पटना: भगवान बुद्ध की धरती बिहार में बुद्ध से जुड़ी सबसे अहम स्मृति को वापस लाने में बिहार सरकार जुटी हुई है. दरअसल बिहार सरकार काबुल के राष्ट्रीय संग्रहालय में भगवान बुद्ध के भिक्षापात्र को वापस लाना चाहती है. ऐसी मान्यता है कि काबुल के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे इस भिक्षापात्र को वैशाली के लोगों ने भगवान बुद्ध को भेंट स्वरुप दिया था. कुशीनगर में महापरिनिर्वाण के पहले भगवान बुद्ध जब वैशाली से जाने लगे तो ये माना जाता है कि इस भिक्षा पात्र को वो यहां छोड़ गए थे.
रघुवंश प्रसाद के सपनों को साकार करने में जुटी बिहार सरकार
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली से पांच बार सांसद रहे. अपने मृत्यु के तीन दिन पहले उन्होंने मुख्यमंत्री को खत लिख कर इस भिक्षापात्र को वैशाली लाने की मांग की थी. उनकी मृत्यु के बाद 13 सितंबर को उनके इस आखिरी इच्छा की चर्चा देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से एक कार्यक्रम के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान की थी, जिसके बाद मुख्यमंत्री ने भी रघुवंश बाबू के आखिरी इच्छा को पूरी करने की कवायद तेज कर दी.
मुख्यमंत्री सचिवालय ने साधा एएस आई के पूर्व रिजनल डायरेक्टर से संबंध
साल 2014 में काबुल में रखे इस भिक्षापात्र की मौलिकता की जांच के लिए आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने अपने तत्कालीन रीजनल डायरेक्टर डॉ. फणीकांत मिश्रा को 15 दिनों के लिए काबुल भेजा था. अध्ययन के बाद डॉ मिश्रा ने अपने रिपोर्ट में पुष्टि की थी कि ये वही भिक्षापात्र है जो भगवान बुद्ध वैशाली छोड़ गए थे.
उनके रिपोर्ट के अनुसार जिस पत्थर से ये पात्र बना है वो अफगानिस्तान में नही मिलता वो सिर्फ यूपी के चुनार में मिलता है. महाराष्ट्र के अजन्ता की गुफा नंबर 17 में भी भगवान बुद्ध को उस पात्र के साथ दिखाया गया है. दावा है कि पात्र पर ब्राह्मी लिपि में उससे संबंधिक जानकारियां लिखी हुई हैं मगर उसके साक्ष्य को मिटाने के लिए इसकी चार लाइन को पर्शियन में कर किसी राजा का पात्र बताया गया है लकिन पांचवी लाइन को मिटाया नही जा सकता जो ब्राह्मी लिपि में है.
एबीपी से बातचीत में डॉ. मिश्रा ने इस बात की पुष्टि की कि उनकी ये रिपोर्ट बिल्कुल सही है और मुख्यमंत्री सचिवालय ने उनसे संपर्क कर इस रिपोर्ट की फिर से मांग की है जिसे उन्होने भेज दिया है. डॉ मिश्रा ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि उनकी मेहनत रंग लाई और इस भिक्षा पात्र को लाने की कोशिश शुरु हो गई है
पात्र के काबुल पहुंचने की कहानी
आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पहले महानिदेशक ए.कनिंघम की वर्ष1883 में लिखी पुस्तक में भिक्षापात्र के जैसे हीं काबुल के पात्र का वर्णन है.ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार दूसरी शताब्दी में राजा कनिष्क इसे पुरषपुर(वर्तमान में पेशावर) ले गए थे.इसके बाद इसे गंधार(कन्धार)ले जाया गया. फिर 20वीं शताब्दी में इसे काबुल के म्यूजियम में रखा गया.
कैसा है भिक्षापात्र
4 मीटर ऊंची इस भिक्षापात्र का वजन 350 से 400 किलोग्राम है. इसकी मोटाई 18 से.मी. और गोलाई 1.75 मीटर है