पटना: जातीय जनगणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर की गई याचिका पर गुरुवार (4 मई) को पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने फैसला सुनाया है. बिहार सरकार (Bihar Government) के फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि तीन दिन में सुनवाई कर पटना हाई कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश दे. बिहार सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही पटना हाई कोर्ट में अपनी दलील रख रहे थे. अब नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है.
पटना हाई कोर्ट ने कहा है अगली सुनवाई तीन जुलाई को होगी. तब तक कोई डाटा सामने नहीं आएगा. याचिकाकर्ता के वकील ने एबीपी न्यूज़ को यह जानकारी दी है. बताया गया है कि कोर्ट ने कहा है कि इसमें तीन जुलाई को डिटेल में सुनवाई होगी. फिलहाल कोर्ट से यह निर्णय आने के बाद कहीं न कहीं नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है. हालांकि अब तीन जुलाई के बाद देखना होगा कि कोर्ट का निर्णय क्या होता है. हाई कोर्ट ने अब तक के डेटा को सुरक्षित रखने के लिए कहा है.
याचिका में क्या कहा गया है?
दरअसल, याचिका में कहा गया है कि जाति आधारित गणना में लोगों की जाति के साथ-साथ उनके कामकाज और उनकी योग्यता का भी ब्यौरा लिया जा रहा है. ये उनकी गोपनीयता के अधिकार का हनन है. याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार को जाति गणना कराने का संवैधानिक अधिकार नहीं है. साथ ही इस पर खर्च हो रहे 500 करोड़ रुपये भी टैक्स के पैसों की बर्बादी है.
इससे पहले हाई कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि जातीय गणना कराना सरकार के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं? इस गणना का उद्देश्य क्या है? क्या इसे लेकर कोई कानून भी बनाया गया है? आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है? सरकार की ओर से कोर्ट में महाधिवक्ता पीके शाही ने कहा था कि जन कल्याण की योजनाओं के लिए गणना कराई जा रही है. इस गणना से सरकार को गरीबों के लिए नीतियां बनाने में आसानी होगी.
बता दें कि बिहार में जनवरी 2023 में जातीय जनगणना का काम शुरू हुआ था. दूसरे चरण का काम 15 अप्रैल से लेकर 15 मई तक होना था. पहले चरण में मकानों की गिनती की गई थी. दूसरे चरण में जनगणना अधिकारी घर-घर जाकर लोगों की जाति के अलावा उनके आर्थिक ब्यौरे की जानकारी जुटा रहे थे.
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