हिंदू संस्कृति में पिंडदान या श्राद्ध का विशेष महत्व है. इस पर भी गया में किए गए श्राद्ध को बहुत अहम कहा जाता है. यही नहीं गया की एक नदी फल्गु के किनारे किया गया श्राद्ध पूर्वजों के लिए सीधे स्वर्ग का रास्ता खोलता है, ऐसी मान्यता है. लेकिन इसी नदी को श्रापित भी माना जाता है. गया, बिहार की फल्गु नदी के लिए के लिए कहते हैं कि इसे सीता माता ने श्राप दिया था. ऐसा क्यों कहा जाता है और इसके पीछे कौन सी पौराणिक कथा है आइये जानते हैं.
ये है कथा –
ऐसी कथा है कि वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता दशरथ का श्राद्ध करने गया गये थे. वहां राम और लक्ष्मण श्राद्ध का सामान जुटाने गए थे कि किसी कारण से माता ने दशरथ का श्राद्ध कर दिया. हालांकि स्थल पुराण की कथा के अनुसार राजा दशरथ का श्राद्ध उनके छोटे बेटों भरत और शत्रुघ्न ने किया था. लेकिन दशरथ को सबसे ज्यादा प्यारे उनके बड़े बेटे राम थे इसलिए दशरथ की चिता की राख उड़ते-उड़ते गया नदी के पास पहुंची. उस वक्त केवल माता सीता वहां मौजूद थी. राख ने आकृति बनाकर माता से कुछ कहने का प्रयास किया तो माता समझ गईं कि श्राद्ध का समय निकल रहा है और राम और लक्ष्मण सामान लेकर वापस नहीं लौटे हैं.
नदी को माना था साक्षी –
इस समय सीता माता ने फल्गु नदी की रेत से पिंड बनाए और पिंडदान कर दिया. इस पिंडदान का साक्षी माता ने वहां मौजूद फल्गु नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को बनाया. लेकिन जब भगवान राम और लक्ष्मण वापस आए और श्राद्ध के बारे में पूछा तो फल्गु नदी ने उनके गुस्से से बचने के लिए झूठ बोल दिया. तब माता सीता ने गुस्से में आकर नदी को श्राप दिया और तब से ये नदी भूमि के नीचे बहती है इसलिए इसे भू-सलिला भी कहते हैं.
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