सुपौल: कोसी तटबंध के भीतर बालू और पानी से भरी हुई रैयती जमीन के बिहार सरकार के नाम होने का अंदेशा पाते ही इलाके के किसान गोलबंद होकर आंदोलन को उतारु हो गए हैं. मंगलवार को कोसी तटबंध के भीतर के किसानों ने सदर प्रखंड के रामपुर गांव में महापंचायत बुलाई. इस दौरान उन्होंने बिहार सरकार के इस फैसले पर अपना विरोध जताया और आंदोलन करने की चेतावनी दी है.
इस बात से नाराज हैं किसान
दरअसल, सरकारी नियम के अनुसार कोसी जिस भी इलाके से बहती है, वो जमीन इस बार होने वाले लैंड सर्वे में बिहार सरकार के नाम से होने की चर्चा है. ऐसे में वैसे किसान जिनकी जमीन पर कोसी बहती है, उन्हें जमीन हड़पे जाने का डर सताने लगा है. किसानों का कहना है कि 1955 में जब कोसी बराज बना तो उससे पूर्व इलाका काफी खुशहाल था. उस वक्त देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सुपौल के बेरीया मंच आकर किसानों से श्रमदान करने को कहा था. साथ ही वादा किया था कि उनकी एक आंख कोसी तटबंध के भीतर रहेगी.
किसानों का कहना है कि उसके बाद जितनी भी सरकारें आईं उन्होंने कोसी की तरफ झांकना तक मुनासिब नहीं समझा, जिसकी वजह से सैकड़ों एकड़ जमीन वाले किसान भी अन्न के दाने को तरसने लगे. इतना ही नहीं सरकार हर साल उन जमीनों का राजस्व भी उन किसानों से वसूलती रही. लेकिन इस बार होने वाले सर्वे में कोसी नदी की धारा बदलने के कारण रैयतों की जमीन आने लगी है.
सरकारी नियम के अनुसार है ये प्रावधान
सरकारी नियम के अनुसार अगर खतियान और नक्शा निर्माण के समय क्षेत्र में नदी हो तो खाता बिहार सरकार के नाम से खुलेगा. इसी बात का विरोध किसान कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि कोसी नदी धारा बदलने के लिए जानी जाती है. इससे पूर्व भी उनकी जमीन बिहार सरकार की हो चुकी है. इस बार फिर नदी ने धारा बदल कर उनकी रैयती जमीन पर बहना शुरू कर दिया है तो ऐसे में अगर उनकी जमीन जाती है तो खाएंगे क्या?
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