Lok Sabha Election 2024: बिहार में राजनीतिक पार्टियों में किसकी हिस्सेदारी कितनी होगी? जातीय गणना से सब कुछ हुआ साफ!
Bihar Caste Survey Results: जाति आधारित गणना की रिपोर्ट से किसे फायदा और किसे नुकसान हो सकता है? यह सबसे बड़ा सवाल है. वहीं, इसको लेकर कई चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
पटना: जाति आधारित गणना (Bihar Caste Survey Results) की रिपोर्ट सोमवार को सार्वजनिक किया गया. रिपोर्ट आने के बाद अब हर समाज के लोग अपनी हिस्सेदारी की बात रहे हैं, लेकिन बड़ी बात है कि 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट से किसे फायदा और किसे नुकसान हो सकता है? यह सबसे बड़ा सवाल है. बिहार में प्रमुख रूप से आठ पटियां हैं. इनमें बीजेपी, आरजेडी ,जेडीयू, कांग्रेस, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ,लोक जनशक्ति पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माले और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी है, लेकिन प्रमुख रूप से बात करें तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल, नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी बिहार में सक्रिय भूमिका निभाती है. ऐसे में किस पार्टी को कितना फायदा और किसे कितना नुकसान होगा?
ये है जातीय गणना के आंकड़े
जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के अनुसार 81.99 यानी 82% बिहार में हिंदू हैं जबकि 17.70 यानी लगभग 18% मुस्लिम की आबादी है. इनमें सबसे अधिक अति पिछड़ा वर्ग की संख्या 36.01% है, जबकि दूसरे नंबर पर पिछड़ा वर्ग 27.12% है. अनुसूचित जाति 19.65 यानी 20 % के करीब है. सामान्य 15.1% और अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत है. अकेले यादव जाति की संख्या 14.26% है यानी यादव और मुस्लिम दोनों को जोड़ दिया जाए तो बिहार की 32% जनसंख्या है. राष्ट्रीय जनता दल यानी लालू प्रसाद यादव के साथ है. यानी अकेले दम पर लालू यादव सभी पार्टियों से काफी मजबूत दिख रहे हैं.
चुनाव में सबसे निर्णायक संख्या अति पिछड़ा की रहने वाली है
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं, जिनकी संख्या 2.87 यानी तीन प्रतिशत के करीब है, जबकि कुशवाहा 4.1% है. माना जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को लेकर कुशवाहा समाज का अधिकांश समर्थन बीजेपी के साथ है, लेकिन भारतीय भारतीय जनता पार्टी को भी काम आंकना बेमानी होगी. हिंदू में क्योंकि अपर कास्ट की संख्या लगभग 11% है, लेकिन सबसे निर्णायक संख्या अति पिछड़ा की है जो 36.01% है. अनुसूचित जाति लगभग 20% के करीब हैं क्योंकि अनुसूचित जाति की संख्या 19.65 प्रतिशत दर्शाया गया है. इनमें पासवान जाति 5.31% है और मुसहर 3% है जो अधिकांश एनडीए के साथ हैं तो वहीं, चमार जाति 5.125% है.
'अतिपिछड़ा के लिए विकल्प बीजेपी ही बची हुई है'
अब सवाल है निर्णायक वोट अति पिछड़ा समाज का झुकाव किस ओर होगा? इस पर अति पिछड़ा समाज से आने वाले आरजेडी के विधान पार्षद रामबली चंद्रवंशी जो 2 अक्टूबर से अति पिछड़ा संघर्ष मोर्चा के बैनर तले अपनी पांच सूत्री मांगों को लेकर पदयात्रा पर हैं. उन्होंने बताया कि वैसे तो जाति आधारित गणना की जो रिपोर्ट आई है उसमें घाल-मेल दिख रहा है, सही आंकड़ा प्रस्तुत नहीं किया गया है, लेकिन यही आंकड़ा रह जाता है तो आगामी चुनाव में कांटे की टक्कर हो सकती है. क्योंकि अति पिछड़ा समाज का 36 प्रतिशत निर्णायक वोट होगा और वह 36% जिसके पास जाएगा उसे निश्चित तौर पर जीत मिलेगी, लेकिन अभी जो रुझान मिल रहे हैं इसके अनुसार 70% से ज्यादा अति पिछड़ा समाज का बीजेपी की ओर झुकाव है. उन्होंने पुरानी बातों को दोहराते हुए कहा कि लालू प्रसाद यादव से त्रसित होकर 1995 में अति पिछड़ा समाज ने नीतीश कुमार के साथ जाने का निर्णय लिया. अभी दोनों एक हो चुके हैं ऐसे में अतिपिछड़ा के लिए विकल्प बीजेपी ही बची हुई है.
लालू प्रसाद यादव सबसे मजबूत दिख रहे हैं
रामबली चंद्रवंशी लालू प्रसाद यादव की पार्टी से आते हैं लेकिन उन्होंने जो भविष्यवाणी की अगर उसको सही मान ले तो कुल मिलाकर जातीय गणना की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में कांटे की टक्कर हो सकती है. बिहार में बीजेपी भी अति पिछड़ा, अपर कास्ट, पिछड़ी जाति और अनुसूचित जाति में पासवान, मुसहर सहित अन्य जातियों को जोड़कर काफी मजबूत दिख रही है, लेकिन अकेले दम पर बात की जाए तो रिपोर्ट के अनुसार लालू प्रसाद यादव सबसे मजबूत दिख रहे हैं.
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