JDU ने बढ़ाई BJP की टेंशन! दिल्ली विधानसभा चुनाव में ये खास सीटें मांग रही नीतीश कुमार की पार्टी
Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली में करीब 15 ऐसी सीटें हैं जहां पर बिहार और पूर्वांचल के वोटों का दबदबा है. इसमें से कई सीटों पर जीत और हार का अंतर यह पूर्वांचल और बिहार के मतदाता ही तय करते हैं.
Delhi Assembly Election: दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर तारीखों का ऐलान हो चुका है. तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर रहे हैं. उम्मीदवारों की घोषणा करते हुए जो एक बड़ा फैक्टर ध्यान में रखा जा रहा है वह पूर्वांचल और बिहार के मतदाताओं की संख्या है. दिल्ली में करीब 15 ऐसी सीटें हैं जहां पर बिहार और पूर्वांचल के वोटों का दबदबा है. ऐसे में एनडीए में बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेडीयू दिल्ली में इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है.
15 में से कई सीटों पर जीत और हार का अंतर यह पूर्वांचल और बिहार के मतदाता ही तय करते हैं. जिन सीटों पर पूर्वांचल और बिहार के मतदाताओं की संख्या अच्छी है उनमें बुराड़ी, करावल नगर, सीमापुरी, पटपड़गंज, लक्ष्मी नगर, बादली, किराड़ी, नांगलोई, विकासपुरी, द्वारका, पालम, मटियाला, उत्तम नगर, संगम विहार, बदरपुर, देवली और राजेंद्र नगर सीट शामिल है.
2020 में दो सीट पर लड़ी थी नीतीश कुमार की पार्टी
7 से 8 ऐसी सीटें हैं जिस पर जेडीयू का मानना है कि अगर उनके उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी की तुलना में बेहतर रिजल्ट देखने को मिलेगा. सूत्रों के मुताबिक जेडीयू की बीजेपी के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर जो बातचीत चल रही है उसमें जेडीयू की कोशिश है कि इस बार उसके खाते में पिछली बार से ज्यादा सीटें आए. 2020 के चुनाव में जेडीयू को दो सीट मिली थी बुराड़ी और संगम विहार, लेकिन किसी पर जीत नहीं हुई थी.
अब तक सामने आई जानकारी के मुताबिक जेडीयू की कोशिश है कि 4 से 6 सीट मिले. इनमें बुराड़ी, किराड़ी, संगम विहार, बदरपुर, ओखला, द्वारका और पालम है. यह वह तमाम विधानसभा सीटें हैं जहां पर बिहारी और पूर्वांचल मतदाताओं की संख्या दिल्ली के बाकी विधानसभाओं की तुलना में ज्यादा है. जेडीयू का मानना है कि अगर उसके खाते में सीट आती है तो बिहार और पूर्वांचल के मतदाताओं को ज्यादा बेहतर तरीके से अपने साथ जोड़ने में सफल हो सकती है.
जेडीयू की नजर इन सीटों पर क्यों? एक नजर डालिए
बुराड़ी विधानसभा: यह दिल्ली की उत्तर पूर्व लोकसभा सीट का हिस्सा है. इस सीट पर दर्जनों अधिकृत और अनधिकृत कॉलोनियां भी हैं. इनमें मुख्य तौर पर पूर्वांचल के लोगों की संख्या काफी ज्यादा है. पूर्वांचल और बिहारी मतदाताओं की बड़ी संख्या यहां पर चुनावी नतीजे को खासी प्रभावित करती है.
किराड़ी विधानसभा: इस विधानसभा सीट पर भी दर्जनों अनधिकृत काॅलोनियों और तीन गांव हैं. यह क्षेत्र दिल्ली के उस क्षेत्र में शामिल है जहां पर शुरुआत में बड़ी संख्या में बिहार व उत्तर प्रदेश के लोग आकर बसे थे.
ओखला विधानसभा सीट: जेडीयू का मानना है कि अगर वह ओखला सीट पर उम्मीदवार उतारती है तो प्रदर्शन बीजेपी की तुलना में बेहतर होगा. क्योंकि ओखला सीट पर बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता भी मौजूद हैं. लिहाजा जेडीयू मानती है कि नीतीश कुमार के नाम पर मुस्लिम मतदाता अभी भी साथ में खड़े हैं. जेडीयू ओखला जैसी विधानसभा सीटों पर अपना असर छोड़ सकती है.
द्वारका विधानसभा सीट: द्वारका सीट पर पिछले कुछ सालों में वोटरों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इस सीट पर बिहार और पूर्वांचल के वोटर्स बड़ी संख्या में हैं जो हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. द्वारका सीट पर बिहार और पूर्वांचल के वोटर्स की संख्या 30 फीसद से ज्यादा बताई जाती है जो किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत में एक बड़ा अंतर पैदा करते हैं.
बदरपुर विधानसभा सीट: इस सीट पर भी पूर्वांचल और बिहार के लोगों की संख्या काफी ज्यादा है. इसी वजह से जब कोरोना के दौरान बिहार और पूर्वांचल के लोग दिल्ली से बाहर जा रहे थे तो बिहार सरकार ने दिल्ली के बदरपुर इलाके में राहत आपदा केंद्र बिहार और पूर्वांचल के लोगों की मदद भी की थी.
संगम विहार और पालम विधानसभा: इन दोनों विधानसभा सीटों पर भी बिहार और पूर्वांचल से आने वाले मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. इसी वजह से बिहार से आने वाले राजनीतिक दल चाहते हैं कि वह इन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकें. क्योंकि इन सीटों पर अगर वह अपने उम्मीदवार उतारते हैं तो उनके जीतने की संभावना बाकी सीटों की तुलना में बेहतर हो सकती है.
हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि जेडीयू भले ही कोशिश करे कि उसे पिछली बार मिली दो सीटों से ज्यादा सीट इस बार मिल जाए, लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा कहीं न कहीं इसका अंदाजा जेडीयू नेताओं को भी है. फिर भी राजनीति में हर दल कोशिश यही करता है कि अगर वह गठबंधन में चुनाव लड़ रहा है तो उसकी पार्टी के ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवारों को सहयोगी दल के तौर पर चुनावी मैदान में उतारने का मौका मिले.
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