पटना: गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव (Gopalganj By polls) के लिए तीन नवंबर को वोटिंग होगी. छह नवंबर को नतीजे आएंगे. गोपालगंज में सीधा मुकाबला बीजेपी (BJP) और आरजेडी (RJD) के बीच माना जा रहा. बीजेपी से कुसुम देवी उम्मीदवार हैं जबकि आरजेडी ने मोहन गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है. इस उपचुनाव को ओवैसी-साधु यादव (Sadhu Yadav) की एंट्री ने और भी ज्यादा दिलचस्प बना दिया है. एआईएमआईएम की ओर से अब्दुल सलाम उम्मीदवार हैं. वहीं बीएसपी की ओर से साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव यानी कि लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की भाभी चुनावी मैदान में हैं.


एआईएमआईएम का बदल गया चुनाव चिह्न 


ओवैसी की पार्टी को एक झटका भी लगा है. एआईएमआईएम प्रत्याशी का चुनाव चिह्न बदल दिया गया है. ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम  के उम्मीदवार अब्दुल सलाम हैं. दूसरे प्रदेश की पार्टी का सिंबल लेकर चुनाव लड़ने की अनुमति भारत निर्वाचन आयोग से लेनी होती है. प्रत्याशी द्वारा अनुमति नहीं लेने के कारण उनका चुनाव चिह्न बदल दिया जाता है. इस उपचुनाव में एआईएमआईएम  के उम्मीदवार को उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न नहीं दिया गया, लेकिन तब भी ओवैसी एक बड़े फैक्टर गोपालगंज में साबित हो सकते हैं. 


करीब 65000 मुस्लिम वोटर्स की संख्या


ओवैसी के बड़े फैक्टर साबित होने के पीछे का कारण यहां की मुस्लिम आबादी हो सकती है. गोपालगंज में मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 65000 है. ओवैसी की पार्टी इन वोटरों को साधने में लगी हुई है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम बहुल सीमांचल में सब को चौंकाकर जीत का झंडा गाड़ा था. पार्टी के पांच विधायक जीते थे. यही कारण था कि आरजेडी सत्ता से दूर रह गई थी, लेकिन बाद में चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे. 


बीएसपी से चुनाव लड़ रहीं लालू यादव के साले साधु यादव की पत्नी


पूर्व सांसद एवं लालू यादव के साले साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव बीएसपी से चुनाव लड़ रहीं हैं. गोपालगंज में यादवों के बीच साधु यादव की अच्छी पकड़ है. वह स्थानीय हैं. गोपालगंज लालू यादव का गृह जिला होने के बावजूद 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में यहां पर महागंठबंधन से कांग्रेस लड़ी थी और तीसरे नंबर पर रही थी. 2020 में साधु यादव बीएसपी से चुनाव लड़कर 41 हजार वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. गोपालगंज में करीब 45000 यादव वोटर हैं. 2004 के बाद आरजेडी यहां कभी नहीं जीत पाई है. 


क्या हो सकता बीजेपी के लिए प्लस पॉइंट?


साधु यादव यहां आरजेडी से 1995 में विधायक और 2004 में सांसद बने थे. लालू यादव से अनबन के बाद आरजेडी से अलग हो गए थे. साधु यादव और ओवैसी फैक्टर काम कर गया तो गोपालगंज में बीजेपी  की राह आसान हो सकती है. गोपालगंज सीट पर चार बार से लगातार बीजेपी के सुभाष सिंह जीत रहे थे. सिंह बिहार सरकार में मंत्री भी थे, लेकिन लंबे समय से बीमार थे. उनके निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है. 


बीजेपी ने खेला है सहानुभूति वोट फैक्टर


सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को बीजेपी से उम्मीदवार बनाया है जिससे सहानुभूति वोट पार्टी को मिलेगा. सुभाष सिंह राजपूत थे. गोपालगंज सीट पर करीब 56 हजार सवर्ण वोटर हैं. आरजेडी  उम्मीदवार मोहन गुप्ता वैश्य जाति से आते हैं. यहां वैश्य वोटरों की तदाद ज्यादा है. वह वैश्य जाति में यहां लोकप्रिय हैं और बड़े व्यवसायी भी हैं. 


आरजेडी के वैश्य उम्मीदवार की मजबूत है दावेदारी


वैश्य जाति बीजेपी  के वोटर माने जाते हैं, लेकिन मोहन गुप्ता के मैदान में उतरने से यह महागठबंधन की तरफ भी रुख कर सकते हैं. जेडीयू आरजेडी के साथ आने से इनकी दावेदारी भी मजबूत बताई जा रही. वह बिहार वैश्य महासंघ के उपाध्यक्ष भी हैं. वहीं इस विधानसभा सीट पर पिछड़ों का वोटबैंक करीब 50 हजार से ज्यादा है.


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