(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ganga Dussehra: पटना समेत बिहार के अन्य गंगा घाटों पर उमड़ी भीड़, आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे श्रद्धालुओं से भक्तिमय हुआ महौल
Ganga Dussehra Today: पटना समेत सूबे के अन्य गंगा घाटों पर आज सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही. श्रद्धालुओं ने पावन पर्व गंगा दशहरे पर सूर्योदय की लालिमा के बीच स्नान किया.
पटना: राजधानी पटना समेत सूबे के अन्य गंगा घाटों पर गुरुवार की सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही. मन में आस्था, चेहरे पर उल्लास और जुबां पर हर-हर गंगे कहते हुए श्रद्धालुओं ने पावन पर्व गंगा दशहरे (Ganga Dussehra) पर सूर्योदय की लालिमा के बीच स्नान किया. साथ ही मान्यता के अनुसार श्रद्धालुओं ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और परिवार में सुख शांति की कामना की.
दरअसल, यह हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है. आज के दिन गंगा स्नान करना कर पूजा-पाठ करना बहुत लाभकारी माना गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हिंदी महीना के ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी. इस दिन गंगा स्नान करके व्यक्ति हर तरह के पापों से मुक्ति पा सकता है. इस साल गंगा दशहरा पर खास संयोग बना है. इस बार गजकेसरी के साथ महालक्ष्मी योग लग रहा है. ऐसे में गंगा स्नान करने और दान करने से दोगुना लाभ मिलेगा.
ये भी पढ़ें- Nawada News: बिहार की चौमुखी के चेहरे पर लौटी मुस्कान, गांव वालों के लिए अभिनेता सोनू सूद बन गए भगवान
ये है पौराणिक मान्यता
गंगा को पृथ्वी पर आने की पौराणिक कथा के बारे में हिंदू ग्रंथों में बताया जाता है कि इच्छुक वंश के राजा भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का संकल्प लिया था. वे हिमालय में चले गए और कठोर तप करने लगे. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा धरती पर आने के लिए तैयार हो गईं. मगर ब्रह्माजी ने बताया कि गंगा का वेग इतना तेज है कि इससे धरती पर प्रलय आने का खतरा होगा. इस वेग को संभालने की ताकत सिर्फ भगवान शिव में थी. भागीरथ फिर तपस्या में जुट गए और भगवान शिव का ध्यान किया. शिवजी प्रसन्न होकर उनके सम्मुख प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा. भागीरथ ने बताया कि वह गंगा का धरती पर अवतरण चाहते हैं, लेकिन उसके वेग को सिर्फ आप ही संभाल सकते हैं. तब भगवान शिव ने भागीरथ का आग्रह मान लिया.
32 दिन तक भगवान शिव की जटाओं में विचरण करती रहीं गंगा
इसके बाद ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से गंगा की धारा छोड़ी और शिव ने उसे अपनी जटाओं में समेट लिया. जिस दिन गंगा ने शिवजी की जटाओं में प्रवेश किया, वो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी. इसके बाद 32 दिन तक गंगा भगवान शिव की जटाओं में विचरण करती रहीं. फिर राजा भागीरथ और सभी देवों ने शिव से गंगावतरण के लिए आग्रह किया. शिवजी ने ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को अपनी एक जटा को खोल दिया और गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हो गया. गंगा की एक धारा हिमालय से निकलने लगी.