Lok Sabha Chunav Result 2024: लोकसभा चुनाव का परिणाम मंगलवार 4 जून को आ गया. बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से 30 सीट जहां एनडीए गठबंधन के खाते में गई तो 9 सीटों पर इंडिया गठबंधन ने कब्जा जमाया. एक सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव ने जीत दर्ज की. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस, आरजेडी और वाम दल साथ में थे. 9 सीट में जहां चार सीट आरजेडी ने जीत दर्ज की तो तीन सीटें कांग्रेस के खाते में चली गईं, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 25 साल बाद वामदल ने बिहार में खाता खोला और दो सीट पर सीपीआईएमएल के प्रत्याशी ने जीत दर्ज कर ली. 


वाम दल पहले सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी के रूप जाना जाता था, जो बिहार में अहम भूमिका रखते थे. वर्ष 2000 के बाद क्षेत्रीय दल और बीजेपी के दबदबे के बाद बिहार में वामदल का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो चुका था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी की एंट्री हो गई है. इस बार महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने में वाम से सीपीआईएमएल से तीन प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. इनमें काराकाट लोकसभा से राजाराम सिंह कुशवाहा, आरा लोकसभा से सुदामा सिंह और नालंदा लोकसभा से संदीप सौरभ चुनाव मैदान में थे.


सीपीआई को 1 सीट मिली थी और सीपीआई ने बेगूसराय लोकसभा सीट से अवधेश राय को प्रत्याशी बनाया था. वहीं सीपीआईएमआई को भी इंडिया गठबंधन से एक सीट दी गई थी और सीपीआईएमआई ने खगड़िया लोकसभा सीट से संजय कुमार कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया था. हालांकि सीपीआई और सीपीआईएमआई के कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं जीते. सीपीआईएमएल के तीन में से दो प्रत्याशी चुनाव जीते. एक प्रत्याशी संदीप सौरभ को नालंदा में हार का सामना करना पड़ा. सीपीआई एमएल ने जो सीट जीतीं उनमें काराकाट लोकसभा से राजाराम सिंह कुशवाहा और आरा लोकसभा सीट से सुदामा प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की. इसके साथ 25 सालों के बाद फिर वामदल बिहार में सक्रिय हो गया है.


इससे पहले वामदल ने आखरी बार 1999 में भागलपुर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी. उस वक्त मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी सुबोध राय भागलपुर लोकसभा सीट से जीत दर्ज किए थे, उसके बाद अब तक वामदल के कोई भी पार्टी के नेता बिहार में चुनाव नहीं जीते थे. 1999 से पहले सीपीआईएमएल के आईपीएफ के बैनर तले ही 1989 में आरा संसदीय सीट जीत दर्ज कराई थी. तो कहा जाए की आरा में 35 साल बाद एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी का जलवा दिखा है.


1990 के दशक के बाद बिहार में जब लालू प्रसाद यादव का जलवा आया तो कम्युनिस्ट पार्टी धीमी पड़ गई थी और उसका जनाधार धीरे धीरे खत्म होने लगा था और कम्युनिस्ट पार्टी के कोर वोटर दलित वर्ग के लोगों पर लालू प्रसाद यादव ने सेंधमारी कर ली थी, लेकिन 1990 के पहले बिहार के कई जिलों में कम्युनिस्ट पार्टी का जनाधार था. इनमें खासकर भागलपुर, नवादा, समस्तीपुर, सारण, मधुबनी, सिवान,आरा, पटना जिले के मसौढ़ी, फतुहा इलाके में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव रहा था और निर्णायक वोट रहते थे.


कई बार माकपा और कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी विधानसभा में जीत कर भी आते थे, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी में टूट होने के बाद की मार्क्सवादी कांग्रेस पार्टी, सीपीआई, सीपीआईएमए जैसे कई पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ने लगे और जनाधार घटता चला गया. फिर बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों का वामदल के वोटरों पर कब्जा हो गया और उनका जनाधार टुकड़े टुकड़े हो गया, लेकिन जब महागठबंधन में एक साथ आए तो बिहार विधानसभा में इसका जलवा दिखा और सीपीआई एमएल से 2020 में 12 विधायक चुन कर आए, जबकि सीपीआई के तीन विधायक ने जीत दर्ज की. अब 2024 के चुनाव में भी वामदल को बिहार में दो सीटों पर जीत के बाद बड़ी सफलता मिली है. अब कम्युनिस्ट पार्टी एक बार फिर बिहार में अपना जनाधार बढ़ाने की प्रयास में जुट गया है.


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