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कोसी तटबंध के कई गांव में खाट के भरोसे है स्वास्थ्य व्यवस्था, केवल चुनाव के समय नेता जी को आती है क्षेत्र की याद

कोसी नदी से घिरे कई गांव की स्थिति यह है कि पोलियो ड्रॉप पिलाने के अलावा बच्चों को डीपीटी, खसरा आदि के टीके भी नहीं लग पाते. किसी बच्चे के बीमार होने पर लोग पहले झाड़फूंक करने वाले के पास जाते हैं.

सुपौल: कोसी तटबंध के अंदर लाखों की आबादी बसी है लेकिन यह ऐसा क्षेत्र है, जहां स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी की वजह से जीवन बदहाल है. चुनावी मौसम में नेता जी वादा तो करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद सभी वादे भूल जाते हैं और क्षेत्र के लोगों की परेशानी जस की तस बनी रहती है. स्थिति यह है कि जब भी कोई बीमार पड़ता है और जल्द इलाज की जरूरत पड़ती है तो उन्हें तटबंध के बाहर लाना पड़ता है. ऐसे में गंभीर मरीजों की मौत अक्सर रास्ते में ही हो जाती है. कई बार यहां के लोगों ने अस्पताल की मांग तो उठाई लेकिन उनकी आवाज अनसुनी कर दी गई.

डॉक्टर से ज्यादा झाड़फूंक पर भरोसा

बता दें कि कोसी नदी से घिरे कई गांव की स्थिति यह है कि पोलियो ड्रॉप पिलाने के अलावा बच्चों को डीपीटी, खसरा आदि के टीके भी नहीं लग पाते. किसी बच्चे के बीमार होने, सर्पदंश की घटना या फिर अन्य रोगों से ग्रसित होने पर लोग पहले ओझा-गुनी के पास जाते हैं. इससे ठीक नहीं होने पर ग्रामीण डॉक्टरों के पास और स्थिति काफी बिगड़ जाने के बाद खाट पर लादकर मरीज को अस्पताल पहुंचाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि इलाके की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि चुनाव के बाद कोई राजनेता इधर झांकना भी मुनासिब नहीं समझते.

एंबुलेंस की जगह चलती खाट

क्षेत्र की स्थिति यह है कि यहां एंबुलेंस की जगह खाट चलती है. तटबंध के अंदर जब कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है तो उसे इलाज के लिए अस्पताल तक ले जाने के लिए खाट ही सहारा होता है. यहां के लोग मरीज को खाट पर लाद अस्पताल पहुंचाते हैं.

नहीं हो पाता है समुचित इलाज

कोसी तटबंध के अंदर बसने वाले लोगों को लगभग हर साल बाढ़ की मार झेलनी पड़ती है. बाढ़ पहले तबाही और फिर बाद में बीमारी लाती है. ये वो बीमारियां होती हैं जिसका समुचित इलाज अस्पताल की कमी के चलते नहीं हो पाता है और अक्सर जानलेवा बन जाता है. मालूम हो कि बाढ़ के दौरान तटबंध के अंदर बसे लोगों को तटबंध या काम चलाऊ शरणस्थलों में रहना पड़ता है, जिनमें लोगों को अपने मवेशियों के साथ रहना पड़ता है. स्वास्थ्य और सफाई संबंधी समुचित सुविधाओं के अभाव में बाढ़ पीड़ितों को अमानवीय दशा में तब तक रहने को मजबूर होना पड़ता है जब तक बाढ़ रहती है. ऐसे में लोगों को कई बीमारियों से जूझना पड़ता है.

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