मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की बहुप्रतिक्षित मीटिंग में 16 पार्टियों का महाजुटान हुआ है. विपक्षी एकता की मीटिंग में 5 राज्यों के मुख्यमंत्री भी शरीक हो रहे हैं. विपक्षी एकता की पहली मीटिंग होने की वजह से सभी दल एकजुटता दिखाते हुए शक्ति प्रदर्शन करेंगे.


5 घंटे तक चलने वाली विपक्षी एकता की मीटिंग में चुनावी रणनीति, सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय करने की बात कही जा रही है. मीटिंग में विपक्षी एकता की संभावित टीम की तस्वीर भी साफ हो सकती है. नीतीश कुमार के संयोजक बनने की चर्चा जोरों पर है.


नीतीश कुमार की वजह से ही सरकार के खिलाफ 16 पार्टियां पटना में एकजुट हुई है. ऐसे में नीतीश के संयोजक बनने में शायद ही कोई अड़ंगा लगे. हालांकि, विपक्षी एकता के चेयरमैन को लेकर अब भी सस्पेंस बना हुआ है.




(JDU के पोस्टर में नीतीश कुमार को बीच में दिखाया गया है. नीतीश की तस्वीर भी बड़ी है)


चेयरमैन पद के लिए सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और शरद पवार का नाम सबसे आगे है. विपक्षी एकता में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए माना जा रहा है कि यह पद सोनिया गांधी को मिल सकता है. सोनिया 2003 के बाद से ही लगातार यूपीए की चेयरमैन हैं.


इस स्टोरी में विपक्षी एकता की नई टीम और उसमें शामिल होने वाले संभावित नामों के बारे में विस्तार से जानते हैं...


विपक्षी एकता में 3 तरह की कमेटी बनाए जाने की चर्चा
जेडीयू एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक विपक्षी एकता में टीम और कमेटी का मॉडल बिहार की तर्ज पर रह सकता है. अंतिम वक्त में इसमें कुछ संशोधन भी हो सकता है. इस मॉडल के अनुसार सबको एकजुट रखने के लिए 3 तरह की कमेटी बनाई जा सकती है.


1. हाईलेवल कमेटी- विपक्षी एकता में शामिल सभी पार्टियों के टॉप नेता इस कमेटी में शामिल होंगे. उदाहरण के लिए सपा से अखिलेश, कांग्रेस से मल्लिकार्जुन खरगे, तृणमूल से ममता बनर्जी, जेडीयू से नीतीश कुमार, आरजेडी से लालू प्रसाद और एनसीपी से शरद पवार.


कमेटी पर सभी मसलों पर चुनावी रणनीति तय करने, एनडीए के खिलाफ माहौल बनाने और टिकट फॉर्मूला तय करने का जिम्मा रह सकता है. इसी कमेटी में सारे विवाद सुलझाए जाएंगे. रिपोर्ट के मुताबिक इस कमेटी में संयोजक का पद सबसे महत्वपूर्ण रहेगा.




किसी भी बड़े मसले पर बयान जारी करने की जिम्मेदारी भी इसी कमेटी पर रहेगी. दल के हिसाब से देखा जाए तो कमेटी में कुल 16 नेता शामिल हो सकते हैं. इस कमेटी की मीटिंग 15 दिन या 30 दिन में एक बार होगी. 


2. कार्यकारी स्तर की कमेटी- रणनीति तैयार करने और उसे अमलीजामा पहनाने के लिए विपक्षी पार्टियां एक कार्यकारी स्तर की कमेटी बना सकती है. इस कमेटी में सभी पार्टियों की तरफ से नंबर-2 के नेता को शामिल किया जा सकता है.


यह कमेटी मीटिंग स्थल, समय आदि तय करने का काम करेगी. अगर आसान भाषा में कहे तो इसी कमेटी पर विपक्ष की रणनीति को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी रहेगी. कौन से मुद्दे को कब और कैसे अमल में लाया जाएगा, कार्यकारी कमेटी ही तय कर सकती है.




कार्यकारी कमेटी की बैठक हफ्ते या दस दिन में एक बार हो सकती है. बताया जा रहा है कि इसकी अधिकांश मीटिंग दिल्ली में ही होगी. 


3. प्रदेश स्तर की कमेटी- विपक्षी पार्टियों के पास नेताओं को एक करने से ज्यादा चुनौती कार्यकर्ताओं का महाजुटान है. नीतीश कुमार के पास इसका भी तोड़ है. सब कुछ ठीक रहा तो गठबंधन वाले राज्यों में बिहार की तर्ज पर प्रदेश स्तर की कमेटी बनाई जा सकती है.


कमेटी का स्वरूप उन राज्यों में रहेगा, जहां एक से अधिक दलों का गठबंधन होगा. इस कमेटी में सभी पार्टियों के प्रदेश अध्यक्ष शामिल किए जा सकते हैं. कमेटी का मुख्य काम जमीनी स्तर पर गुटबाजी को खत्म करना रहेगा.




 
जिला और ब्लॉक लेवल पर सभी पार्टियों के नेताओं के बीच कॉर्डिनेशन का जिम्मा भी इसी कमेटी पर रहेगी. बिहार की तरह भी यही कमेटी जिला स्तर पर बड़े नेताओं की सभा का आयोजन करेगी.


मिनिमम कॉमन प्रोग्राम पर सस्पेंस बरकरार
बैठक में मिनिमम कॉमन प्रोग्राम को लेकर सस्पेंस जारी है. मीटिंग से पहले तृणमूल के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि अभी इस पर बात करना उचित नहीं होगा. ब्रायन ने कहा कि मीटिंग में आने वाले वक्त की सिर्फ रणनीति तैयार की जाएगी.


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कई विपक्षी पार्टियां अभी इसके पक्ष में नहीं है. इसके पीछे तर्क है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम चुनाव के बाद तय किया जाता है और उस पर हस्ताक्षर होता है.


वैसे विपक्षी पार्टियां जातीय जनगणना और सेंट्रल एजेंसी की कार्रवाई को मुख्य रूप से मुद्दा बनाने पर काम कर सकती है. सपा, जेडीयू, डीएमके, कांग्रेस और एनसीपी जातीय जनगणना की मांग पहले भी कर चुकी है.


गठबंधन में सीट बंटवारे का फॉर्मूला क्या हो सकता है?
विपक्षी एका से अब तक जो खबरें छन कर सामने आई है, उसके मुताबिक सीट बंटवारे को लेकर 3 फॉर्मूले पर काम चल रहा है. सीट बंटवारे का पहला फॉर्मूला 2014 और 2019 का चुनाव परिणाम हो सकता है. 




इसके मुताबिक 2014-2019 में विपक्षी एकता में शामिल पार्टियां जिन सीटों पर नंबर एक या दो पर होगी, उसकी दावेदारी उस सीट पर सबसे मजबूत होगी. कांग्रेस की चाहत 2009 के रिजल्ट को भी शामिल करने की है.


दूसरा फॉर्मूला क्षेत्रीय क्षत्रप को कमान देने की है. इसमें उन राज्यों में टिकट बंटवारे की कमान क्षेत्रीय पार्टियों को मिलेगी, जहां कांग्रेस कमजोर स्थिति में है. यह फॉर्मूला बिहार, यूपी, बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में लागू हो सकता है.


तीसरा फॉर्मूला जिताऊ उम्मीदवार का है. इसमें जिन सीटों पर गठबंधन के भीतर पेंच फंसता नजर आएगा, वहां जिताऊ उम्मीदवार को तरजीह दी जा सकती है. 


असम, केरल, पंजाब और दिल्ली को लेकर गठबंधन में पेंच है. केरल में कांग्रेस-सीपीएम नंबर एक और दो की पार्टी है, जबकि पंजाब में आप-कांग्रेस पक्ष और विपक्ष में है. दिल्ली में भी कांग्रेस मजबूत स्थिति में है, जहां आप सत्ता में काबिज है.


असम में कांग्रेस कमजोर स्थिति में जरूर है, लेकिन टिकट बांटने की शक्ति खुद के पास रखना चाहती है.


संयोजक पद पर नीतीश की दावेदारी सबसे मजबूत क्यों?


बेदाग छवि, व्यक्तिगत भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं- नीतीश कुमार बिहार में करीब 16 साल से मुख्यमंत्री हैं और केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं. नरेंद्र मोदी की तरह ही उन पर भी व्यक्तिगत भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है. 


नीतीश अगर संयोजक बनते हैं तो एनडीए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष को नहीं घेर पाएगी. नीतीश पार्टी के किसी बड़े नेता पर भी सेंट्रल एजेंसी का कोई मामला नहीं है, जिससे उनकी स्थिति काफी मजबूत है.


गठबंधन का तिकड़म जानते हैं- नीतीश कुमार पिछले 25 सालों में 9 दलों के साथ गठबंधन कर सरकार चला चुके हैं. इनमें बीजेपी, कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी और आरजेडी, एलजेपी जैसे क्षेत्रीय पार्टी शामिल हैं. वर्तमान में कम सीट होने के बावजूद नीतीश गठबंधन के साथ मुख्यमंत्री बने हुए हैं. 


अब तक जिस दल के साथ भी नीतीश गए हैं, वहां टिकट बंटवारे को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ. वे सीट बंटवारे से लेकर गठबंधन में सहयोगियों को एडजस्टमेंट का काम बखूबी जानते हैं. साथ ही गठबंधन में वोट ट्रांसफर का भी तिकड़म नीतीश को पता है.


कुल मिलाकर कहा जाए तो नीतीश को गठबंधन चलाने का तिकड़म पूरी तरह पता है.


सभी को साधने में माहिर, सेक्युलर छवि- बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद से ही विपक्षी एकता बनाने पर नीतीश कुमार जोर दे रहे हैं. नीतीश विपक्षी नेताओं को साधने के लिए तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडिशा, बंगाल, यूपी और झारखंड का दौरा कर चुके हैं.


नीतीश की वजह से ही पटना में मीटिंग हो रही है और सभी नेता साथ आए हैं. सीताराम येचुरी, एमके स्टालिन, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से नीतीश के अच्छे रिश्ते भी हैं. 


इसके अलावा, बिहार में बीजेपी के साथ रहने के बावजूद नीतीश कुमार की छवि सेक्युलर रही है. नीतीश अपने 3 सी (करप्शन, क्राइम और कम्युनलिज्म) से समझौता नहीं करने के संकल्प को बार-बार दोहराते रहे हैं.