Guru Gobind Singh Jayanti: पटना के बाल लीला गुरुद्वारा में लगे करौंदे के पेड़ का है अद्भुत रहस्य, 350 सालों से है हरा-भरा
Patna Bal Leela Gurudwara: आज गुरु गोबिंद सिंह की 356 वीं जयंती मनाई जा रही है. बाल लीला गुरुदवारे में लगा ये करौंदे का ये पौधा सिख समुदाय के लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है.
पटना: सिख समुदाय के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) जी महाराज की आज गुरुवार को 356 वीं जयंती है. यह पटना के पटना साहिब तख्त हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा में धूमधाम से मनाई जा रही. इस जयंती को 27 दिसंबर से 29 दिसंबर तक के प्रकाश पर्व के रूप में सिख समुदाय उत्साह के साथ मना रहे हैं. पटना साहिब गुरु गोविंद सिंह की जन्म स्थली है. गुरु गोबिंद सिंह की बाल अवस्था पटना साहिब में ही गुजरी थी. 13 वर्षों तक वे पटना साहिब में रहे थे. इस दौरान उनकी बहुत ही यादें जुड़ी हैं. उनमें से एक है बाल लीला गुरुद्वारा में लगा करौंदा का पौधा.
करौंदे का पेड़ 350 साल पुराना
बताया जाता है कि ये पौधा लगभग 350 साल से अभी तक हरा भरा है और सिख समुदाय के लोगों के लिए यह वरदान से कम नहीं है. श्रद्धालु बलदेव सिंह बताते हैं कि इस पौधे को गुरु महाराज ने लगाया था. कहा जाता है कि गुरु महाराज को दातुन करने के लिए माता विशंभरा ने करौंदा का डंठल दिया था जिसे गुरु महाराज ने जमीन में गाड़ दिया था. इसके कुछ दिनों बाद वह डंठल पौधा बन गया और अभी तक वह करौंदे का पेड़ हरा भरा है. बुजुर्ग सिख समुदाय के लोग बताते हैं कि हम लोग जैसे इस पौधे को बचपन से देख रहे थे. वैसे आज भी देख रहे हैं. जिसे संतान नहीं हो रहा है तो जो कोई इस पौधे के पत्ते को या फल को खाता है उसे अवश्य संतान होती है.इस पौधे के पत्ते और फल को खाने से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. बाहर से आए श्रद्धालु इस करौंदे के पत्ते और फल को प्रसाद के रूप में अपने घर पर ले जाते हैं .
आज भी वैसा ही है गुरु महाराज का पलंग और हथियार
इसके अलावा बाल लीला गुरुद्वारा में गुरु महाराज का पलंग अभी तक वैसा ही है जैसा तब रहता था जब गुरु महाराज उसपर सोते थे. उनके बचपन के खेलने के हथियार भी बाल लीला गुरुद्वारा में मौजूद हैं. बताया जाता है कि गुरु गोविंद सिंह महाराज तख्त हरमंदिर साहिब के स्थान पर जन्म लिए थे और पास में ही विशंभरा माता नाम की एक महिला के यहां खेलने जाते थे. विशंभरा के पास कोई संतान नहीं थी. इसलिए गुरु गोबिंद सिंह को वह प्यार करती थी. गुरु महाराज के लिए वह गुरु गोबिंद सिंह की पसंद के चना की घुघनी पूरी भी बनाती थी जो आज भी बाल लीला गुरुद्वारा में प्रसाद के रूप में मिलता है. विशंभरा माता और पति फतेहचंद मेनी को कोई संतान नहीं थी. गुरु गोविंद सिंह को प्यार करने के बाद गुरु महाराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया था जिसके बाद उसे बच्चा हुआ था. माता विशंभरा के घर को ही आज बाल लीला गुरुद्वारा के नाम से जाना जाता है.
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