Khudiram Bose: एक रात के लिए क्यों खोला जाता है मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा का गेट? खुदीराम बोस से जुड़ा है इतिहास
Muzaffarpur News: मुजफ्फरपुर जिले के सभी आलाधिकारी मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा पहुंचे. उन्होंने अमर शहीद खुदी राम बोस को याद की और श्रद्धांजलि दी.
Khudiram Bose: मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा के गेट को हर साल की भांति 11 अगस्त की रात में आम लोगों के लिए खोल दिया गया. इस दौरान जिलाधिकारी सुब्रत सेन, एसएसपी राकेश कुमार समेत सभी आलाधिकारी जेल में पहुंचे. 11 अगस्त की अहले सुबह 3 बज कर 50 मिनट पर परंपराओं के अनुरूप अमर शहीद खुदाराम बोस को श्रद्धांजलि दी गई. आज के ही दिन शहीद खुदीराम बोस को मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा में फांसी दी गई थी. इस दौरान पश्चिम बंगाल के मेदनापुर शहिद के गांव से भी बहुत से लोग आए हुए थे.
आजादी के लिए सबसे पहला बम धमाका करने वाले वीर सपूत को याद किया गया. साथ ही उनकी अंतिम इच्छा को भी पूरी की गई. बंगाल की धरती से चंदन और तुलसी को लाकर उनके शहर में लगाया गया जो शहादत देने से पहले उनकी अंतिम इच्छा थी.
खुदीराम बोस ने दी थी सबसे कम उम्र में शहादत
11 अगस्त 1908 को अमर शहीद को अंग्रेजों ने फांसी दी थी जिन्हें आजादी की बलिबेदी पर सबसे कम उम्र में शहादत देने का गौरव हासिल हुआ है. देश की आजादी के बाद से जिला के आलाधिकारियों, पश्चिम बंगाल के मैदापुर गांव से आए अमर शहिद खुदीराम बोस के ग्रामीण, समाजसेवी और आम लोगों के लिए जेल के दरवाजे खोल दिए जाते हैं. शहीद खुदीराम बोस देश के पहले ऐसे वीर सपूतों में शूमार हैं जिन्हें आजादी की लड़ाई में फांसी दी गई थी.
मुजफ्फरपुर में दी गई थी फांसी
बता दें कि 11 अगस्त 1908 को बिहार के मुजफ्फरपुर जेल में 18 साल के क्रांतिकारी बंगाली युवक का आखरी दिन था. इसी दिन इस नौजवान के नाम के आगे अमर शहीद लग गया. पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर से आजादी की लडा़ई लड़ने 16 साल का खुदीराम बोस मुजफ्फरपुर आए थे. 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश किंग्जफोर्ड की बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंकने का साहसी काम खुदीराम बोस और इनके दोस्त प्रफुल्ल चाकी ने किया था. दुर्भाग्यवश किंग्जफोर्ड उस बग्घी में नहीं था और बच गया और उसकी जगह एक अंग्रेज अधिकारी की पत्नी मारी गई.
इस घटना के बाद खुदीराम पकडे़ गए जिस दौरान प्रफुल्ल चाकी पूसा स्टेशन पर अंग्रेजों के साथ लड़ते लड़ते शहिद हो गए थे और खुदी राम बोस को पकड़ लिया गया था उसी अपराध के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई. खुदीराम से जब उनकी आखरी इच्छा बताने को कहा गया तो उन्होने अपने मातृभूमि की मिट्टी और भगवान के चरणामृत की इच्छा जताई थी.
खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के नौजवान थे जब उन्हे फांसी पर चढ़ाया गया था. मुजफ्फरपुर की धरती आज भी भारत के इस वीर सपूत को हर साल याद करती है और रीति रिवाज से इनके शहादत दिवस को मनाया जाता है.
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