Caste Census: जातीय जनगणना पर CM नीतीश से सुशील मोदी का सवाल, कैबिनेट निर्णय के सात महीने बाद शुरू क्यों?
Bihar News: पूरे बिहार में नीतीश सरकार जातीय जनगणना कराने जा रही है. इसको लेकर बीजेपी से राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी कई सवाल खड़े कर रहे हैं.
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पटना: जातीय जनगणना सात जनवरी से शुरू होने जा रही है. इसको लेकर प्रशासनिक तैयारियां भी पूरी हो चुकी है. वहीं, इस मुद्दे पर राजनीति भी होती रही है. इसको लेकर बीजेपी से राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने शुक्रवार को नीतीश सरकार पर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि बीजेपी जातीय जनगणना के समर्थन में है. दो जून 2022 को ही इसे कराने को लेकर कैबिनेट की बैठक निर्णय में लिया गया था, लेकिन इसे कराने सात महीने लग गए और अभी तो सिर्फ इसमें मकानों की सूची बनाई जाएगी. वहीं, उन्होंने कहा कि सभी पार्टियों को इसकी जानकारी देनी चाहिए.
'सात महीने का समय क्यों लगा'
सुशील मोदी ने कहा कि जब दो जून 2022 को निर्णय ले लिया गया था फिर इसे कराने में सात महीने का समय क्यों लगा? 2010 में समाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना हुई थी. बीजेपी ने समर्थन किया था लेकिन उस जनगणना क्या हुआ? जिसमें पांच हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. इस जनगणना में प्रदेश में 46 लाख जातियां पाई गई. इस रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. बिहार जातीय जनगणना कराने वाला पहला राज्य नहीं है.
मुख्यमंत्री पूरी तरह से डरे हुए हैं- सुशील मोदी
आगे सुशील मोदी नीतीश कुमार की 'समाधान यात्रा' पर निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बंद कमरे में बैठक करेंगे. सार्वजनिक कोई कार्यक्रम नहीं करेंगे. मुख्यमंत्री पूरी तरह से डरे हुए हैं. सचिवालय सहायक पद के परीक्षार्थियों और शिक्षक अभ्यर्थियों में व्याप्त रोष के डर से नीतीश कुमार की यात्रा के दौरान चंपारण में सैंकड़ों युवाओं को हाउस-अरेस्ट रखा गया. क्या युवाओं को घरों में नजरबंद करना समस्या का समाधान है? राजधानी में परीक्षार्थियों पर लाठीचार्ज को जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह जायज ठहरा रहे हैं और घटना के 48 घंटे बाद मुख्यमंत्री और गृह विभाग के मंत्री नीतीश कुमार कह रहे हैं कि उन्हें लाठीचार्ज की जानकारी ही नहीं.
'मुख्यमंत्री की रुचि समस्या का समाधान करने में नहीं'
बीजेपी नेता ने कहा कि पहले बीपीएससी का पर्चा लीक हुआ और आठ साल बाद जब सचिवालय सहायक पद के लिए परीक्षा हुई, तो इसके भी प्रश्नपत्र सार्वजानिक हो गए. इससे नौ लाख परीक्षार्थियों में असंतोष होना स्वाभाविक है. उनकी उम्र बढ़ रही है. बिहार में बार-बार पर्चे क्यों लीक हो रहे हैं? परीक्षार्थी अब यदि पूरी परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं, तो सरकार इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों बना रही है? बिहार सरकार फूलप्रूफ परीक्षाओं के लिए केंद्र सरकार की तरह टीसीएस जैसी साफ्टवेयर कंपनियों की सेवाएं ले सकती है, लेकिन मुख्यमंत्री की रुचि किसी समस्या का समाधान करने में नहीं, 'समाधान यात्रा' की राजनीति करने में है.
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