छठ पूजा बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाला एक बेहद खास त्योहार है. उत्तर भारत के लिए यह त्योहार महत्वपूर्ण होता है. छठ पूजा कार्तिक महीने की छठवें मनाया जाता है. यह त्योहार नहाय खाय के साथ शुरू होता है. इस दौरान महिलाएं 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं. पूरे उत्साह के साथ महिलाएं छठी मैया की पूजा करती हैं. यह त्योहार कई मान्यताओं से जुड़ी हुई है. महिलाएं अच्छी फसल, परिवार की सुख-समद्धि, संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मैया को ब्रह्मा की मानसपुत्री और भगवान सूर्य की बहन माना गया है. छठी मैया निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं. इसके अलावा संतानों की लंबी आयु के लिए महिलाएं यह पूजा करती हैं.
छठ पूजा मनाने का कारण
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को यह व्रत रखने और पूजा करने की सलाह दी थी. दरअसल महाभारत के युद्ध के बाद अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे का वध कर दिया गया. तब उसे बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को षष्ठी व्रत (छठ पूजा) का रखने के लिए कहा.
2021 के छठ पूजा का शुभ मुहूर्त
- हिंदू पंचांग के मुताबिक छठ पूजा कार्तिक माह की षष्ठी से शुरू हो जाता है. यह पर्व चार दिनों चलता है.
- साल 2021 में छठ पूजा 8 नवंबर से शुरू हो रहा है.
- इसके अगले दिन यानी 9 नवंबर को दिन खरना, 10 नवंबर को सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और अंत में 11 नवंबर की सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही यह पर्व समाप्त हो जाएगा.
- इस त्योहार का नियम सख्त है. व्रती महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं. इसके अलावा पूजा स्थल को गोबर से लीपा जाता है.
नहाय खाय
चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार का पहला दिन नहाय खाय होता है. व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन चने की सब्जी, चावल और साग का सेवन करती हैं.
खरना
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना होता है. इस दौरान महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं. शाम के वक्त गुड़ से बनी खीर खायी जाती है. यह खीर मट्टी के चूल्हे पर बनाई जाती है. सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत रखने वाली महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं.
छठ पूजा का तीसरा दिन
छठ पूजा का तीसरा दिन खास होता है. इस दिन महिलाएं शाम के समय नदी या तालाब के पास जाकर छठी मैया की पूजा और सूर्यास्त के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
छठ पूजा का अंतिम दिन
छठ पूजा के चौथे दिन महिलाएं सुबह के समय नदी या तालाब के पास जाती हैं और पानी में उतरकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देती है. अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाए सात या ग्यारह बार अपने स्थान पर परिक्रमा करती हैं. इसके बाद एक-दूसरे को प्रसाद देकर अपना व्रत खोलती हैं.
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