गया: जिले के बोधगया प्रखंड के बकरौर गांव में पिछले 11 सालों से स्थानीय रामजी मांझी महादलित परिवार के बच्चों को निःशुल्क हिंदी,अंग्रेजी और तिब्बती भाषा सिखा रहे. रामजी मांझी महादलित परिवार के बच्चों व अभिभावकों से भीख नहीं मांगने की शर्त पर बच्चों को पढ़ाते हैं. यहां पढ़ने वाले कई बच्चे यहां आने से पहले बोधगया के विभिन्न मंदिरों के सामने भीख मांगा करता था. सन् 1991 में महादलित बच्चों को पढ़ाने के लिए इस विद्यालय को खोला गया था. अभी कुल 170 बच्चों को बिना फीस के शिक्षा दी जा रही है.
महादलित बच्चों को पढ़ाने के लिए खोला गया था
इसके भवन को देख आप सोचने लगेंगे की यह सरकारी विद्यालय है या कोई निजी विद्यालय. दरअसल यह चरवाहा विद्यालय का भवन है. ये बिहार के तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव के वक्त 1991 में खुला था. स्कूल ठंडे बस्ते में चली गई तो भवन धीरे-धीरे जर्जर होने लगा. तभी बकरौर गांव के ही रहने वाले मांझी ने साल 2011 में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का काम शुरू किया. उन्होंने बताया कि वह इसके पहले किसी तिब्बती के यहां घर में काम करने के लिए बाहर चले गए थे.
इसके बाद धीरे-धीरे वह तिब्बती भाषा को पूरी तरह सीख गए. उसी क्रम में किसी तिब्बती महिला से उनकी शादी हो गई और वह बाहर ही रहने लगे. गांव वापस आए तो देखा महादलित परिवार अभी भी शराब बनाने में जुटे थे.उन्होंने कहा कि वो कभी कभार वापस अपने गांव आते थे तो देखा कि महादलित परिवार अभी भी देसी शराब का निर्माण में ईंट भट्टे पर मजदूरी करने में जुटे है. बच्चे बोधगया के विभिन्न मंदिरों के सामने विदेशियों से भीख मांगते हैं. इसे देख वह गांव में रहने लगे. महादलित परिवार को समझा कर उनके बच्चों को खुद निःशुल्क पढ़ाने लगे ताकि यह बच्चे आत्मनिर्भर बन सकें.
170 बच्चों को निःशुल्क शिक्षा
इसके बाद फिर हिंदी,अंग्रेजी और तिब्बती भाषा को वह बच्चों को पढ़ाने लगे. आज करीब 170 बच्चों को वह निःशुल्क शिक्षा दे रहे. रामजी मांझी के द्वारा महादलित परिवार के बच्चों व अभिभावकों से भीख नहीं मांगने की शर्त पर बच्चों को पढ़ाते हैं. यहां पढ़ने वाले कई बच्चे यहां आने से पहले बोधगया के विभिन्न मंदिरों के सामने भीख मांगा करता था.
इधर, बच्चों ने बताया कि उसके पिता उसे जबरन ईंट भट्ठा पर काम करने के लिए भेज रहे थे. रामजी मांझी ने परिजनों को समझा कर उनके बच्चों को यहां लाया. शिक्षा दे रहे हैं. वहीं कुछ बच्चे बताते हैं कि पहले वह भीख मांगने का काम करते थे. अब हिंदी,अंग्रेजी और तिब्बती भाषा को सीख रहे हैं.
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