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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
बिहार विधानसभा चुनाव पर बोले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त- तय समय पर चुनाव कराना संवैधानिक तौर पर अनिवार्य
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी ने कहा कि चुनाव तो एक दिन की गतिविधि है, जबकि बाजार रोज खुले हुए हैं. ऐसे में बाजार की भीड़ को संभालना ज्यादा मुश्किल है, लेकिन चुनाव कराना इससे ज्यादा मुश्किल नहीं है.
नई दिल्लीः कोरोना वायरस महामारी और बाढ़ के कारण चुनाव आयोग द्वारा कुछ राज्यों में एक लोकसभा एवं सात विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव स्थगित किये जाने के बाद आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के समय को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है. इस विषय पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का मानना है कि बिहार चुनावों को 27 नवंबर तक किसी भी हाल में कराना संवैधानिक अनिवार्यता हैय
बिहार चुनाव के विषय पर ‘पीटीआई-भाषा’ ने कुरैशी से बात की-
'विपक्ष की चुनाव टालने की मांग हैरान करने वाली'
सवाल: कोरोना वायरस संकट से कुछ राज्यों में उप चुनाव स्थगित किए गए हैं तो क्या आगामी विधानसभा चुनाव खासकर बिहार चुनाव टल सकता है?
जवाब: उप चुनाव और आम चुनाव में फर्क होता है. विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव निश्चित समयसीमा में कराना अनिवार्य है क्योंकि यह संवैधानिक जरूरत है. बिहार में 27 नवंबर तक चुनाव होना है. इक्का-दुक्का सीटें खाली रहती हैं तो वहां चुनाव टालने से कोई संवैधानिक संकट नहीं आता. ऐसे में बिहार चुनाव नहीं टाला जा सकता.
सवाल: बिहार में ज्यादातर विपक्षी दल चुनाव स्थगित कराने के पक्ष में हैं, इस पर आपकी क्या राय है?
जवाब: मुझे हैरानी है कि विपक्ष कह रहा है कि चुनाव स्थगित करो. विपक्ष का बयान तो इसके उलट होना चाहिए. विपक्ष का प्रयास यह होता है कि जल्द चुनाव हों और वह जीतकर सत्ता में आए. यह बात सच है कि कोरोना वायरस के कारण हालात गंभीर हैं. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि चुनाव को स्थगित करना पड़ेगा. 27 नवंबर तक चुनाव कराना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है.
सिर्फ आपातकालीन स्थिति में टाला जा सकता है चुनाव
सवाल: क्या बिहार चुनाव को कुछ महीने के लिए टालने के संदर्भ में निर्वाचन आयोग के सामने कोई संवैधानिक विकल्प है?
जवाब: संविधान के तहत चुनाव को समयसीमा के बाद टालने का सिर्फ एक कारण हो सकता है जो आपातकाल है. यह आपातकाल दो वजहों से हो सकता है. एक वजह विदेशी आक्रामण है और दूसरी वजह घरेलू बगावत की स्थिति. फिलहाल ऐसे हालात तो हैं नहीं. कोविड-19 का संकट आपातकाल की इस परिभाषा में नहीं आता है.
वैसे, कोविड-19 सिर्फ हिंदुस्तान में तो नहीं है. यह दुनिया भर में है. पिछले चार महीनों में 33 देशों में चुनाव हुए हैं. सब जगह से फीडबैक है कि चुनाव अच्छी तरह हुए, कोई दिक्कत नहीं आई. पोलैंड और दक्षिण कोरिया में तो मत प्रतिशत बहुत ज्यादा रहा. अगर पोलैंड और दक्षिण कोरिया चुनाव करा सकते हैं तो भारत क्यों नहीं करा सकता? चुनाव कराने के मामले में भारत तो विश्वगुरू है.
2014 से ही डिजिटल प्रचार प्रसार हो रहा है
सवाल: कोरोना वायरस संकट में मतदान कराना और डिजिटल चुनाव पर संपूर्ण निर्भरता कितना व्यावहारिक होगा?
जवाब: देखिए, सामाजिक दूरी के नियम का पालन करना सबकी जिम्मेदारी है. बाजार जाएं तो उसके लिए नियम हैं, मंदिर-मस्जिद जाएं तो उसके लिए नियम हैं. चुनाव तो एक दिन की गतिविधि है, बाजार तो रोज खुले हुए हैं. बाजार की भीड़ को संभालना ज्यादा मुश्किल है, लेकिन चुनाव कराना इससे ज्यादा मुश्किल नहीं है.
चुनाव आयोग कह चुका है कि हम बूथ की संख्या बढ़ा देंगे ताकि भीड़ नहीं हो. आज-कल तो स्कूल बंद हैं और दूसरे कई विभाग भी नहीं खुल रहे. इसलिए चुनाव के लिए ज्यादा संख्या में कर्मचारियों की जरूरत को पूरा करने में भी समस्या नहीं होगी.
ऑनलाइन चुनाव प्रचार तो पिछले 10 साल से चल रहा है. 2014 का चुनाव तो वस्तुत: डिजिटल तरीके से ही लड़ा गया था. यह बात भी सही है कि ऑनलाइन प्रचार जमीनी स्तर पर चुनाव प्रचार की जगह पूरी तरह नहीं ले सकता. ऐसे में दोनों का मिश्रण होना चाहिए. सामाजिक दूरी का पालन करते हुए सीमित संख्या में वाहनों के जुलूस और ‘डोर टू डोर’ प्रचार की अनुमति दी जा सकती है.
डाक मतपत्र का विकल्प था अच्छा
सवाल: कोरोना वायरस संकट के समय 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए डाक पत्र से मतदान की सुविधा के आयोग के फैसले और फिर उसे लागू नहीं करने के निर्णय को आप कैसे देखते हैं?
जवाब: तकनीकी रूप से चुनाव आयोग का फैसला सही था. सरकार की तरफ से भी परामर्श है कि 65 साल से ऊपर के लोग बाहर नहीं निकलें. चुनाव आयोग देश का कानूनों का क्रियान्वयन कराता है. उस संदर्भ में डाक मतपत्र वाले आदेश में कोई खराबी नहीं थी. लेकिन राजनीतिक दलों ने कुछ दिक्कतें बताईं. बाद में आयोग को लगा कि 65 साल से ज्यादा उम्र के लाखों मतदाता हैं और इतने ज्यादा डाक मतपत्र का प्रबंधन नहीं हो सकेगा.
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