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नीतीश का NDA से अलग होना BJP के लिए हो सकता है बड़ा झटका, याद है साल 2015 में क्या हुआ था?

Bihar News: बिहार में आंकड़े कहते हैं कि जब दो बड़ी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो उनके वोटों का प्रतिशत इतना हो जाता है कि उसको पाट पाना दूसरी पार्टी के लिए आसान नहीं होता.

बिहार में एनडीए के दो घटक दलों बीजेपी और जेडीयू के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. मंगलवार को जेडीयू और आरजेडी ने विधानमंडल दल की बैठक बुला ली है. माना जा रहा है कि बिहार की राजनीति में अगले 24 घंटे बेहद अहम साबित हो सकते हैं. आरसीपी सिंह के प्रकरण के बाद से ऐसा लग रहा है कि जेडीयू नेता आरपार के मूड में नजर आ रहे हैं. 

सवाल इस बात का है कि अगर एनडीए से जेडीयू अलग होती है तो किसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा. इस बात का अंदाजा लगाने लगाने के लिए हमें 2014 से राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डालनी होगी.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी एक बड़ी जीत दर्ज करके केंद्र की सत्ता में आई थी. मोदी लहर पर सवार बीजेपी को लग रहा था कि वह जल्दी ही पूरे देश में छा जाएगी और अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी उसको कोई नहीं रोक पाएगा.

दरअसल लोकसभा चुनाव  2014 में बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. बीजेपी के खिलाफ पड़ने वाला वोट बिखर गया. 30 सीटों पर लड़ी बीजेपी को इस चुनाव में 22 सीटें मिली थीं. उसकी सहयोगी पार्टी को एलजेपी को 6 सीटें मिली थीं. बाकी जेडीयू को 2, आरजेडी को 2 और कांग्रेस को भी 2 ही सीटें नसीब हो पाईं.

इस हार के बाद बिहार में लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर से वापसी की और आगे बढ़कर नीतीश कुमार से हाथ मिलाया और साल 2015 के विधानसभा चुनाव में  कांग्रेस को साथ मिलाकर एक महागठबंधन बना लिया.

लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के साथ सरकार बनाने वाली केंद्र की बीजेपी सरकार के सामने पहली परीक्षा थी. इस चुनाव में पीएम मोदी ने ताबड़तोड़ रैली की. उन्होंने मंच से नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा. पीएम मोदी का डीएनए वाला बयान भी इस चुनाव में चर्चा का विषय बना.

लेकिन जेडीयू और आरजेडी गठबंधन से एक ऐसा वोटबैंक तैयार हो गया जिसके आगे बीजेपी ठहर नहीं पाई और महागठबंधन को 248 में से 175 सीटें मिल गईं. इस चुनाव में आरजेडी को 80, जेडीयू के 71 और कांग्रेस के 27 विधायक जीते थे. वहीं बीजेपी को 53, एलजेपी को 2, आरएलएसपी को 2, जीतनराम मांझी की पार्टी हम को एक सीट मिल पाई. लेकिन एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद बिहार में जेडीयू ने खुद को महागठबंधन से अलग कर लिया और रातों-रात बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली.

साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में तो जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. जिसमें बीजेपी को 77, जेडीयू को 45, आरजेडी को 80, कांग्रेस को 19, वामदलों को 16, एआईएमआईएम को 1 और अन्य को 1 सीट हासिल हुई थी. इस चुनाव में तेजस्वी ने काफी हद तक दो पार्टियों के मिले हुए वोटबैंक के अंतर को पाटने की कोशिश की थी. वहीं जेडीयू की सीटें भी उम्मीद से काफी आईं.

बिहार में जेडीयू की सीटें ज्यादा आने के बाद से बीजेपी के नेता खुद को बड़े भाई की भूमिका में बताने लगे थे और कुछ नेता तो बिहार में सीएम उनकी पार्टी से बनाने की मांग भी कर डाली. हालांकि बीजेपी आलाकमान ने इन बातों को सिरे नकार दिया था. इस बात ने भी दोनों पार्टियों के बीच खाई बढ़ाने का काम किया था.

बिहार के उलझे हुआ जातिगत समीकरणों से साफ है कि जब भी दो बड़ी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो उन पर सीटों की बरसात हो जाती है. ऐसे में अब सवाल इस बात का है मौजूदा हालात में अगर नीतीश कुमार से एनडीए से अलग हो जाते हैं तो क्या लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए यह बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है?

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. जिसमें से 39 सीटें एनडीए के पास हैं.  लेकिन इतना बड़ी संख्या में सीटें इसलिए आई हैं क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव  में बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था. अगर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से जेडीयू अलग होती है तो इस डैमेज को कंट्रोल करना शायद बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.शायद इसीलिए जेडीयू की ओर से की जा रही आक्रामक बयानबाजी के बीच बीजेपी के नेता सधे जवाब के साथ ही सब ठीक होने का दावा कर रहे हैं.

 

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