लॉकडाउन में बाहर से लौटे कामगार गांव में ही बना रहे जयपुरी साड़ी, अन्य राज्यों में भेज कर कमा रहे मुनाफा
बाहर से आए कामगारों ने बताया कि जयपुर में वे लोग करीब 15,000 रुपये महीना कमा लेते थे और अब यहां वे आसानी से 10,000 रुपये प्रति महीना कमा ले रहे हैं. स्थानीय स्तर पर ही स्वरोजगार सुलभ हो जाने से उन्हें कई प्रकार की सहूलियत मिल रही है.
औरंगाबाद: बिहार के औरंगाबाद जिले में लॉकडाउन के दौरान बाहर से आए कई कामगार आपदा को अवसर में बदलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रहे हैं. देश के अन्य राज्यों में काम करने वाले हसपुरा प्रखंड के अमझर शरीफ गांव के कामगार अब कपड़ों और साड़ियों पर नक्काशी और जरी का काम कर गांव में ही अपनी आजीविका आसानी से चला रहे हैं. अब उनके समक्ष रोजगार तथा बाहर जाकर काम करने की अब कोई समस्या नहीं रह गई है.
अमझर शरीफ के मोहम्मद अताउल्लाह अंसारी, मोहम्मद राजू अंसारी, मोहम्मद मुस्तफा अंसारी समेत दर्जनों कारीगर साड़ी, लहंगा, चुनरी, महिलाओं के लिए सूट आदि कपड़ों पर बखूबी नक्काशी कर रहे हैं और उसे राजस्थान के जयपुर, दिल्ली आदि शहरों में भेज कर मुनाफा कमा रहे हैं. बता दें कि यह कारीगर कोलकाता, जयपुर, मुंबई आदि शहरों में रहकर इस काम से जुड़े हुए थे.
लॉकडाउन के दौरान इन्हें वहां से काम छूट जाने के कारण अपने गांव वापस आना पड़ा था. गांव आने के बाद इन कारीगरों ने कई माह तक बेरोजगारी का दंश झेला. लेकिन अंततः इन लोगों ने मिलकर अपने गांव में कपड़ों पर जरी और नक्काशी का काम शुरू किया और अब इनका काम चल निकला है.
साड़ियों पर मनभावन जरी का काम होने के कारण इन्हें राजस्थान के जयपुर सहित अन्य शहरों से डिजाइन के हिसाब से आर्डर मिलने लगा और वह इन्हें वहां भेज कर इसकी मार्केटिंग कर रहे हैं.
बाहर से आए कामगार अत्ता उल्लाह अंसारी, राजू अंसारी और मुस्तफा अंसारी ने बताया कि जयपुर में वे लोग करीब 15,000 रुपये महीना कमा लेते थे और अब यहां वे आसानी से 10,000 रुपये प्रति महीना कमा ले रहे हैं. स्थानीय स्तर पर ही स्वरोजगार सुलभ हो जाने से उन्हें कई प्रकार की सहूलियत मिल रही है.
उनका कहना है कि यदि सरकार के स्तर पर कुछ मदद हो जाती तो इस काम को आगे बढ़ाकर गांव और आसपास के बेरोजगार युवाओं को इस कार्य से जोड़ते. इससे जहां लोगों को रोजगार मिलता. वहीं, उनका व्यापार भी आसानी से बढ़ जाता.