देवघरः दो साल से कोरोना की वजह से देवघर में श्रावणी मेले का आयोजन नहीं हो रहा है, जिसकी वजह मंदिर में सिर्फ सरकारी पूजा हो रही है. मेले का आयोजन नहीं होने से ही यहां सन्नाटा पसरा है. जब मेले का आयोजन होता है तो लाखों शिव भक्त सुल्तानगंज से जल लेकर यहां पहुंचते हैं. देवघर के बैधनाथ धाम और माता सती से जुड़ी खास जानकारी पर पढ़ें विशेष रिपोर्ट.


देवघर में स्थित बाबा बैधनाथ धाम को तपोभूमि के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि माता पार्वती का हृदय इसी भूमि पर गिरा था, इस वजह से देवघर को ह्रदय स्थली के नाम से भी जाना जाता है. पन्ना लाल मित्रा (महाराज जी) पंडा ने बताया कि प्रजापति राजा दक्ष की पुत्री माता सती के पति भगवान शिव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किए जाने से वह काफी दुखी थीं. माता सती पिता द्वारा शिव के अपमान को सह नहीं पाईं और अपने शरीर को यज्ञ कुंड के हवाले कर दिया. जब इसकी खबर भगवान शिव को लगी तो वे क्रोधित होकर राजा दक्ष के यहां पहुंचे और त्रिशूल से राजा दक्ष के सिर को अग्नि के हवाले कर दिया.


माता सती के वियोग और क्रोधित शिव ने सती के शरीर को कांधे पर लेकर तीनों लोकों में प्रलय मचा दिया. यह देख सभी देवता सृष्टि के विनाश से भयभीत होकर भगवान विष्णु के यहां पहुंचे और सृष्टि बचाने के साथ शिव के क्रोध को शांत करने के लिए प्रार्थना करने लगे. भगवान विष्णु शिव के आराध्य हैं और भगवान शिव विष्णु के आराध्य हैं. यही कारण है कि सभी देवताओं ने विष्णु से सृष्टि को बचाने की गुहार लगाई. भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 52 टुकड़े किए जो कई जगहों पर गिरा. जहां-जहां यह टुकड़ा गिरा यह शक्ति पीठ के रूप में जाना जाने लगा.


कैलाश से लाया गया शिव ज्योतिर्लिंग माता सती के हृदय पर स्थापित


पंडा महाराज ने बताया कि माता सती के शरीर के सभी हिस्से सुदर्शन चक्र से कट गए लेकिन शिव के कंधे पर माता सती के हृदय को काटना संभव नहीं था. क्योंकि माता सती के हृदय में भगवान शिव बसते हैं. यही वजह है कि माता का हृदय देवघर में गिरा और यह स्थल हृदयापीठ के नाम से जाना गया. कहा यह भी जाता रावण द्वारा कैलाश से लाए गए शिव ज्योतिर्लिंग इसी माता सती के हृदय पर स्थापित है.


देवघर में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंग में 9वां ज्योतिर्लिंग है. यह देश का पहला ऐसा स्‍थान है जो ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है. ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है, लेक‍िन शिवपुराण में इसकी विस्‍तारपूर्वक जानकारी म‍िलती है. इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है. इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग. इसके अलावा इस धाम को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है.


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