मुजफ्फरपुर: बिहार में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक (KK Pathak) टाइट हैं. शिक्षकों, बच्चों की उपस्थिति कैसे बढ़े इस पर भी पूरा ध्यान है. लापरवाही बरतने पर एक्शन भी हो रहा है. खुद केके पाठक जिलों के सरकारी स्कूलों का दौरा कर रहे हैं. लापरवाह कर्मचारी या शिक्षकों के वेतन भी काटे जा रहे हैं. इन सबके बीच चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने शुक्रवार (22 सितंबर) को बयान जारी कर शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं. पीके मुजफ्फरपुर में पद यात्रा कर रहे हैं.


प्रशांत किशोर ने कहा कि अभी सरकार का जो प्रयास है, अधिकारी शिक्षकों को स्कूल में बैठा रहे हैं, अगर शिक्षक स्कूल में बैठ भी जाएं तो उसे पढ़ाने के लिए आप कैसे मजबूर करेंगे? हालांकि बयान में पीके ने केके पाठक या किसी अधिकारी का नाम नहीं लिया. गांव में शिक्षक के रहने की व्यवस्था ही नहीं है, उसके खुद के बच्चे के बीमार पड़ने पर इलाज की व्यवस्था ही नहीं है, तो भला वो वहां रहेगा कैसे? शिक्षा व स्वास्थ्य दोनों ही क्षेत्रों में बेहतर यही होगा कि आप दो ही स्कूल या अस्पताल खोलें, लेकिन उसे अच्छे से चलाएं.


40 हजार करोड़ का है बिहार में शिक्षा का बजट


शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार को लेकर पीके ने कहा कि हर प्रखंड में कम से कम 3 से 5 विश्व स्तरीय संस्थान बनाएं. बजाय इसके कि आपने 25, 30, 40 व्यवस्था बनाई हुई है, जहां पर आप केवल खिचड़ी बांट रहे हैं और चोरी करा रहे हैं. ये पैसा हम खर्च कर रहे हैं, ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार ये पैसा खर्च नहीं कर रही है. बिहार में शिक्षा का बजट 40 हजार करोड़ रुपये का है और आप स्कूलों की दशा देख लीजिए कि क्या हो रहा है.


पीके बोले- 40 बच्चे भी पढ़कर नहीं निकल पा रहे


राजधानी पटना के जयप्रकाश नगर के प्राथमिक विद्यालय का वीडियो बिहार सरकार के दावों की पोल खोलते हुए तेजी से वायरल हो रहा है. प्राथमिक विद्यालय जय प्रकाश नगर के वायरल वीडियो में साफ देखा जा रहा है कि एक क्लास रूम में पांच कक्षाओं के बच्चों को बैठाकर एक ही ब्लैकबोर्ड पर पढ़ाया जा रहा है. जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर तंज कसते हुए कहा कि बिहार में हम 40 हजार करोड़ रुपये हर साल शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं. इससे 40 बच्चे भी अच्छे से पढ़कर नहीं निकल पा रहे हैं.


पीके ने कहा कि इसी बिहार में नेतरहाट, लंगट सिंह कॉलेज, पटना साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज के साथ ऐसे दस से भी अधिक इंस्टीट्यूशन थे. इनसे बढ़कर हर प्रखंड में एक से दो ऐसे विद्यालय ऐसे थे जहां से पढ़कर लोग अपना जीवन बना पाते थे. मैंने जो आपको बताया कि समतामूलक शिक्षा नीति बनाने के चक्कर में आपने हर जगह विद्यालय खोल दिए. उसकी गुणवत्ता पर, उसकी सुविधाओं पर, वहां मिलने वाली शिक्षा पर आपने ध्यान नहीं दिया. अगर, इसको सुधारना है, तो हम लोगों को हर गांव में विद्यालय बनाने की बजाय बच्चों को विद्यालय तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी.


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