सुपौल दुर्गा पूजा (Durga Puja 2021) को लेकर इस बार धूम है. पिछले साल कोरोना की वजह से हर तरफ शांति था लेकिन इस बार मंदिरों में और पंडालों में चहल पहल है. लोग ऐतिहासिक और पुराने मंदिरों में जाकर माता की पूजा कर रहे हैं. दुर्गा पूजा को लेकर सुपौल के सदर प्रखंड के बरुआरी मंदिर में भी लोग पूजा करने के लिए पहुंच रहे हैं. इसका भी इतिहास काफी पुराना है. यह भी वजह है कि गांव और आसपास के लोग इस मंदिर में पूजा करने के लिए आते हैं.


क्या है इतिहास?


ग्रामीणों के अनुसार माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. राजा तेजनारायण सिंह और राजा भूपेंद्र नारायण सिंह द्वारा यानी डयोढ़ी से ही मैया की पूजा अर्चना की जाती थी. बाद में 1962 को राजा भूपेंद्र नारायण सिंह की मृत्यु के पश्चात ग्रामीणों के द्वारा सार्वजनिक तौर पर पूजा-अर्चना शुरू की गई जो आस्था के साथ निरंतर चली आ रही है.


सुपौल जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दक्षिण सदर प्रखंड के बरुआरी (पश्चिम) स्थित मां दुर्गा की पूजा के लिए लोग कई जगह से आते हैं. मंदिर के ही प्रांगण में दस महाविद्या और नवग्रह मूर्तियां विराजमान हैं. यही वजह है कि तांत्रिक दृष्टिकोण से भी मंदिर अपना विशेष महत्व रखता है. विजयादशमी के दिन यहां दूर दराज से साधक तंत्र साधना व भगवती के दर्शन के लिए आते हैं. पूजा-अर्चना में संपूर्ण खर्च वहन करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.


पूरी होती हैं भक्तों की मुरादें


तांत्रिक विद्या सीखने के लिए लोग नवमी व दशमी के दिन मंदिर आते हैं और सिद्धि प्राप्त करते हैं. मंदिर के स्वरूप कालांतर में बदलते चले गए, लेकिन मंदिर परिसर में स्थापित दस महाविद्या और नवग्रह की मूर्तियां अपना इतिहास बताती हैं जो शोध का विषय है. कहा जाता है कि यहां एक सौ साल से पूर्व से पूजा अर्चना की जा रही है. यह मंदिर संपूर्ण इलाके के लिए आस्था का केंद्र माना जाता है. माता के दरबार में अपनी हाजिरी लगाने वालों की मुरादें पूरी होती हैं.



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