पटना: बिहार सरकार ने सोमवार (2 अक्टूबर) को जातीय गणना का आंकड़े (Bihar Caste Survey) जारी कर दिए हैं जिसके बाद सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) मंगलवार (3 अक्टूबर) को 3:30 बजे सीएम आवास पर नौ दलों के साथ बैठक करेंगे. जातीय गणना के जारी आंकड़ों पर चर्चा होगी. राज्य सरकार सभी पार्टियों के सामने रिपोर्ट रखेगी और आर्थिक सर्वेक्षण पर भी चर्चा की जा सकती है.
बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सोमवार को कहा था कि जिनकी जितनी आबादी है उसके अनुसार उनको उतना हक मिलना चाहिए जिसके बाद बिहार में कई नेता हिस्सेदारी के हिसाब से मांग करने लगे हैं. अनुमान लगाया जा रहा हैा कि इस बैठक में अति पिछड़ा की भागीदारी पर जोर दिया जा सकता है. पिछड़ा तथा अति पिछड़ा के आरक्षण बढ़ाने की बात हो सकती है. जातीय गणना की रिपोर्ट के अनुसार अति पिछड़ा और पिछड़ा की संख्या 63% से अधिक है तो अनुसूचित जाति 20% के आसपास है.
जातीय गोलबंदी की तैयारी शुरू
राजनीति विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडे ने बताया कि बिहार में जो जाति आधारित गणना की गई है इसमें बहुत सारी खामियां हैं, लेकिन चुनाव को देखते हुए राज्य सरकार ने इसे हड़बड़ी में रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के आधार पर अब जातीय गोलबंदी की तैयारी भी शुरू होगी और उसी को लेकर सीएम नीतिश कुमार सभी दलों के साथ बैठक करेंगे. जातिय गणना की रिपोर्ट के अनुसार 36.1% अति पिछड़ा और 27.12% पिछड़ा जाति की संख्या है यानी कुल 63.13% हैं. पहले से पिछड़ा और पिछड़ा का आरक्षण 27% है, क्योंकि अब दोनों की आबादी 63% है. नियम के अनुसार 50 % से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.
ऐसे में अगर आधा भी किया जाता है तो 32% आरक्षण की मांग हो सकती है. वहीं अनुसूचित जाति का पहले से 17% है अब इसकी आबादी 20% के करीब दिखाई गई है तो जितनी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में जितनी संख्या उतनी आरक्षण का प्रावधान है तो इसे बढ़ाकर 17 के बजाय 20% करने का निर्णय लिया जा सकता है.
किसको फायदा किसको नुकसान बताएगा वक्त
अनुसूचित जनजाति को एक प्रतिशत आरक्षण था अब उसकी आबादी दो प्रतिशत के करीब है तो उसे भी एक प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है. सभी को जोड़ दिया जाए तो 54% होते हैं. ऐसे में केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की बात हो सकती है. इससे किसको फायदा और किसको नुकसान होगा इसके सवाल पर राजनीति विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडे ने बताया कि निश्चित तौर पर अति पिछड़ा अपनी हक की बात करेंगे. क्योंकि 1990 के बाद बिहार में लगातार पिछड़ा का वर्चस्व रहा है, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और सीएम नीतीश कुमार दोनों पिछड़ा जाति से आते हैं. यही दोनों बिहार के लगातार मुख्यमंत्री रहे हैं. अति पिछड़ा जाति पिछड़ा से 9% अधिक है ऐसे में वे अपनी हक की बात कर सकते हैं.
लालू की राजनीति चाल पर भारी बीजेपी!
अभी बिहार में लालू प्रसाद यादव 1990 की राजनीति की चाल पर चल रहे हैं, लेकिन 1990 की राजनीति और अभी के राजनीति में बहुत सारे बदलाव हुए हैं. उस वक्त पिछड़ा, अति पिछड़ा अनुसूचित जाति सभी को एकजुट करने में लालू प्रसाद यादव और जनता दल सफल हुए थे. फॉरवर्ड बनाम अन्य जातियों की लड़ाई थी और उस समय लड़ाई कांग्रेस से थी, लेकिन अभी हालात कुछ बदले हुए हैं. अभी लड़ाई पिछड़ा और अति पिछड़ा की है. क्योंकि केंद्र में प्रधानमंत्री भी अति पिछड़ा जाति से आते हैं. बिहार में भी बीजेपी अति पिछड़ा और पिछड़ा को आगे कर कर चल रही है. अगड़ी जाति को आगे नहीं किया जा रहा है ऐसे में बीजेपी भी वही लड़ाई लड़ रही है जो लालू प्रसाद यादव लड़ रहे थे.
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