48 साल पुरानी जमीन की घेराबंदी करने आए अधिकारियों का किसानों ने किया विरोध, कहा- जान दे देंगे पर जमीन नहीं
किसानों का कहना है कि पटना हाईकोर्ट का जो फैसला होगा वो हमलोगों को मंजूर होगा लेकिन सरकार अगर पुलिस के डंडे का भय दिखा कर जमीन कब्जा करेगी तो हमलोग जान दे देंगे पर जमीन नही देंगे.
पटना: राजधानी के पटनासिटी अनुमंडल के फतुहा औधोगिक क्षेत्र के पास बिहार सरकार की ओर से 48 साल पहले अधिगृहित किए गए 56 एकड़ जमीन पर सोमवार को घेराबन्दी करने गए अधिकारियों और पुलिस को किसानों का विरोध झेलना पड़ा. घेराबंदी करने पहुंचे लोगों को देखकर किसानों ने जमकर हंगामा किया, ऐसे में पुलिस और अधिकारियों ने वापस लौटना उचित समझा.
इधर पुलिस और अधिकारियों के लौटने के बाद विरोध कर रहे किसान जान देंगे, पर जमीन नही देंगे का बैनर लगा कर सरकार के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए. दरअसल, बिहार सरकार के औद्योगिक विभाग (बियाडा) ने 1972 में रायपुरा मौजा से दो चरण में 275 एकड़ जमीन अधिग्रहण कर उद्योग लगाया था, जिसके लिए किसानों ने खुशी से जमीन दे दिया था.
लेकिन उसी वक्त तीसरे चरण में बियाडा ने दरियापुर मौजा से 56 एकड़ जमीन अधिग्रहण किया था, जिसका किसानों ने विरोध किया था क्योंकि किसानों के पास बहुत कम जमीन बची थी. उस वक्त कुछ गरीब किसानों ने मुआवजा लिया, जबकि अधिकांश किसानों अबतक मुआवजा नहीं लिया है. किसान अबतक उस पर खेती कर अपना जीवनयापन रहे हैं.
36 साल बाद 2008 में नीतीश सरकार ने घेराबंदी का टेंडर निकाला, जिसका किसानों ने विरोध किया था तो घेराबंदी रुक गई थी. उसके बाद किसान अपने पक्ष लेकर पटना उच्चन्यायालय गए. इस मामले में दो बहस भी हुई , उसके बाद भी बियाडा ने 2020 में घेराबंदी का नया टेंडर निकाल दिया, जबकि अभी भी अधिग्रहित 275 एकड़ में कई एकड़ जमीन खाली पड़ी है. वहीं सैकड़ों बनी हुई फैक्ट्री बंद हैं.
किसानों ने कहा कि पटना हाईकोर्ट का जो फैसला होगा वो हमलोगों को मंजूर होगा लेकिन सरकार अगर पुलिस के डंडा का भय दिखा कर जमीन कब्जा करेगी तो हमलोग जान दे देंगे पर जमीन नही देंगे.