गया: बिहार के गया जिले के बाराचट्टी, मोहनपुर सहित कई गावों में लगभग हजारों एकड़ जमीन पर अफीम की खेती की जा रही है. इन क्षेत्रों में वन विभाग व सरकारी जमीनों पर पिछले कई सालों से अफीम की खेती की जा रही है. जिला प्रशासन, नारकोटिक्स विभाग और अर्धसैनिक बलों के द्वारा हर साल अफीम खेती की पहचान कर नष्ट की जाती है इसके बाबजूद अफीम की खेती बंद नहीं हो रही है.
क्यों और कौन करवाता है यह अफीम की खेती?
गया के इन जंगली क्षेत्रों का सीमावर्ती इलाका चतरा जिला है और यह इलाका नक्सलियों के लाल इलाके के रूप में जाना जाता है. जहां नक्सली अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिये वन विभाग और सरकारी जमीनों पर ग्रामीणों से अफीम की खेती करवाते हैं. यहां अफीम की तस्करी करना इसलिए आसान होता है कि राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे का इलाका होने के कारण इसका नेटवर्क स्थानीय लाइन होटलों से भी जुड़ा होता है. जहां से पश्चिम बंगाल, पंजाब, उतर प्रदेश, उड़ीसा, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान सहित कई राज्यों में इसकी तस्करी आसानी से की जाती है.
इसमें कई तस्करों और नक्सली कनेक्शन होता है, जिससे आसानी से दूसरे प्रदेशों में इसकी तस्करी की जाती है. हालांकि जिला प्रसाशन के द्वारा समय समय पर सूचना मिलने पर कार्रवाई भी की जाती है. कई तस्करो को अफीम के साथ गिरफ्तार कर जेल भी भेजा जा चुका है बाबजूद इसके यहां अब भी अफीम तस्कर सक्रिय हैं.
ड्रोन से कराया गया है सर्वेक्षण
वन विभाग, नारकोटिक्स विभाग और एसएसबी के द्वारा अफीम की खेती के नष्टीकरण के पूर्व इसका सर्वेक्षण ड्रोन से कराया गया है जिससे इसकी पहचान कर इसे नष्ट किया जा सके.
इस बाबत जिला वन पदाधिकारी अभिषेक कुमार ने बताया कि जिला पुलिस,एसएसबी,वन विभाग और नारकोटिक्स के सहयोग से पिछले साल 470 एकड़ भूमि पर लगी अफीम को नष्ट किया गया था. अफीम की फसलों पर ट्रैक्टर व रासायनिक दवाओं का छिड़काव कर नष्ट किया जाता है. इस बार ड्रोन सर्वेक्षण में 600 एकड़ में अफीम की फसल लगाए जाने का डाटा संग्रह किया गया है, जिसे समय पर नष्ट किया जाना है.