Buxar News: बिहार के बक्सर से एक अनोखा मामला सामने आया है. पांच पीढ़ी के बाद एक दंपती सोमवार (04 नवंबर) को फिजी से बक्सर लौटा. कई वर्षों के अथक प्रयास के बाद अपने पूर्वजों की जन्मस्थली पहुंचे दंपती के चेहरों पर खुशी थी तो वहीं परिवार के अन्य सदस्य थोड़े भावुक हो उठे. अपने पूर्वजों की धरती पर आकर अनिल कुमार और उनकी पत्नी नाज के चेहरे देखने लायक थे. 


अंग्रेजी शासन काल के दौरान, 1892 के आसपास बक्सर जिले के कई लोगों को सरकार ने गिरमिटिया मजदूर बनाकर फिजी भेजा था. इनमें से कई परिवार अपने पैतृक गांव से बिछड़ गए और वर्षों तक उनका कोई संपर्क नहीं रहा. स्थानीय गांव के मुखिया अरविंद यादव ने बताया कि आज के वक्त में विदेश में रहकर भी अपनी भारतीय संस्कृति से जुड़े रहना यह अपने आप में एक मिसाल है. यह देखकर हमें आश्चर्य हुआ. 


कैसे हुई परिवार की पहचान?


अरविंद यादव ने यह भी बताया कि जब अपने परिवार से मिले तो भावुक होकर रोने लगे. अपनी मिट्टी से जुड़े रहने का यह एक मिसाल देखने को मिला है. इस दंपती ने अपने दादा की तस्वीर और परिवार की पुरानी कहानियों के माध्यम से अपने वंशज (पूर्वजों) की पहचान की. वर्षों की खोजबीन के बाद वे अंततः बक्सर के केसठ गांव पहुंचे. गांव में लोगों ने स्वागत किया. 


जैसे-जैसे बड़े हुए... वैसे-वैसे खोजबीन शुरू


गांव आने वाले अनिल कुमार ने बताया कि बचपन से हमने कहानी सुनी थी कि हमारे पूर्वज भारत में बिहार राज्य के बक्सर जिले के केसठ के रहने वाले हैं. जैसे-जैसे हम बड़े होते गए वैसे-वैसे हमने खोजबीन शुरू की. पिछले दो साल से जानकारी मिली गांव के बारे में, तो हमने भारत के लिए टिकट बुक कराया और चले आए. 


अनिल कुमार ने कहा कि हमने अयोध्या में दिवाली मनाई और वहां से अपने गांव पहुंचे. यह हमारे लिए एक तीर्थ स्थल से कम नहीं है. गांव आने पर परिवार के लोगों से मुलाकात हुई. यह बेहद खुशी का वक्त था. पत्नी नाज ने बताया कि हमने जो सपना देखा था वह आज सच हुआ. अपना गांव देखने के लिए चले थे यहां तो हमें परिवार भी मिल गया. ऐसे में बेहद खुशी हो रही है. 


वहीं गांव के उनके चाचा छट्ठू पंडित ने बताया कि हम लोग भी सुने थे कि हमारे पूर्वज यहां से विदेश गए हैं, मगर आज उनसे मुलाकात हुई है. हमें बेहद खुशी मिल रही है.


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