पटना: बिहार में हुए जाति आधारित गणना की रिपोर्ट पर बवाल मचा हुआ है. अलग-अलग जातियों की तरफ से अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. सूबे की हर बिरादरी ने अपनी अपनी संख्या और हिस्सेदारी को लेकर खोजबीन शुरू कर दी है. गणना के मुताबिक करीब 82 फीसदी हिंदू हैं, जबकि लगभग 18 फीसदी संख्या मुसलमानों की है. इसमें अपर कास्ट, पिछड़ा, अति पिछड़ा और अनुसूचित जाति शामिल है.
मुस्लिम के 18% में लगभग साढ़े चार प्रतिशत अपर कास्ट है तो वही पसमांदा मुस्लिम की संख्या बहुत ज्यादा है. पहले से यह सवाल उठते रहे हैं कि हिंदू में अपर कास्ट की संख्या कम है लेकिन हर मामलों में उनकी भागीदारी ज्यादा है. वहीं गणना की जो रिपोर्ट आई है उसके मुताबिक मुसलमानों में भी करीब 75 फीसदी आबादी पिछड़े मुसलमानों की है.
इस कड़ी में ये जानने की कोशिश की गई है बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन इमारत-ए-शरिया में मुसलमानों की किस बिरादरी का कब्जा है और क्या यहां पिछड़े मुसलमानों को जगह मिलती है. इमारत-ए-शरिया पहुंचे एबीपी न्यूज़ के रिपोर्टर से संगठन के किसी भी अधिकारी ने ऑन रिकॉर्ड बात नहीं की, लेकिन बातचीत में अलग-अलग लोगों ने दावे किए. उनके मुताबिक इमारत-ए-शरिया में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष सदस्य सहित कर्मचारियों में भी करीब 80 फीसदी अपर कास्ट के हैं.
'धार्मिक संस्था है इस पर कुछ नहीं बोला जा सकता'
पटना के फुलवारी शरीफ में स्थित इमारत-ए-शरिया के सेक्रेटरी मोहम्मद शिबली ने इन बातों को मीडिया के सामने शेयर करने से इनकार किया और कहा किया धार्मिक संस्था है इस पर कुछ नहीं बोला जा सकता है. जातीय गणना तो सरकार का मामला था इसलिए हम लोग को अपनी जाति बतानी पड़ी लेकिन ऐसे हम लोग शेयर नहीं कर सकते हैं. हालांकि, इमारत-ए-शरिया के आसपास रहने वाले कुछ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ऑफ रिकॉर्ड बताया कि इस संगठन में सभी पदों पर अपर कास्ट के ही लोग हैं और यह दशकों से चला आ रहा है.
'दिक्कत नहीं... चली आ रही पुरानी परंपरा'
इमारत-ए- शरिया में सिर्फ अपर कास्ट के ही मुस्लिम का दबदबा क्यों इस पर मुस्लिम में पिछड़ा जाति से आने वाले अंसारी समाज के पटना के पूर्व पार्षद और वर्तमान में जेडीयू के अल्पसंख्यक महिला प्रकोष्ठ की नेत्री गुलफिशा जबी ने यह स्वीकार किया कि धार्मिक संस्थाओं या मस्जिद मजारों में सभी जगह पर उच्च कास्ट के लोग ही रहते हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि इससे हम लोग को कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि यह पुरानी परंपरा चली आ रही है और हम लोग सैयद, शेख को पूजनीय मानते हैं. हमारे पूर्वज से ही धार्मिक या सामाजिक संस्थाओं पर बड़े ओहदे पर अपर कास्ट के लोग ही रहते आए हैं. इमारत-ए-शरिया में भी सभी बड़े ओहदे या कमेटी में अपर कास्ट के लोग हैं परंतु कोई दिक्कत नहीं है सभी लोग मुस्लिम हैं.
क्या कहते हैं पूर्व सांसद अली अनवर?
वहीं पसमांदा मुस्लिम समाज से आने वाले पूर्व सांसद अली अनवर ने भी इमारत-ए-शरिया में अपर कास्ट के दबदबे की बात को सही माना. उन्होंने कहा कि जितनी भी मुस्लिम संस्थाएं हैं या मस्जिद मजार हैं, हर जगह पर अपर कास्ट के लोग ही हैं, बड़े ओहदे पर उनका ही अधिकार होता है. उन्होंने कहा कि इसका विरोध हम बहुत पहले से करते आ रहे हैं.
अली अनवर ने कहा कि उन्होंने 2009 में ही राज्यसभा में जातीय गणना करने की मांग की थी. नीतीश कुमार जी ने जातीय गणना कराया बहुत खुशी हुई. अब आंकड़े निकलकर आ गए हैं इसमें 80 फीसदी पसमांदा समाज और पिछड़ा समाज के लोग हैं. इमारत-ए- शरिया में 80 नहीं कहा जाए तो 99% अपर कास्ट के लोग ही हैं. कुछ छोटे पदों पर पसमांदा, अंसारी या अन्य पिछड़े वर्ग के लोग हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि अब आंकड़ा आ गया हैं तो अब हम लोग हिस्सेदारी की भी बात करेंगे और निश्चित तौर पर यह लड़ाई आगे लड़ी जाएगी.
अली अनवर ने कहा कि राजनीतिक तौर पर भी मुस्लिम में अपर कास्ट की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है तो सबसे पहले हमारी मांग होगी कि राजनीतिक तौर पर हिस्सेदारी ज्यादा हो. उसके बाद धार्मिक तौर पर भी हमारी हिस्सेदारी खुद ज्यादा हो जाएगी.
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