पूरे देश में गुजरात, हिमाचल के विधानसभा चुनाव और मैनपुरी में लोकसभा में उपचुनाव के नतीजों की चर्चा है. लेकिन बिहार के कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव का नतीजा सबसे ज्यादा चौंकाने वाला है. 


विपक्षी एकता का झंडा उठाए बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के प्रत्याशी मनोज कुशवाहा  सारे समीकरण पक्ष में होते हुए भी हार गए हैं. इस जीत में सबसे बड़ा फैक्टर बनकर चिराग पासवान बनकर उभरे हैं. 


ये सीट नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा का सवाल बन गई थी. आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार के लिए यह पहला चुनाव था. नीतीश खुद को ईसीबी के नेता के तौर मानते हैं. इसके साथ ही जेडीयू-आरजेडी का वोट प्रतिशत मिला दें तो बिहार में महागठबंधन इतना मजबूत हो जाता है कि बीजेपी इसके आगे कहीं न टिकटी है.


बिहार में 15 फीसदी यादव, 11 फीसदी कुर्मी-कोरी-निषाद और 17 मुसलमान फीसदी को मिला दें तो कुल 43 फीसदी हो जाता है. बात करें कुढ़नी विधानसभा सीट की तो करीब तीन लाख वोट है कुशवाहा 38 हजार, निषाद 25 हजार, वैश्य 35 हजार, 23 हजार मुस्लिम, 18 हजार भूमिहार, यादव 32 हजार,गैर भूमिहार सवर्ण 20 हजार, दलित 20 हजार हैं. ये आंकड़ लगभग में है. 


कुढ़नी में सबसे ज्यादा वोटर कुशवाहा हैं. नीतीश कुमार खुद को कुर्मी और कुशवाहाओं का नेता मानते हैं. उनकी पार्टी में उपेंद्र कुशवाहा जैसे बड़े नेता हैं. इसके साथ ही मनोज खुद भी कुशवाहा जाति से आते हैं. फिर भी जेडीयू को इस सीट पर करारी हार मिली है.


माना जा रहा है कि इस सीट पर बीजेपी की वो रणनीति काम आई है जो वो पूरे बिहार में आजमाना चाहती है. बिहार में 15 फीसदी ऊंची जातियों, 26 फीसदी अति पिछड़ा और 16 फीसदी दलितों का वोट एक साथ आए आ जाए तो किसी भी पार्टी के लिए बिहार जीतना आसान हो सकता है.  ऐसा ही प्रयोग बीजेपी उत्तर प्रदेश में हाल ही के चुनाव में कर चुकी है.


कुढ़नी में  बीजेपी उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता ने नीतीश कुमार की जेडीयू के प्रत्याशी को मनोज कुशवाहा को 3,645 मतों से हराकर इस समीकरण के लिए रास्ता खोल दिया है. कुढ़नी सीट पर हुए कांटे के मुकाबले में गुप्ता को 76,653 मत प्राप्त हुए जबकि कुशवाहा को 73,008 वोट मिले. 


बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कुढ़नी में बीजेपी को मिली जीत के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफा मांगा है. 


सुशील मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार के महागठबंधन ने कुढ़नी में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये, सारे हथकंडे अपनाए, फिर भी वहां के मतदाताओं ने बीजेपी की जीत पक्की की. 


सुशील मोदी ने कहा कि चुनाव में लालू जी के नाम का भी उपयोग किया गया, उनके किडनी प्रतिरोपण का विषय उठाकर भावनात्मक कार्ड खेला गया, मुख्यमंत्री ने भी कई सभाएं की और इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया. लेकिन उपचुनाव में अंतत: बीजेपी ने जीत हासिल की है. 


वहीं, बीजेपी नेता एवं राज्य के पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जबर्दस्त भरोसा व्यक्त किया है और चुनाव परिणाम महागठबंधन के मुंह पर तमाचा है.


सबसे हैरत वाली बात ये है कि जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी की हार पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता का सहारा लिया है. उन्होंने ट्वीट पर लिखा, '
'क्या हार में, क्या जीत में.... कुढ़नी के परिणाम से हमें बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है. पहली सीख- 'जनता हमारे हिसाब से नहीं बल्कि हमें जनता के हिसाब से चलना पड़ेगा.'


क्यों हुआ था कुढ़नी में उपचुनाव
आरजेडी के विधायक अनिल सहनी पर यात्रा भत्ता घोटाला मामले में 3 साल की सजा सुनाई गई थी. जिसकी वजह से उनकी विधानसभा सदस्यता चली गई. उसी के बाद कुढ़नी में ये उपचुनाव कराना पड़ा. साल 2020 में हुए चुनाव में सहनी ने अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी भाजपा के केदार गुप्ता को करीब 700 वोटों से पराजित किया था.


बीजेपी की जीत में चिराग पासवान का रोल
चिराग पासवान  ने बीजेपी प्रत्याशी केदार गुप्ता के लिए प्रचार किया. नतीजों से साफ है कि बीजेपी प्रत्याशी को एससी/एसटी वोट जमकर मिला है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस सीट पर चार सभाएं की थीं और लालू प्रसाद यादव के नाम पर वोट मांगा था. लेकिन चिराग ने अपनी सभा में शराबबंदी का मुद्दा उठाकर आरोप लगाया कि इस कानून का इस्तेमाल करके एससी/एसटी वर्ग के लोगों को परेशान किया जा रहा है. इसके साथ ही ओबीसी वोटों का भी समर्थन बीजेपी को मिला है. 
 


कुढ़नी में जीत का दिल्ली तक होगा असर


कुढ़नी में महागठबंधन की हार चौंकाने वाली है. इस हार का असर गुजरात और हिमाचल में आए विधानसभा चुनाव परिणामों से कहीं ज्यादा हो सकता है.बिहार के कुढ़नी विधानसभा उपचुुनाव के नतीजों का असर दिल्ली तक होगा इसमें कोई दो राय नहीं है. इस जीत के जरिए क्या बीजेपी ने जातिगत समीकरणों के बीच जीत का फॉर्मूला भी ढूंढ लिया है. बिहार में हमेशा से ही ये माना जा रहा था कि जेडीयू-आरजेडी के मिल जाने से बीजेपी के लिए बिहार में 2024 में बड़ी मुश्किल होने वाली है. लेकिन इस कुढ़नी की जीत ने जातीय समीकरणों के बीच ही एक नया जातीय फॉर्मूला भी निकला है.