अघोषित रूप से NDA के खिलाफ सड़क पर उतरे पशुपति पारस, दफादार चौकीदार को मुद्दा बनाने की क्या है वजह?
पशुपति पारस जानते हैं कि 2025 में कोई भी गठबंधन उन्हें तभी सम्मान देगी, जब पासवान समाज का वोट बैंक उनके पास होगा. दफादार चौकीदार के मुद्दे पर पशुपति पारस चिराग को पीछे करने के प्रयास में हैं.

Pashupati Paras: एनडीए की ओर से तरजीह नहीं दिए जाने के बाद भी लगातार एनडीए का पार्ट कहने वाले राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी सुप्रीमो पशुपति पारस (Pashupati Paras) ने अभी तक औपचारिक ऐलान तो नहीं किया, लेकिन बिहार सरकार के विरोध में सड़क पर उतर गए हैं. आरलोजपा सुप्रीमो पशुपति पारस और उनके भतीजे तथा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रिंस राज दोनों आज गर्दनीबाग धरनास्थल पर पहुंचे जहां दफादार चौकीदार की मांगों को समर्थन करते हुए बिहार सरकार के खिलाफ जमकर हमला किया.
दफादार चौकीदार में 80% पासवान समाज के लोग
बता दें कि पिछले एक वर्षों से दफादार चौकीदार अपनी सात सूत्री मांगों को लेकर बिहार सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. इनकी मुख्य मांग यह है कि दफादार चौकीदार की बहाली जो पूर्व में हुई थी उसके बाद उनके आश्रितों को बहाल किया जाता रहा है, लेकिन बिहार सरकार ने उसमें बदलाव किया है और उसकी बहाली प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसका विरोध दफादार चौकीदार लगातार करते आ रहे हैं. इसमें ज्यादातर दलित समुदाय के लोग हैं और उसमें भी 80% से ज्यादा पासवान समाज के लोग हैं.
अब 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव है तो पासवान के नेता के रूप में पहचान रखने वाले चिराग पासवान दफादार चौकीदार की मांगों के लिए सबसे पहले मुख्यमंत्री से मिले था. हालांकि उस पर अभी तक सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है तो एनडीए से दूर रहने वाले पशुपति पारस दफादार चौकीदार के मुद्दे को लेकर सड़क पर आ गए हैं. पशुपति पारस ने कहा कि 95% इसमें पासवान समाज के लोग हैं बिहार सरकार पासवान समाज की विरोधी है और उसके हकों को छीनने का प्रयास कर रही है, जिसका हम लोग पुरजोर विरोध करते हैं.
पारस ने कहा कि हम बिहार सरकार से मांग करते हैं कि दफादार चौकीदार की बहाली के लिए पहले जो प्रक्रिया थी, वही प्रक्रिया लागू की जाए. ऐसा माना जाता है कि बिहार में दलित नेता के रूप में चिराग पासवान को प्राथमिकता दी जाती है. खासकर पासवान समुदाय के लोग चिराग को अपना नेता मानते हैं, लेकिन दफादार चौकीदार के मुद्दे पर पशुपति पारस चिराग को पीछे करने के प्रयास में है और इसके लिए अब बस एनडीए से अलग होकर बिहार सरकार के खिलाफ आंदोलन में उतर चुके हैं .
पासवान समाज के वोट बैंक पर है नजर
पशुपति पारस जानते हैं कि 2025 में कोई भी गठबंधन उन्हें तभी सम्मान देगी, जब उनके समाज का वोट बैंक उनके पास होगा और यह दफादार चौकीदार का एक बड़ा मुद्दा है. अगर यह मुद्दा बरकरार रहा और इसमें थोड़ी सी भी सफलता मिली तो उनके समाज के लोगों का वोट बैंक उनके पाले में आ सकता है और यही वजह है कि पशुपति पारस अब इस मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहते हैं.
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