बांका: समुद्र मंथन का एकमात्र साक्षी और अनेकों ऐतिहासिक एवं धार्मिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध स्थल मंदार पर स्थित एक कुंड में माता सीता ने अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान छठ किया था. आज भी मंदार पर्वत के मध्य में सीताकुंड अवस्थित है, जहां माता सीता ने छठ किया था. कई धर्म ग्रथों में भी इस बात का उल्लेख है. छठ पूजा के अवसर पर मंदार स्थित पापहरणी तालाब पर आसपास सहित झारखंड के गोड्डा तक से लोग पूजा करने के लिए आते हैं.
धर्म ग्रंथों के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपनी पत्नी सीता के साथ त्रेतायुग में वनवास के क्रम में मंदार आए थे. उन्होंने मंदार को नरेश कहकर उसपर आरोहण किया था. यहीं पर्वत के जिस जलकुंड में माता सीता ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया था, उसका नाम तब से सीताकुंड पड़ गया. पद्मश्री चितु टूडू सहित कई लेखकों ने अपने लेख में राम-सीता के वनवास के दौरान मंदार आगमन का उल्लेख किया है. इसमें जनक नंदनी सीता की बहन कापरी का भी उल्लेख है. माता सीता द्वारा मंदार के जलकुंड में स्नान कर स्कंद माता सहित सूर्यदेव का व्रत करने की भी पुस्तक में जिक्र है.
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श्राप से मुक्ति के लिए पुत्र राम ने किया था पिंड दान
वाल्मीकि रामायण में भी राम के मंदार सहित मुंगेर के सीताचरण एवं कष्टहरणी जैसे स्थलों पर आने का वर्णन है. मंदार में राम के आने की बात स्कंद पुराण में भी है. इसमें राजा दशरथ का पिंड दान करने के लिए राम को अंग जनपद के तीर्थ मंदार में आमंत्रित करने की कहानी वर्णित है. क्योंकि मातृ-पितृभक्त पुत्र श्रवण कुमार की हत्या को लेकर राजा दशरथ को मिला श्राप इतना भयंकर था कि दुनिया का कोई भी तीर्थ उन्हें इस श्राप से मुक्ति नहीं दिला सकता था. इसी कारण भगवान राम ने अंत में मंदार में उनका पिंडदान किया था, इसके बाद उन्हें मुक्ति मिल सकी थी.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीताचरण में भी माता सीता ने छह दिनों तक रहकर छठ किया था. ऐसा पौराणिक मान्यता है कि माता सीता अयोध्या से निर्वासित होने के बाद भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित वाल्मीकि आश्रम में रही थीं. उस दौरान उन्होंने वाल्मीकिनगर में नारायणी नदी के तट पर छठ किया था. नारायणी नदी तट स्थित लव-कुश घाट पर आज भी लोग धूमधाम से छठ करते हैं.
राम व सीता के मंदार आगमन का कई ग्रथों में है जिक्र
डीएन सिंह महाविद्यालय भूसिया रजौन के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. प्रताप नारायण सिंह ने बताया कि भगवान राम एवं माता सीता की मंदार आगमन की चर्चा कई धर्म ग्रथों में भी अंकित है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में भगवान श्रीराम के मंदार के कई स्थलों पर आने की चर्चा है.
डीएन सिंह महाविद्यालय भूसिया रजौन के प्राचार्य सह इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. जीवन प्रसाद सिंह ने बताया कि कालीदास ने भी अपने प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ कुमार संभवम में मंदार पर्वत को सूर्यदेव का स्थाई निवास स्थल माना है. ऐसे में सूर्य उपासना का व्रत करना मंदार के सीताकुंड को और अति महत्वपूर्ण बनाता है. इसी कारण छठ महापर्व पर यहां अर्घ्य देने का अलग ही महत्व है.