पटना: बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा का चुनाव होना है लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसपर अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं. एलजेपी और आरजेडी जैसी पार्टियों ने चुनाव आयोग को लिखित तौर पर बताया है कि फिलहाल राज्य में चुनाव करवाए जाने जैसे हालात नहीं हैं. हालांकि चुनाव समय पर करवाया जाए या नहीं उसको लेकर बीजेपी अपना रुख तय नहीं कर पाई है. इस उहापोह को खत्म करने के लिए पार्टी अब अपने स्थानीय नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं से राय मांग रही है.


चुनाव आयोग ने मांगा है सुझाव
पार्टी की ओर से राय मांगे जाने की वजह है चुनाव आयोग. आयोग ने सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से पूछा था कि कोरोना महामारी में चुनाव करवाए जाने को लेकर उनका क्या पक्ष है. ये भी पूछा गया था सरकार की ओर से जारी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए चुनाव कैसे करवाए जा सकते हैं. सभी दलों से 31 जुलाई तक अपनी राय देने को कहा गया था जिसे अब 11 अगस्त तक बढ़ा दिया गया है.


पूछे गए हैं कई सवाल
एबीपी न्यूज को मिली जानकारी के मुताबिक, कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए एक प्रश्नावली तैयार की गई है. प्रश्नावली में पूछा गया है कि कोरोना काल में चुनाव करवाया जाए या नहीं? कार्यकर्ताओं से बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों का भी फीडबैक देने को कहा गया है. कार्यकर्ताओं से ये बताने को कहा गया है कि पीएम गरीब कल्याण योजना का लाभ लोगों तक पहुंचा है या नहीं. महामारी के समय पार्टी का पूरा जोर वर्चुअल तरीके से चुनाव अभियान पर केंद्रित रहने वाला है लेकिन सभी कार्यकर्ताओं से पूछा गया है कि क्या कोई वैकल्पिक तरीका भी हो सकता है?


कार्यकर्ता चुनाव टालने के पक्ष में
सूत्रों की मानें तो बड़ी तादाद में कार्यकर्ताओं और नेताओं ने फिलहाल चुनाव टालने के पक्ष में अपनी राय दी है. उनका तर्क है कि कोरोना और बाढ़ के मामले में नीतीश सरकार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है जिसके चलते लोगों के एक बड़े वर्ग में नाराजगी है. ऐसे में अगर समय से चुनाव हुए तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. इन कार्यकर्ताओं ने पार्टी को चेताया कि बीजेपी को महामारी का नुकसान ज़्यादा उठाना पड़ सकता है क्योंकि शहरी इलाकों के मतदाता वोट देने के लिए बाहर निकलने में हिचकिचाएंगे. शहरी इलाकों में बीजेपी की अच्छी पकड़ मानी जाती है.


जिलावार लिया जा रहा है फीडबैक
पार्टी ने जिला स्तर पर अपने सभी जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों से उनका विचार लेने का फैसला किया है. इसके लिए राज्य स्तर के संगठन पदाधिकारियों को काम पर लगाया गया है. इसके लिए सभी संगठन पदाधिकारियों के बीच जिले का बंटवारा किया गया है. जिले में पड़ने वाले लोकसभा क्षेत्रों को आधार बनाकर कार्यकर्ताओं और नेताओं की राय ली जा रही है.


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