पटना: कोरोना महामारी के बीच 3 अगस्त से बिहार विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरू होने वाला है. राज्य में कोरोना से मचे त्राहिमाम को देखते हुए इस बार सत्र सदन में ना हो कर के ज्ञान भवन में होगा. जहां कोरोना से बचाव के लिए जारी गाइडलाइन का पालन करते हुए सत्र सम्पन्न कराया जाएगा. यह 16वीं बिहार विधानसभा का अंतिम सत्र हो सकता है, क्योंकि इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित है. ऐसे में विधानसभा का यह सत्र बेहद महत्व माना जा रहा है.


इस संबंध में बातचीत करने पर विधानसभा स्पीकर विजय चौधरी ने कहा कि "कोरोना महामारी के कारण जो परिस्थिति उतपन्न हुई है, इसमें दो व्यक्तियों के बीच दूरी रखने की सलाह है. इसके मद्देनजर जो हमारा विधानमंडल का एसेंबली हॉल है उसमे यह बैठक संभव नहीं था, जिस कारण हमलोग इसका आयोजन एक बड़े परिसर में करेंगे, जहां हम कोरोना प्रोटोकॉल के हिसाब से दो व्यक्तियों के बीच की दूरी को ध्यान रखते हुए सदन की कार्यवाही पूरी करेंगे."


कोरोना काल में विधानसभा सत्र के लिए तैयारियों के सवाल पर उन्होंने कहा कि "जैसा हमने कहा ये सारी मुकम्मल व्यवस्था यहां है. उनका थर्मल स्क्रीनिंग से लेकर हैंड सेनेटाइजर तक है. जहां भी उनको जितना यूज करना है वो कर सकते हैं, मास्क की सुविधा भी हैं वैसे तो वो लगाकर आएंगे फिर भी जिनको आवश्यकता हुई उन्हें मास्क भी उपलब्ध होगी. जिनका टेंपरेचर ज्यादा प्रतीत होगा या जो पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं होंगे तो उनको कोरोना टेस्ट की सलाह दी जाएगी कि आप टेस्ट आवश्य करा लें."


उन्होंने कहा कि "वैसे यहां ये सुविधा सभी के लिए है जो भी जांच कराना चाहे वो करा सकते हैं, क्योंकि आजकल ज्यादातर मामले लक्षण रहित पाए गए हैं. ऐसी स्थिति में जिनको कोई तकलीफ नहीं है, वो ये जांच कराने चाहे तो करा सकते हैं. लेकिन अगर थर्मल स्क्रीनिंग में किन्ही को बुखार हो तो वैसे लोगों का टेस्ट अनिवार्य होगा."


पूरे कार्यकाल में कौन से मुख्यमंत्री सबसे अधिक पसंद हैं इस सवाल पर उन्होंने कहा कि "ये तो आपका प्रश्न अभी इस पद के अनुरूप नहीं है क्योंकि मैं जिस पद पर हूँ इसपर रहते मैंने एक ही मुख्यमंत्री को देखा है. पूरे कार्यकाल में भले ही विपक्षी दल बदल गए पर मुख्यमंत्री वहीं थे और मेरे समझ से जो अभी मुख्यमंत्री हैं सामान्य रूप से जितने भी मुख्यमंत्री आये हैं उनमें से किसी से कम प्रतिभा वाले ये नही है, कुछ अलग ज्यादा गुण हो सकते हैं."


5 साल के शासनकाल में सबसे दुखदायी और खुशी के पल के संबंध में उन्होंने कहा कि "जहां तक दुखदायी का प्रश्न है तो मुझे इन पांच सालों में यह ढूंढने से भी नहीं मिल रहा, जब मिलेगा तभी बता पाएंगे. जहां तक अच्छे समय की बात है तो स्वाभविक रूप से जब कोई बुरा वक्त ढूंढने से नहीं मिल रहा है, तो सामान्य रूप से सारी स्थिति अच्छी है. लेकिन अच्छी स्थिति में भी कुछ विशेष खुशी देने वाली बात जब हमलोग ने विधानसभा में शराबबंदी कानून बनाया, कोई कानून बनना और सर्वसम्मति से पास होना ये सभी आम बातें हो सकती हैं, लेकिन जिस ढंग से सदन के सारे सदस्यों की इच्छा देखते हुए मुझे उसी छण निर्णय देना चाहिए और जब सदस्यों के तरफ से अनुरोध आया कि सभी लोग मिलकर ये संकल्प लें कानून बनना और बनाना अलग चीज है, विधायिक प्रक्रिया अलग चीज है लेकिन कानून बनाने के बाद सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के सारे सदस्यों के अनुरोध पर सभी सदस्यों ने अपने जगह पर खड़े होकर सबने संकल्प लिया वो ज्यादा खुशी देने वाला ही नही वो एक रोमांचित करने वाला छण था क्योंकि जब सेशन की शुरुआत हुई बिल पास होना था उस समय तक किसी को कोई जानकारी नहीं थी ये कोई पूर्व नियोजित किया गया कार्य था ,उस समय सभी सदस्यों की मानसिकता बनी की लोग उस कानून के समर्थन में अपनी भावना व्यक्त कर रहे थे मैं तो बस उनके भावना के साथ खड़े होकर समर्थन किया पर विधायकों ने तो ये संकल्प लिया कि हम न खुद पियेंगे और न किसी को प्रेरित करेंगे."


पक्ष-विपक्ष के बदलते स्वरूप के सवाल पर उन्होंने कहा कि "उसको अगर आप उस रूप से देखते हैं तो हमारे लिए सरकार होती है. अब वो किस गठबंधन की सरकार है और कौन सा दल विपक्ष में है, ये हमारे लिए मायने नहीं रखता है क्योंकि स्पीकर के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का विश्वास साथ लेकर चलना जरूरी है और हमने इसलिए भी भरपूर कोशिश की. ये सही है कि मेरे कार्यकाल में शुरू में विपक्ष में जो पार्टी थी वो सत्ताधारी गठबंधन में आ गई और जो पहले गठबंधन में सत्ता में थे वो विपक्ष के भूमिका में आ गए लेकिन मुझे किसी भी विपक्ष से कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि दोनों विपक्ष के काफी सकारात्मक सहयोग रहे."


उन्होंने कहा कि "सत्रहवीं-अठाहरवीं शताब्दी की बात थी, जब संसदीय प्रणाली विकसित हो रही थी और उस समय एक लैंडिल साहब स्पीकर थे, उन्होंने ही कहा था कि स्पीकर सर्वेंट होता है हाउस का वो न क्राउन का सर्वेंट होता है न किसी शासक या किसी पोलिटिकल पार्टी का ही सर्वेंट होता हैं न सरकार का ही वो सर्वेंट होता है वो तो सदन का चैंपियन है. मतलब यह है कि उसे सदन के भावना के हिसाब से चलना है और उसके लिए हमने शुरू में ही कहा था कि एक स्पीकर के लिए सदन या सदस्यों की भावना से उपर या उसपर कोई सीमा बनाती है तो वो सिर्फ एक संवैधानिक व्यवस्था या फिर हमारे नियमानुसार अगर इनदोनों के हिसाब से चलना है तो जो सदस्यों की राय है उस हिसाब से हम चलते हैं."


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