राजगीर: वैश्विक महामारी कोविड-19 की वजह से नालंदा के राजगीर में 18 सितंबर से लगने वाले मलमास मेला (पुरुषोत्तम मास) को सरकार ने स्थगित कर दिया है. हालांकि सरकार ने धर्म ध्वजारोहण की अनुमति प्रदान की है. ऐसे में 18 सितंबर की सुबह वैदिक रीति व परंपरा से धर्म ध्वजारोहण किया गया. पहली बार दूसरे तीर्थ के पीठाधीश्वर, संत-महंत इस पारंपरिक ध्वजारोहण कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकें.



सप्तधारा कुंड को बंद रखने का दिया गया आदेश


राजगीर तपोवन तीर्थ रक्षार्थ पंडा कमेटी द्वारा ध्वजारोहण और 33 कोटि देवी-देवताओं का आह्वाहन किया गया. पूरे मलमास मेला अवधि के दौरान राजगीर के ब्रह्मकुंड और सप्तधारा कुंड को बंद रखने का प्रशासनिक आदेश जारी किया गया है. राजगीर एसडीओ और एसडीपीओ को सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन को अक्षरसः अनुपालन कराने के लिए सख्त निर्देश दिये गये हैं.


आश्विन मास में 160 साल के बाद लगा मलमास


नालंदा जिलाधिकारी ने बिहार के सभी डीएम को पत्र भेजकर मलमास मेला स्थगित होने संबंधित समाचार को प्रचार -प्रसार करने के लिए अनुरोध किया है. इसके अलावा समाचार पत्रों में विज्ञापन भी दिया जा रहा है. इस वर्ष आश्विन मास में 160 साल के बाद मलमास (अधिकमास) लग रहा है. इस मास की गिनती मुख्य महीनों में नहीं होती है


12 महीनों से अलग होती है इस महीने की गिनती


ऐसी मान्यता है कि जब महीनों के नाम का बंटवारा हो रहा था, तब मलमास (अधिकमास) उदास और दुखी था क्योंकि उसे दुख था कि लोग उसे अपवित्र मानेंगे. तब भगवान विष्णु ने कहा था कि अधिकमास तुम मुझे बहुत प्रिय रहोगे. इस महीने का स्वामी मैं खुद रहूंगा. इसीलिए मलमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. मलमास महीने की गिनती 12 महीनों से अलग है. इसकी गणना अमावस्या से अमावस्या तक की जाती है. इसलिए इस महीने में लौकिक कार्य भी मंगलप्रद नहीं होते हैं. लेकिन कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें इस महीने में किया जाना बहुत ही शुभ फलदायी है.


मलमास में श्रीहरि की पूरा को माना जाता है शुभ


ज्योतिषाचार्य डॉ. मिथिलेश पांडेय बताते हैं कि मलमास (अधिकमास) में श्रीहरि यानी भगवान विष्‍णु की पूजा करना सर्वश्रेष्‍ठ माना जाता है. मलमास में वैसे तो सभी प्रकार के शुभ कार्यों की मनाही होती है, लेकिन श्रीहरि की पूजा करना शुभफलदायी माना जाता है. मलमास में विष्‍णुजी की पूजा करने से माता लक्ष्‍मी भी प्रसन्‍न होती हैं. घर में धन-वैभव के साथ सुख और समृद्धि आती है. मान्यता है कि मलमास (पुरुषोत्तम मास) में 33 कोटि देवी-देवता राजगीर में कल्पवास करते हैं.


गर्मजल के कुंडों और झरनों में स्नान करने पर रोक


पुराणों में कहा गया है क‍ि मलमास (अधिकमास) में भगवान विष्‍णु और उनके सभी अवतारों की पूजा करना सबसे उत्तम है. मलमास (अधिकमास) की इस अवधि में अक्‍सर लोग मगध साम्राज्य की राजधानी राजगीर की तीर्थयात्रा करते हैं. हालांकि इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना काल में राजगीर की यात्रा और तीर्थाटन मुश्किल से कम नहीं है. सरकार ने मलमास मेला के आयोजन पर रोक लगा दी है. गर्मजल के कुंडों और झरनों में स्नान करने पर प्रशासनिक रोक लगी है.


कुंडों में स्नान करने के अलग-अलग महत्व


वैतरीन नदी में गाय की पूंछ पकड़कर भवसागर पार होना भी संभव नहीं है. इसलिए श्रद्धालु घर में ही श्री नारायण की पूजा करने के लिए विवश हैं. कहा गया है कि मलमास (पुरुषोत्तम मास) में दान-पुण्‍य करने से बैकुंठधाम का मार्ग प्रशस्‍त होता है. राजगीर के 22 गर्म जल के कुंड और 52 धाराओं के लिए विख्यात हैं. सभी कुंडों में स्नान करने के अलग-अलग महत्व हैं. राजगीर के गर्म जल के कुंडों और झरनों में स्नान करने से सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रवाह होता है.


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