जयंती विशेष: आज इस स्थिति में है वह जिला स्कूल जिससे डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने पास की थी मैट्रिक की परीक्षा
स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देने वाला जिला स्कूल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं. जिला स्कूल आज "स्वर्णिम अतीत का बदहाल वर्तमान" कहावत को चरितार्थ कर रहा है.
छपरा: "EXAMINEE IS BETTER THAN EXAMINER" यह ऐतिहासिक टिप्पणी वर्ष 1902 में सारण जिला मुख्यालय स्थित जिला स्कूल के पढ़ने वाले छात्र के लिए अंग्रेज़ परीक्षक ने की थी. वह छात्र और कोई नहीं बल्कि देश के पहले राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, जिन्होंने जिला स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. दरसअल, उनके मैट्रिक परीक्षा की उत्तर पुस्तिका जांच के लिए कोलकाता गई थी, जहां अंग्रेज परीक्षक ने उनके उत्तर पुस्तिका की जांच की थी और राजेंद्र बाबू की मेधा से प्रभावित होकर उन्होंने यह टिप्पणी की थी.
हालांकि, स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देने वाला जिला स्कूल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं. जिला स्कूल आज "स्वर्णिम अतीत का बदहाल वर्तमान" कहावत को चरितार्थ कर रहा है. इतना ही नहीं बल्कि इस स्कूल के कई भवन शिक्षा विभाग के कब्जे में है. स्कूल प्रशासन द्वारा विभाग को कई बार आवेदन भी दिया चुका है. लेकिन स्कूल आज तक अतिक्रमण मुक्त नहीं हो सका है.
इतना ही नहीं स्कूल परिसर में जिला कम्प्यूटर सोसायटी, नव पदस्थापित उच्च विद्यालय भी खुल गया है. कहने को तो सैकड़ो छात्रों ने नामांकन कराया है, लेकिन आते कुछ ही हैं. हार साल 3 दिसंबर को देशरत्न राजेन्द्र बाबू की जयंती पर विद्यालय प्रशासन द्वारा एक परिचर्चा का आयोजन कर खानापूर्ति कर ली जाती है.
मालूम हो कि देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का जन्म 03 दिसम्बर 1884 में तत्कालीन सारण जिला वर्तमान में सिवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. लेकिन उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के जिला स्कूल से शुरू हुई थी.
इसी स्कूल में राजेंद्र बाबू का नामांकन वर्ष 1893 में आठवीं वर्ग में हुआ था, जो उस वक्त का प्रारंभिक वर्ग था. उस समय आठवीं वर्ग से उतीर्ण होने के बाद इसी स्कूल में नामांकन के लिए आया करते थे, जिसे अव्वल दर्जा का वर्ग कहा जाता था. राजेंद्र बाबू इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि उन्हें वर्ग आठ से सीधे वर्ग नौ में प्रोमोट कर दिया गया था.
उन्होंने इसी जिला स्कूल से 1902 में एंट्रेस की परीक्षा दी थी, जिसमें पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, बर्मा और नेपाल में प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने अपने प्रान्त का नाम रौशन किया था. लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो उत्तर पुस्तिका कोलकाता से बिहार नहीं आ सका है जिसमें अंग्रेज परीक्षक ने ऐतिहासिक टिप्पणी की है. इस विद्यालय के शिक्षक व छात्र जिला स्कूल को एक धरोहर के रूप में देखते हैं.
जिला स्कूल को मॉडल स्कूल का दर्जा प्राप्त है. लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. इस विद्यालय के कोने-कोने में राजेन्द्र प्रसाद की यादें जुड़ी हुई हैं, लेकिन स्कूल की वर्तमान दशा और दिशा देख कर ऐसा नहीं लगता कि इसका इतिहास इतना गौरवशाली रहा होगा.
विद्यालय परिसर में शिक्षा विभाग का अतिक्रमण खुद शिक्षा विभाग ऩे ही किया है. क्लास रूम में शिक्षा विभाग के आठ कार्यालय संचालित होते हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव पठन-पाठन पर पड़ता है. ऐसे में समय रहते अगर शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा के इस मंदिर को संरक्षित नहीं किया तो वो दिन भी दूर नहीं जब गौरवशाली अतीत वाला यह स्कूल इतिहास के पन्नो में दफ़न हो जाएगा.
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