पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेला है. कोरोना महामारी के बीच मंगलवार को आयोजित कैबिनेट की बैठक में नीतीश कुमार ने लंबे समय से लंबित नियोजित शिक्षकों के सेवा शर्त नियमावली और समान काम-समान वेतन की मांग को मंजूरी दे दी. इसके अतिरिक्त बैठक में अन्य 27 एजेंडों पर सरकार की मुहर लगी है.


महामारी की बीच सीएम नीतीश कुमार के इस फैसले ने सबको चौंका दिया है. बता दें कि नीतीश कुमार ने साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों के सेवा शर्त वाले नियमों को मंजूरी दे दी है, साथ ही उनके वेतन में भी 22 प्रतिशत की वृद्धि की है. हालांकि इस फैसले का फायदा नियोजित शिक्षकों को इस साल नहीं बल्कि अगले साल 2021 के 1 अप्रैल से मिलना शुरू होगा.


दरसअल, कोरोना काल की वजह से सरकारी खजाने पर पहले से ही बोझ है, वहीं वेतन बढ़ाने की वजह से 2765 करोड़ का अतिरिक्त बोझ राज्य के बजट पर पड़ेगा. ऐसे में मौजूदा समय में सरकार इस बोझ को झेलने के पक्ष में नहीं है, इसलिए अगले वित्तीय वर्ष से नया वेतनमान लागू किया जाएगा. बता दें कि फिलहाल इस मद में केवल 820 करोड़ रुपये ही खर्च हो रहे हैं.


बता दें कि सालों से साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षक सेवा शर्त लागू करने की मांग करते रहे हैं. नियोजीत शिक्षकों के लिए लागू सेवा शर्त नियमावली में अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए जाने के साथ ही प्रोमोशन के लिए परीक्षा के आयोजन सहित अन्य बिंदुओं की चर्चा की गई है. मालूम हो कि नियोजित शिक्षकों के लिए सेवा शर्त नियमावली का लंबे समय से इंतजार हो रहा था. लेकिन सीएम नीतीश कुमार इसपर विचार करने को तैयार नहीं थे. हालांकि आखिरकार उन्होंने नियोजित शिक्षकों की बात मान ली है.


हालांकि, नीतीश कुमार के इस फैसले ने विपक्ष के लिए सिर दर्द खड़ा कर दिया है. सिर दर्द इसलिए क्योंकि अगर सीएम नीतीश कुमार की सरकार एक और बार आती है तो वो अपने वादों को पूरा करेंगे लेकिन अगर विपक्ष की सरकार आती है तो नीतीश कुमार उनके लिए 2765 करोड़ का अतिरिक्त बोझ छोड़ कर जाएंगे.