाह रही है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सरकार लोकसभा चुनावों से पहले इसे लागू करने की तैयारी में है.


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