Dragon Fruit Cultivation: यह देश का स्मार्ट काल है और किसान भी स्मार्ट होकर काम कर रहे हैं कि कैसे किसी चीज की खेती से वो मुनाफा कमा सकें. ऐसे में जब कृषि के क्षेत्र में बेहतर कमाई की बात होती है तो ड्रैगन फ्रूट की खेती याद आने लगती है. बिहार के किशनगंज में ड्रैगन फ्रूट से किसान लाखों रुपये कमा रहे हैं. कह सकते हैं कि इस फसल से किसानों की तकदीर बदल सकती है. पढ़िए काम की अच्छी खबर.
दरअसल किशनगंज के ठाकुरगंज नगर पंचायत के वार्ड नंबर एक के रहने वाले नागराज नखत की किस्मत ड्रैगन फ्रूट की खेती ने बदल दी है. वो ड्रैगन फ्रूट की खेती से हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं. जेपी आंदोलन में अपनी भूमिका निभाने वाले नागराज नखत आज इलाके में किसानों के लिए आइकॉन बन चुके हैं.
केले की खेती को दी व्यावसायिक पहचान
75 वर्षीय नागराज नखत ने बताया कि उन्होंने कोलकाता से बी.कॉम की पढ़ाई की. 1968 में जब पढ़ाई के बाद कोलकाता से ठाकुरगंज आए तो उन्होंने परंपरागत कार्य व्यवसाय छोड़कर खेती करने की ठानी. इस बात पर उनके परिजनों ने भी काफी सहयोग किया और भुसावल से केले की पुली लाकर इलाके में पहली बार सिंगापुरी केले की खेती शुरू की. अब तक जूट, धान और गेहूं की फसल की खेती करने को मजबूर इलाके के किसानों को नकदी फसल की तरफ आकर्षित कर दिया. स्थिति यह हो गई कि 1980 के अंतिम दशक और नब्बे के शुरुआती दशक में केले की खेती ने ठाकुरगंज को संपूर्ण देश में एक अलग पहचान दी.
आज ड्रैगन फ्रूट से हो रही लाखों में कमाई
नागराज नखत कहते हैं कि करीब 10 वर्षों तक खेती छोड़ने के बाद पारिवारिक व्यवसाय में व्यस्त होने के बाद उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और 2014 से वो ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं. शुरुआत केवल 100 पेड़ से हुई और आज पांच एकड़ में इसकी खेती कर रहे हैं. आज बागान को देखने के लिए खेती में दिलचस्पी रखने वाले लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. वो मार्गदर्शन भी देते हैं. बिहार के राज्यपाल, पटना हाई कोर्ट के न्यायाधीश समेत बिहार सरकार के कई मंत्री भी पहुंच चुके हैं.
40 लाख रुपये तक फसल बिकने का अनुमान
नागराज कहते हैं कि शुरुआत में दाम अच्छा मिल रहा था, लेकिन इन दिनों खेती बढ़ने के बाद अब किसान ड्रैगन फ्रूट को 150 से 200 रुपये किलो में बेच रहे हैं. इस बार उन्होंने कुल पांच एकड़ में खेती की है. इस वर्ष 40 लाख रुपये तक की फसल बिकने का अनुमान है. बताया कि किशनगंज शहर के मार्केट में खपत नहीं है. इसके लिए सिलीगुड़ी जाना पड़ता है.
उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट के एक पौधे से 20 साल तक फल लिया जा सकता है. दूसरी बात कि इसका इंफ्रास्ट्रक्चर पक्का होता है, तो हर साल इस पर भी कोई खर्च नहीं होता, लेकिन हर साल इन पौधों के रखरखाव, खाद, पानी आदि पर एक लाख रुपये खर्च हो ही जाते हैं. बिहार सरकार ने भी पिछले दिनों घोषणा की कि वह ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसानों को लागत खर्च का 50 प्रतिशत हिस्सा बतौर सब्सिडी देगी. सरकार ने अनुमान लगाया है कि एक हेक्टेयर में लगभग 1.25 लाख रुपये लागत आती है. किसानों की मानें तो एक एकड़ में ही शुरुआती लागत लगभग पांच लाख रुपये है, लेकिन सरकार एक हेक्टेयर यानी ढाई एकड़ की लागत महज 1.25 लाख रुपये बता रही है.
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