पटना: महागठबंधन में चुनाव लड़ रही सीपीआई एमएल यानी भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा है कि अगर बिहार में बीजेपी की सरकार बनी तो यहां भी उत्तर प्रदेश जैसी हालत हो जाएगी. उन्होंने कहा, "बीजेपी की लोकतंत्र विरोधी और फासीवादी मुहिम को रोकने के लिए माले ने कांग्रेस, आरजेडी से गठबंधन किया है." दीपांकर ने यह भी साफ कर दिया कि भविष्य में तेजस्वी सरकार बनी, तो उसमें माले शामिल नहीं होगी, बल्कि बाहर से नजर रखेगी.


बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज से खास बातचीत में माले महासचिव ने कहा कि बीजेपी देश में लोकतंत्र खत्म करना चाहती है और देश को बर्बाद करने पर तुली हुई है. लोक जनशक्ति पार्टी द्वारा बीजेपी सरकार बनाने के दावे का हवाला देते हुए दीपांकर ने कहा कि अगर यहां बीजेपी की सरकार बनी तो बिहार में भी यूपी जैसी हालत हो जाएगी. बिना नाम लिए योगी सरकार पर हमला बोलते हुए दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि क्रूर दमन और हिंसा की प्रयोगशाला यूपी, बिहार के लिए चेतावनी है. इससे बिहार को बचाना है. बिहार में बीजेपी की फासीवादी मुहिम को रोकने के लिए मतभेदों के बावजूद कांग्रेस, आरजेडी से गठबंधन किया गया है, क्योंकि यह समय की मांग है. उनसे सवाल पूछा गया था कि माले ने अपनी विचारधारा से समझौता कर गठबंधन क्यों किया?


एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी की स्थिति को लेकर तंज कसते हुए माले महासचिव ने बीजेपी से पूछा कि बिहार में एनडीए की क्या परिभाषा है, क्योंकि एलजेपी का दावा है कि वह बीजेपी के साथ है, लेकिन जेडीयू के साथ नहीं.


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि नीतीश ने जो कहा उसका उल्टा किया. अनुभव का इस्तेमाल अपनी कुर्सी बचाने में करते रहे. बिहार बर्बाद हो गया. मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड हो या प्रवासी मजदूरों का पलायन, हर मोर्चे पर धोखाधड़ी की गई.


तेजस्वी के नेतृत्व के सवाल पर उन्होंने कहा कि तेजस्वी सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के नेता हैं और मौका मिलने पर अनुभव हासिल कर सकते हैं. जनता में भारी आक्रोश है. ऐसे में नई सरकार और नए मुख्यमंत्री को कोई नहीं रोक सकता. उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि माले सरकार में शामिल नहीं होगी. दीपांकर ने कहा, "हम देखेंगे कि सरकार ठीक से काम करे. हम सरकार की मदद करेंगे, लेकिन शामिल नहीं होंगे."


माले के चुनावी एजेंडे पर दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि हम जनता के मुद्दों पर पूरे साल आंदोलन करते हैं. इसलिए चुनाव में अलग से एजेंडे की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन इस चुनाव में मुख्य रूप से रोजी-रोटी, शिक्षा-रोजगार और संविधान पर हमले का सवाल है. हम सरकार बदलने के लिए लोगों के पास जा रहे हैं.


उन्होंने कहा कि यह नीतीश बनाम तेजस्वी का चुनाव नहीं है, बल्कि तनाशाही और लोकतंत्र के बीच का चुनाव है. एनडीए सरकार ने जो बर्बादी की है उसके और जनता के प्रतिरोध के बीच का चुनाव है.


आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन को जमीन पर कामयाब बनाने की रणनीति को लेकर पूछे जाने पर दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह थोपा हुआ नहीं, बल्कि लोगों की अपेक्षा के मुताबिक बना हुआ गठबंधन है. डिजिटल युग में लोगों तक उम्मीदवार और चुनाव चिन्ह पहुंचाना कोई मुश्किल काम नहीं है. उन्होंने कहा कि गठबंधन की पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच लोकसभा चुनाव में भी तालमेल रहा है. हालांकि मांझी, कुशवाहा और सहनी जैसे नेताओं के अलग होने पर दीपांकर भट्टाचार्य ने माना कि सभी पार्टियां रहती तो बेहतर था.


आपको बता दें कि सीपीआई एमएल बिहार की सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी है. महागठबंधन में उसे उन्नीस सीटें मिली हैं. जबकि सीपीआई को छह और सीपीएम को चार. माले ने पहली बार गैर वामपंथी दलों से चुनावी गठबंधन किया है. पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा ने एक साथ चुनाव लड़ा था, तब केवल माले को ही तीन सीटों पर कामयाबी मिली, लेकिन इस बार 29 सीटों पर वाम दलों के प्रत्याशी सीधी टक्कर में हैं. जाहिर है मुख्यमंत्री कोई भी बनें विधानसभा में वामदलों की ताकत बढ़ना तय है. दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, "बहुमत भी आएगा और वाम दलों की संख्या भी बढ़ेगी. हमारे तीन विधायकों ने पिछले पांच सालों में जो किया इस बार उससे और अच्छा काम कर पाएंगे."


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