First President Rajendra Prasad: इस साल जुलाई में भारत के राष्ट्रपति पद लिये चुनाव (Presidential Election of India) होना है. राष्ट्रपति चुनावों को लेकर पूरे देश में अभी से हलचल शुरू हो गई है. वहीं इस बार राष्ट्रपति के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश का नाम भी सामने आ रहा है. राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का नाम सामने आने के बाद बिहार (Bihar) में राजनीतिक हलचल तेज हो गई. हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री ने इस तरह की चर्चा पर हैरानी जतायी है, जबकि बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी (RJD) और कांग्रेस (Congres) ने उन्हें शुभकामनायें दी हैं.
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यदि इस पद तक पहुंचते हैं, तो वह बिहार से राष्ट्रपति के पद तक पहुंचने वाले दूसरे नेता होंगे.
- इससे पहले यहां से देश का प्रथम नागरिक और राष्ट्रपति के पद पहुंचने का गौरव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद प्राप्त है.
- देश के पहले प्रथम व्यक्ति राजेंद्र प्रसाद सबसे लंबे समय तक 12 साल देश के राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया, उन्हें जनता का राष्ट्रपति कहा जाता था.
कैसे कई अचड़नों के बावजूद राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पहली बार 1950 में संविधान सभा की आखिरी बैठक में राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया, जहां उन्हें भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी ने रिपब्लिक भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई. 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक वह देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवायें देते रहे.
- संविधान लागू होने के बाद 1952 में भारत में पहला आम चुनाव हुआ, जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से राष्ट्रपति चुनावों का रास्ता भी बहाल हो गया. 1952 में पहले राष्ट्रपति चुनाव से पहले राजेंद्र प्रसाद और जवाहर लाल नेहरु में कुछ मतभेद पैदा हो गये. इसकी सबसे बड़ी वजह थी, 1951 में हिन्दू कोड बिल को लेकर दोनों एक-दूसरे के खिलाफ थे. लेकिन आम चुनाव के बाद, यह ऐसा चुनाव था जिसे नेहरु टाक नहीं सके. इस चुनाव में राजेंद्र प्रसाद के सामने प्रोफेसर केटी शाह थे, उन्हें दूसरे दलों की तरफ से समर्थन हासिल था.
- प्रोफेसर केटी शाह श्रमिक संगठन से जुड़े थे. उन्होंने लंदन से स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की थी. वह 1938 में नेहरु के नेतृत्व में बने पहले योजना आयोग के सदस्य ही थे. देश के पहले आम चुनाव में कांग्रेस को 489 सीटों में से 364 सीटों पर सफलता हासिल हुई थी, ऐसे में भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए कांग्रेस का उम्मीदवार बनना ही एकमात्र शर्त थी. इस राष्ट्रपति चुनाव में राजेंद्र प्रसाद को 5 लाख 7 हजार 400 वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी केटी शाह को सर 92 हजार 827 वोट मिले.
- इस चुनाव का एक सबसे दिलचस्प पहलु यह था कि, कांग्रेस के 65 सांसदों और 479 विधायकों ने वोट ही नहीं डाला था. बाद में इस संबंध में कहा गया कि, चूंकि राजेंद्र प्रसाद की जीत निश्चित थी, इसलिए कई लोगों ने वोट ही नहीं डाला.
- देश के पहले राष्ट्रपति चुनाव 1952 में देश के पहले प्रधानमंत्री ने पार्टी की वसीयत को स्वीकार कर लिया. जबकि 1957 के चुनावों में उन्हें अपनी पसंद का अध्यक्ष चुनने का अवसर मिला, तो उन्होंने उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर अपना दांव लगाया. इस राष्ट्रपति चुनाव में मौलान अबुल कलाम आजाद सहित देश का बहुत बड़ा कांग्रेसी तबका डॉ. राजेंद्र प्रसाद के समर्थन में था. जिससे नेहरु को एक बार फिर निराशा हुई. इस चुनाव में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 4 लाख 59 हजार 698 वोट मिले, वहीं उनके करीबी दावेदार चौधरी हरिराम को 2672 वोट मिले.
कार्यकाल पूरा होने पर लाखों लोग पहुंचे विदाई देने
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का 13 मई 1962 को उनका राष्ट्रपति कार्यकाल पूरा हो गया, जिसके बाद वह पटना के सदाकत अली आश्रम चले गए. वहीं 10 मई 1962 को उन्हें विदाई देने के लिए रामलीला मैदान में बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए. उनके बाद देश के पहले नागरिक और राष्ट्रपति के पद से 12 लोग सेवानिवृत्त हुए, लेकिन इस तरह की विदाई का सुख किसी को नहीं मिला. मात्र 1100 रुपये की पेंशन से सेवानिवृत्त हुए राजेंद्र प्रसाद ने, भारत-चीन युद्ध के समय अपनी पत्नी के गहने भारत के खजाने में दान कर दिए
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