Chirag Paswan Exclusive: चिराग पासवान ने 'चाचा' पर उठाए सवाल, खुद बताया क्यों गए थे अहमदाबाद
चिराग पासवान ने कहा कि मेरे पिता रामविलास पासवान ने हमेशा पार्टी को साथ लेकर चला. उनके जाने के बाद चाचा को भी पार्टी को साथ लेकर चलना चाहिए था.
पटनाः जब अपनों ने साथ नहीं दिया तो मैं दूसरी पार्टियों पर अंगुली उठाने की हैसियत नहीं रखता. अगर मेरे परिवार वालों का आज साथ होता तब ही मैं दूसरों के बारे में आज सोचता. यह बातें एलजेपी सांसद चिराग पासवान ने कही. वे एबीपी न्यूज से रविवार को खास बातचीत कर रहे थे.
सांसद चिराग पासवान ने कहा, “पापा (रामविलास पासवान) हमेशा कहते थे कि हर बड़ी समस्या का हल बातचीत से हो सकता है. जब मेरे चाचा (पशुपति पारस) को पार्टी से अलग होना था तो किसी ने मुझसे बात तक नहीं की. अगर मेरे चाचा या भाई किसी ने बात की होती तो आज समस्या का हल हो सकता था.”
बातचीत के दौरान एक सवाल पर चिराग पासवान ने कहा कि मेरे पिता रामविलास पासवान ने हमेशा पार्टी को साथ लेकर चला. उनके जाने के बाद चाचा को भी पार्टी को साथ लेकर चलना चाहिए था. मैं उनका बेटा हूं, वो मुझे बैठाते बात करने के लिए. अगर उनको मंत्री बनना था तो वो खुद कहते. मैं पार्टी से बात कर उनके नाम के लिए ही सुझाव देता.
‘पार्टी में हर फैसला सबकी सहमति से लिया गया’
चिराग पार्टी में अकेले फैसला लेते हैं वो किसी से बात नहीं करते हैं, इसपर जवाब देते हुए चिराग पासवन ने कहा कि पशुपति पारस एक फैसला बता दें जिसे उन्होंने अकेले लिया हो. चुनाव की रणनीति और टिकट के बंटवारे तक सबकी राय ली गई थी. सभी सांसदों में नाराजगी थी जिसके बाद पार्टी ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला लिया था.
चिराग पासवान ने कहा, “मैं अकेले फैसले लेता तो 95 प्रतिशत पार्टी के लोग आज मेरे साथ नहीं होते. अगर अकेले मैंने सबकुछ किया है तो चाचा को बैठाकर पूछना चाहिए था, वो मुझे डांटते. पापा खुद भी चाहते थे कि एलजेपी अकेले चुनाव लड़े. क्योंकि नीतीश कुमार ने भी पापा को धोखा दिया है.
‘व्यक्तिगत तौर पर नीतीश कुमार से बैर नहीं’
नीतीश कुमार से बैर और बीजेपी के साथ, इस सवाल पर चिराग पासवान ने कहा कि उनके संस्कारों में बैर कहीं नहीं है. उन्हें नीतीश कुमार की नीतियों से नाराजगी है. व्यक्तिगत तौर पर कोई बैर नहीं है. जब भी नीतीश कुमार मिलेंगे मैं उनका पैर छूकर ही आशीर्वाद लूंगा.
नीतीश कुमार की सात निश्चय योजना को लेकर चिराग ने कहा कि वो नहीं जानते कि सात निश्चय से बिहार का कितना विकास हो पाएगा. मुख्यमंत्री नली गली बनाने की योजना बनाते हैं, लेकिन प्रदेश के युवा बाहर जाकर पढ़ाई करते हैं और वहीं नौकरी करते हैं. मां-बाप जब बुढ़े हो जाते हैं तब वे उनका हाल-चाल लेने के लिए गांव जाते हैं. आज भी बिहार में पलायान नहीं रुका है. वो दो घंटे के ऑपरेशन के लिए खुद दिल्ली जाते हैं हजार किलोमीटर. अगर बिहार के किसी बुजुर्ग को जाना हो तो कैसे जाएगा हजार किलोमीटर.
अहमदाबाद के दौरे को लेकर कहा कि यह उनका पर्सनल ट्रिप था. इसे राजनीति से जोड़कर ना देखा जाए. जो भी कयास लगाए जा रहे हैं उसका कहीं से कोई मतलब नहीं है.
एक सवाल पर कि तेजस्वी ने कहा है कि डेढ़ से दो महीने में बिहार में सरकार गिर जाएगी इस पर कहा कि वो इस बात से सहमत हैं. क्योंकि पटना के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद उन्होंने कहा था कि यह सरकार डेढ़ से दो साल चलने वाली है.
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