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29 साल पहले कैसे की गई थी बिहार में एक डीएम की हत्या, दिल्ली भी उस दिन सन्न रह गई

जी कृष्णैया हत्याकांड 29 साल बाद फिर सियासी सुर्खियों में है. हत्याकांड के मुख्य आरोपी आनंद मोहन को जेल से हमेशा के लिए रिहा कर दिया गया है. आइए हत्याकांड के दिन और उससे पहले क्या हुआ था, जानते हैं.

तारीख 5 दिसंबर 1994 और दिन सोमवार. उत्तर बिहार में ठंड की दस्तक हो गई थी, लेकिन सियासी तपिश ने इस ठंड को बेजार कर दिया था. 4 साल से जातीय संघर्ष में झुलस रही बिहार में बड़ा कांड हो गया. कांड इतना बड़ा कि दिल्ली तक सन्नाटा छा गया. 

बिहार पीपुल्स पार्टी के छोटन शुक्ला की हत्या के बाद मुजफ्फरपुर में उनके समर्थक जुलूस निकालकर शव का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे. इससे बेखबर गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया नेशनल हाईवे से गोपालगंज लौट रहे थे. कृष्णैया हाजीपुर में चुनाव से जुड़े एक मीटिंग में शामिल होने आए थे. 

कृष्णैया का काफिला मुजफ्फरपुर के खबरा में निकल रहे जुलूस में फंस गया. फंसा ऐसा कि काफिले की गाड़ी तो बाद में निकल गई, लेकिन कृष्णैया जिंदा नहीं निकल पाए. काफिले के BHQ 777 नंबर की एंबेसडर कार से निकला तो सिर्फ पत्थर से कुचला एक डीएम का शव.

कृष्णैया हत्याकांड 29 साल बाद एक बार फिर सियासी सुर्खियों में है. हत्याकांड के मुख्य आरोपी आनंद मोहन को जेल से हमेशा के लिए रिहा कर दिया गया है. आइए इस स्टोरी में जानते हैं कि कृष्णैया की हत्या से पहले बिहार की सियासत में क्या हुआ था?

लालू ने शुरू किया सोशल जस्टिस अभियान
1990 में पिछड़ों को पिछाड़ कर कांग्रेस भी बिहार की सत्ता से भी पिछड़ गई. 1980 से लेकर 1990 तक बिहार में कांग्रेस ने 5 मुख्यमंत्री बनाए, लेकिन इनमें से एक भी पिछड़ा और दलित वर्ग से नहीं था. 1990 में जनता दल से लालू यादव मुख्यमंत्री बने.

मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव ने सोशल जस्टिस अभियान की शुरुआत की. लालू के इस अभियान को सवर्ण नेताओं ने अपने खिलाफ माना. सवर्णों का कहना था कि इस कथित अभियान से यादव जाति के लोग सवर्णों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं.

जनता दल में ही शामिल महिषी से विधायक आनंद मोहन ने लालू यादव के इस अभियान के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. आनंद मोहन के इस बगावत का कांग्रेस ने भी समर्थन किया. आनंद मोहन ने जनता दल से नाता तोड़ते हुए खुद की पार्टी बनाने की घोषणा कर दी.

हेमंत शाही की हत्या और आनंद मोहन के आवास पर छापे
1992 में वैशाली से विधायक हेमंत शाही को गरौल प्रखंड के परिसर में ही गोली मारकर हत्या कर दी गई. शाही की हत्या से वैशाली उबलने लगा. इसी बीच आनंद मोहन के सहरसा आवास पर सरकारी एजेंसी की रेड पड़ गई.

आनंद मोहन परिवार ने लालू यादव को जिम्मेदार बताया. आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने रेड के दौरान अधिकारियों पर गंभीर आरोप भी लगाए. आनंद मोहन ने अपने घर पर छापे को सवर्णों के अपमान से जोड़ दिया.

रेड खत्म होने के बाद उन्होंने ऐलान किया कि वैशाली में डेरा जमाएंगे, जो लालू यादव का गढ़ है. हेमंत शाही की हत्या के बाद यहां पर उपचुनाव की घोषणा हो गई थी. हेमंत शाही की पत्नी वीणा का मुकाबला जनता दल के उम्मीदवार से था.

आनंद मोहन की रणनीति और भूमिहार-राजपूत गठजोड़ ने लालू यादव को बड़ी पटखनी दी.  

5 साल में 1000 राजनीतिक हत्याएं, इनमें अधिकांश अगड़ा
लालू के शासन में कांग्रेस विपक्ष में थी. पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने एक बयान देकर सियासी हंगामा मचा दिया. मिश्रा ने कहा कि लालू यादव के शासन काल में 5 साल में 1000 राजनीतिक हत्याएं हुई है. पत्रकारों को उस वक्त हत्याओं का आंकड़ा सौंपते हुए मिश्रा ने कहा कि सभी जातीय संघर्ष में मारे गए हैं. 

मिश्रा ने कहा कि जातीय संघर्ष की वजह से ही विधायक त्रिलोकी हरिजन, सांसद नगीना राय, सांसद ईश्वर चौधरी, विधायक हेमंत शाही, कांग्रेस नेता ठाकुर केएन सिंह और सरफराज अहमद की हत्या हुई है. मिश्रा का बयान सियासी बवाल में घी का काम किया और उत्तर बिहार में सवर्ण एकजुट होने लगा.

इधर, आनंद मोहन ने अलल-ऐलान किया सवर्णों को कुछ हुआ तो अधिकारी और पुलिसकर्मी छोड़े नहीं जाएंगे. मोहन का बंदूक उठाए तस्वीर अखबारों में उस वक्त खूब छपा. 

अगड़ों की आवाज बनी बिहार पीपुल्स पार्टी
1993 में जनता दल से नाता तोड़ने के बाद आनंद मोहन ने बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन किया. उत्तर बिहार में धीरे-धीरे यह पार्टी अगड़ों की आवाज बन गई. राजपूत बिरादरी के आनंद मोहन ने सवर्ण के अन्य जातियों के नेताओं को जोड़ना शुरू किया.

इसी बीच वैशाली में उपचुनाव की घोषणा हो गई. आनंद मोहन ने अपनी पत्नी लवली आनंद को यहां से उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया. आनंद के इस काम में सहयोग दिया अंडरवर्ल्ड माफिया छोटन शुक्ला ने.

लालू ने भी राजपूत की काट खोज ली और सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा को मैदान में उतार दिया, लेकिन भूमिहार और ठाकुर का समीकरण आनंद के पक्ष में चला गया. लवली आनंद 30 साल की उम्र में चुनाव जीत कर सांसद बन गई.

लवली के चुनाव जीतने के बाद आनंद मोहन ने लालू को सत्ता से बेदखल करने का ऐलान कर दिया. मुजफ्फरपुर के मशहूर लंगट सिंह कॉलेज के बाहर विजयी जुलूस में मोहन ने 6 महीने बाद लालू को सत्ता से हटाने का संकल्प लिया. इसके बाद पूरे उत्तर बिहार में बिहार पीपुल्स पार्टी का दबदबा बढ़ने लगा.

मुजफ्फरपुर में छोटन शुक्ला समेत 5 ढेर
वैशाली उपचुनाव के बाद छोटन शुक्ला आनंद मोहन का दाहिना हाथ बन गया. माफियागिरी से उकता कर उसने भी राजनीति में आने की तैयारी शुरू कर दी. चंपारण की भूमिहार बहुल केसरिया सीट से आनंद मोहन ने उसे लड़ने भेजा. केसरिया से उस वक्त विधायक थे सीपीआई के यमुना यादव.

4 दिसंबर को चुनाव प्रचार कर छोटन शुक्ला 5 साथियों के साथ मुजफ्फरपुर लौट रहे थे. रात 8-9 बजे के बीच शहर के संजय सिनेमा के पास पुलिसकर्मियों के भेष में कुछ लोगों ने एंबेसडर कार रुकवाई. गाड़ी के रुकते ही फायरिंग शुरू हो गई. एके-47 से करीब 100 राउंड की फायरिंग की गई.

देखते ही देखते छोटन शुक्ला और उसके 5 साथी वहीं ढेर हो गए. इस हत्याकांड में नाम आया लालू प्रसाद के करीबी बृज बिहारी प्रसाद की. बृज बिहारी सरकार में मंत्री भी थे. छोटन की हत्या के बाद पूरे उत्तर बिहार में कर्फ्यू लगा दिया गया. छोटन शुक्ला के भाई भुटकुन ने बदला लेने की कसम खाई. 

भगवानपुर चौराहे पर आनंद मोहन का बगावती भाषण
जी कृष्णैया की हत्या मामले में पुलिस ने एक चार्जशीट फाइल की. इसमें कहा गया कि छोटन शुक्ला की हत्या के बाद मुजफ्फरपुर के भगवानपुर चौराहे पर आनंद मोहन ने एक पब्लिक भाषण दिया.

आनंद मोहन ने भाषण में कहा कि मुजफ्फरपुर और चंपारण के एसपी ने लालू यादव के साथ मिलकर यह साजिश रची है. चुनाव के बाद लालू यादव तो बाहर भाग जाएगा, लेकिन अधिकारी यहीं कूटे जाएंगे. 

आनंद मोहन ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि एक-एक अधिकारियों से बदला लिया जाएगा. भीड़ में इसके बाद बदला-बदला का नारा गूंज उठा. छोटन का भाई भुटकुन भी उस वक्त आनंद के साथ ही था.

हाजीपुर से मतदाता पर्ची लेकर गोपालगंज जा रहे थे कृष्णैया
बिहार में चुनाव की तैयारी में सभी जिलाधिकारी जुटे हुए थे. 1985 बैच के आईएएस अधिकारी कृष्णैया लालू यादव के गृह जिले गोपालगंज के जिलाधिकारी थे. 

कृष्णैया सोमवार (5 दिसंबर 1994) को हाजीपुर से मतदाता पर्ची लेने के बाद अपनी कार से गोपालगंज जा रहे थे. उनके अंगरक्षक भी इस दौरान साथ ही चल रहा था.

पत्थर से कुचला और फिर भुटकुन ने गोली मार दी
शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक कृष्णैया के ड्राइवर ने आनंद मोहन के कहने पर गाड़ी रोकी थी. गाड़ी के रुकते ही पीपुल्स पार्टी के समर्थक कृष्णैया के अंगरक्षकों पर हमला कर देते हैं. यह देख कृष्णैया गाड़ी से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं, लेकिन तब तब पगलाई भीड़ कृष्णैया पर भी अटैक कर देती है.

भीड़ पत्थर से कुचलकर कृष्णैया की हत्या कर देती है. इतना ही नहीं, कृष्णैया किसी भी तरह जिंदा न बचे, इसके लिए छोटन के भाई भुटकुन डीएम पर फायरिंग भी करता है. इस घटना के बाद पूरे देश में हंगामा मच जाता है. घटना स्थल से 50 किमी दूर से आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली आनंद को गिरफ्तार किया जाता है.

पुलिस चार्जशीट में आनंद मोहन, लवली आनंद, भुटकुन शुक्ला, मुन्ना शुक्ला को आरोपी बनाया गया.

अब कहानी जी कृष्णैया की...
1985 बैच के आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया का जन्म संयुक्त आंध्र प्रदेश के महबूब नगर में हुआ था. कृष्णैया के पिता एक कुली थे. बचपन में कृष्णैया भी अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए कुली का काम करते थे. 

शुरुआती पढ़ाई-लिखाई के बाद कृष्णैया ने पत्रकारिता का कोर्स किया. इसी दौरान उनकी नौकरी एक विभाग में क्लर्क के रूप में लग गई. क्लर्क की नौकरी करने के दौरान ही कृष्णैया का सिलेक्शन आईएएस में हो गया.

बतौर जिलाधिकारी कृष्णैया को चंपारण का प्रभार मिला. वहां उन्होंने जमीन विवाद सुलझाने के लिए बेहतरीन काम किया, जो बिहार में उस वक्त एक बड़ी समस्या थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव ने कृष्णैया को अपने गृह जिले गोपालगंज का प्रभार सौंपा. 

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