पटना: बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री राम सूरत कुमार ने गुरुवार को राजधानी पटना के शास्त्रीनगर स्थित राजस्व प्रशिक्षण संस्थान में जिला भू-अर्जन पदाधिकारियों के राज्य स्तरीय बैठक की. इस दौरान उन्होंने राज्य में चल रही छोटी परियोजनाओं में अर्जित हुई भूमि के मुआवजा भुगतान में अधिकारियों द्वारा की जा रही टाल-मटोल की प्रवृति पर चिंता जताई.


उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग, रेलवे समेत बड़ी परियोजनाएं जिनकी माॅनिटरिंग राज्य स्तर से होती है, उसके रैयतों को तो मुआवजा मिल जाता है. लेकिन ग्राम, अंचल या जिला स्तर की जरूरतों के लिए जो जमीन का अधिग्रहण होता है तो वहां के लोगों का भू-अर्जन कार्यालय से पैसा लेने में पसीना छूट जाता है. इस समस्या के मद्देनजर मंत्रियों ने सभी भू-अर्जन पदाधिकारियों को जनवरी तक सभी लंबित भुगतान को प्राथमिकता पर समाप्त करने का आदेश दिया है.


साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी कि लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि जनवरी, 2021 के पहले हफ्ते से वो अपर मुख्य सचिव के साथ प्रमण्डलवार राजस्व की समीक्षा बैठक करेंगे. मंत्री राम सूरत कुमार ने मुआवजा भुगतान में 20 प्रतिशत मुआवजा देने में हो रही परेशानियों की भी चर्चा की.


उन्होंने कहा कि बांध, सड़क या रेल के लिए जब जमीन का अधिग्रहण होता है तो पहले चरण में रैयत को 80 प्रतिशत मुआवजा दिया जाता है. लेकिन, 20 प्रतिशत मुआवजा देने में अनावश्यक देरी की जाती है. ऐसे सबूत मांगे जाते है, जिनका अस्तित्व ही नहीं होता. नदी की धार में समा गए मकानों का सबूत मांगना सिर्फ और सिर्फ उगाही के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि जब अधियाची विभाग ने पैसा दे दिया है, भू-अर्जन कार्यालय के पास पैसा है और भू-धारी को मुआवजा नहीं मिल रहा है, तो वह दुर्भाग्यपूर्ण है.


बता दें कि बैठक के दौरान नीतीश सरकार के मंत्री ने कैम्प लगाकर जमीन का मुआवजा देने का सुझाव दिया. साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसे कैम्पों में स्थानीय निर्वाचित जन प्रतिनिधि जरूर रहे. अगर मुआवजा भुगतान का कैम्प किसी गांव में लग रहा है तो वहां के मुखिया, प्रमुख, जिला पार्षद, विधायक के समक्ष भुगतान कराएं. इससे पारदर्शिता तो आयेगी ही, गलत व्यक्ति को भुगतान नहीं होगा. साथ ही इससे विभाग की छवि भी लोगों के बीच ठीक होगी.


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