पटनाः तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. हालांकि दोनों एक साथ कभी मंच पर नहीं आए फिर भी दोनों ने कभी एक दूसरे के बारे में कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी. दो युवा नेताओं के बीच वोट के समीकरण को लेकर शीत युद्ध कहें तो गलत नहीं होगा. तेजस्वी यादव की बिहार में यादव और मुसलमान वोट बैंक (Vote Bank) पर पकड़ है तो कन्हैया की पूरे देश में एंटी मोदी और मुसलमान वोट पर पकड़ है. ऐसे में बिहार में कन्हैया की कांग्रेस (Congress) में एंट्री ने आरजेडी को असहज कर दिया है.
बिहार में सीपीआई (CPI) की आवाज बुलंद कर चुके और जेएनयू (JNU) छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) अब कांग्रेस (Congress) के नेता हैं. हालांकि पार्टी में अभी उनकी जिम्मेदारी तय नहीं की गई है. कन्हैया कुमार को लेकर भले कांग्रेस खुश हो लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में कोई उत्साह नहीं है. आरजेडी पहचानती तक नहीं है. आरजेडी भले ना पहचाने लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आरजेडी के अंदर यह डर है कि कन्हैया कुमार कहीं तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के लिए खतरा ना बन जाएं. हालांकि बीजेपी का भी वही मानना है जो आरजेडी कह रहा है.
आरजेडी के नेता भाई वीरेंद्र को लेकर जब कन्हैया कुमार को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने पहचानने से सीधा इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, “कौन कन्हैया कुमार, मैं कन्हैया कुमार को नहीं जानता हूं. कौन हैं और कहां जा रहे हैं.” वहीं दूसरी ओर आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कह दिया कि कन्हैया कुमार आरजेडी के लिए कोई मुद्दा नहीं हैं. सबलोग स्वतंत्र हैं अपने अपने तरीके से फैसले लेकर के किसी भी राजनीतिक दल में जा सकते हैं.
तनवीर हसन को टिकट देकर आरजेडी ने बनाया था माहौल
अब सवाल है कि आखिर क्यों आरजेडी या बीजेपी इस तरह कन्हैया कुमार को लेकर कुछ कहना नहीं चाह रही. मामला समझिए, कन्हैया कुमार 2019 में बिहार के बेगूसराय से कन्हैया कुमार ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और बीजेपी के कद्दावर नेता गिरिराज सिंह को चुनौती दी. अब वह अपना भविष्य कांग्रेस में तलाश करने आ गए हैं. उनके कांग्रेस में शामिल होने से बिहार की राजनीति और खासकर आरजेडी पर क्या असर पड़ेगा? क्योंकि बिहार में कांग्रेस आरजेडी के साथ है और यह वही आरजेडी है जिसने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से हराने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम कैंडिडेट उतारने का फैसला लिया और वहां से तनवीर हसन को टिकट दे दिया.
फॉर्मूला समझिए, अगर कांग्रेस कन्हैया कुमार को बिहार में कोई जिम्मेदारी सौंपती है तो इसका सीधा असर तेजस्वी यादव पर पड़ सकता है. क्योंकि कन्हैया कुमार की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर पहले से बनी हुई है. चाहे बोलने का अंदाज हो या फिर उनकी लोकप्रियता का मामला हो, दोनों में कन्हैया कुमार का कई जोर नहीं है. यही वजह है कि 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले सबकी नजरें कन्हैया कुमार पर थीं. हालांकि कन्हैया कुमार बेगूसराय से लोकसभा का चुनाव हार गए और गिरिराज सिंह की जीत हुई. गिरिराज सिंह के जीतने के पीछे कहीं ना कहीं आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का भी हाथ था. क्योंकि बेगूसराय से कन्हैया कुमार की जीत होती तो तेजस्वी यादव का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता था. इसलिए आरजेडी ने अपने उम्मीदवार तनवीर हसन को उतार कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था.
कन्हैया कुमार देशद्रोही लोगः बीजेपी
उधर, बीजेपी भी कन्हैया कुमार को लेकर कुछ बोलना नहीं चाहती. बीजेपी के मंत्री रामसूरत राय ने कहा कि “निश्चित रूप से कन्हैया कुमार कांग्रेस में गए हैं. कांग्रेस की जो नीति और सिद्धांत है उसपर तो जरूर फर्क पड़ेगा क्योंकि देशद्रोही लोग हैं. भारतीय जनता पार्टी पूरे देश के संगठन और राष्ट्र के निर्माण के लिए काम करती है. ना कि फूट डाले राजनीत करो. कन्हैया कुमार पर कितने केस हैं वह देख लें.”
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