पटना: राजधानी पटना के बापू सभागार में शुक्रवार (25 अगस्त) को बसपा का पिछड़ा-अति पिछड़ा अधिकार सम्मेलन होने जा रहा है. दोपहर 2.30 बजे से कार्यक्रम है. पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद (Akash Anand) इसका उद्घाटन करेंगे. पार्टी के बिहार प्रदेश प्रभारी अनिल कुमार ने यह जानकारी दी है. कहा कि अति पिछड़ों के साथ नाइंसाफी हो रही है. वास्तविक हक नहीं मिल पा रहा. जेडीयू-आरजेडी या बीजेपी सबने इनके साथ छल किया है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में यहां मायावती (Mayawati) का कितना असर होगा? क्या सियासी मायने हैं?
अभी जुलाई में ही नालंदा के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में प्रशिक्षण हुआ था. इसमें पूरे प्रदेश से पार्टी के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता शामिल हुए थे. अब एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भतीजे आकाश आनंद पटना में पिछड़ों अति पिछड़ों की बात करने आ रहे हैं. इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं भी हैं.
पार्टी पहले ही कह चुकी- 40 सीटों पर उतारेगी उम्मीदवार
कुछ ही महीनों में लोकसभा का चुनाव होना है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. बहुजन समाज पार्टी पहले ही एलान कर चुकी है कि वह अकेले 2024 के लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. बिहार में सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारेगी.
बीएसपी करती है 2024 की तैयारी तो किसे नुकसान?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीएसपी अगर बिहार में तैयारी करती है तो इसके वोट बैंक में इजाफा हो सकता है. ऐसे में इसका सीधा नुकसान महागठबंधन को होगा. जो दलित वोट बीएसपी का है वह पहले महागठबंधन का ही था क्योंकि उन वोटों पर पहले कभी वामदल तो उसके बाद जेडीयू का कब्जा रहा है. कुछ सालों तक आरजेडी का भी उन वोटों पर कब्जा रहा है. बीजेपी को इसका फायदा मिलेगा क्योंकि महागठबंधन के वोट में बिखराव होने से भारतीय जनता पार्टी को कई जगह जीत हासिल हो सकती है.
मायावती की पार्टी के बिहार में अभी भी साइलेंट वोटर हैं. बीएसपी का बिहार में बहुत बड़ा जनाधार नहीं है लेकिन उनके कैडर वोटर हैं जो किसी पार्टी का खेल बना सकते हैं और बिगाड़ सकते हैं. बीएसपी पहले भी बिहार में चार सीटें जीत चुकी है. साल 2020 में भी एक विधानसभा सीट पर जीत दर्ज हुई थी तो कई जगहों पर अच्छे वोट मिले थे.
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