सिवान: बिहार के सिवान जिले में इनदिनों नेत्रहीन बच्ची गांव के सैकड़ों बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रही है. नेत्रहीन होने के बावजूद बच्चों को शिक्षा देने की बात थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन यह बात बिल्कुल सच है. वैज्ञानिक बनने की चाह रखने वाली जिले के गुठनी प्रखंड के मझवलिया गांव निवासी विद्या इनदिनों घरवालों और ग्रामीणों की मदद से गांव के सैकड़ों बाच्चों को पढ़ा रही है.


दरअसल, गुठनी प्रखंड के मझवलिया गांव में अपने नानी के घर रहने वाली विद्या बचपन से ही नेत्रहीन है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज तर्रार है. विद्या के गांव में एक भी स्कूल नहीं है. ऐसे में गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता है, जिससे बहुत कम बच्चे स्कूल जाते हैं. इससे निराश होकर विद्या ने खुद लाचार होते हुए भी उन्हें पढ़ाने का फैसला कर लिया है.


आज विद्या के पास सैकड़ों बच्चे पढ़ने आते हैं. खास बात तो यह है कि विद्या इन बच्चों से पढ़ाने का एक भी पैसा नहीं लेती है, बल्कि पढ़ाई के साथ-साथ उनके बीच कॉपी, कलम और मिठाई का वितरण करती है, ताकि वह पढ़ सकें.


इस संबंध में विद्या की मां बताती हैं कि विद्या पिछले तीन-चार सालों से गांव के बच्चों को निशुल्क पढ़ा रही है. वह जन्म से ही नेत्रहीन है. दिल्ली में लंबे समय तक इलाज के बाद चश्मा लगाने पर बहुत नजदीक से देखने पर उसे हल्का-हल्का दिखाता है. उन्होंने बताया कि नवमीं में पढ़ने वाली विद्या पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज है. वो जिस तरह से गांव के बच्चों को पढ़ा रही है, उसपर उन्हें गर्व है. उन्हें अफसोस है कि वह नहीं पढ़ सकीं, लेकिन उनका सपना उनकी बेटी पूरा कर रही है.


वहीं, विद्या की नानी का कहना है कि वह काफी तेज तर्रार है. पहले जब उसने पढ़ाना शुरू किया तो वे लोग उसे डांटते थे कि फालतू का दरवाजे पर हल्ला करा रही है. लेकिन अब उन्हें भी अच्छा लगता है और वो भी सहयोग करते हैं. उन्होंने बताया कि विद्या उनसे कहती है कि वह एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगी.


बता दें कि पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ विद्या बच्चों को एक्सरसाइज भी कराती है. विद्या का मानना है कि बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी देना जरूरी है. उसकी दिली इच्छा है कि उसके गांव में एक स्कूल खुले. सरकारी किताबों के पैटर्न में कुछ बदलाव हो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक बार उसे मिलने का मौका मिले. विद्या बताती है कि वह पहले वैज्ञानिक बनना चाहती थी, लेकिन अब वह टीचर बनना चाहती है.


वहीं, गांव के लोगों का कहना है कि जो काम सरकार को करना चाहिए वह काम विद्या खुद कर रही है. हमें खुशी होती है कि विद्या गांव के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाती हैं. अब तो लोग हमारे गांव को विद्या के गांव के नाम से जानने लगे हैं.