Kurhani Vidhan Sabha: 'गणित' से समझें कुढ़नी विधानसभा सीट का 'हिसाब-किताब', दावेदारों में इन नामों की चर्चा
Bihar By Election 2022: इस सीट से आरजेडी के टिकट पर अनिल सहनी जीते थे. घोटाले में फंसने की वजह से सदस्यता गई है जिसकी वजह से उपचुनाव हो रहा है.
![Kurhani Vidhan Sabha: 'गणित' से समझें कुढ़नी विधानसभा सीट का 'हिसाब-किताब', दावेदारों में इन नामों की चर्चा Kurhani Vidhan Sabha Seat By Election 2022 Candidates Name of BJP RJD Mahagathbandhan ann Kurhani Vidhan Sabha: 'गणित' से समझें कुढ़नी विधानसभा सीट का 'हिसाब-किताब', दावेदारों में इन नामों की चर्चा](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/11/08/2e9f797af0aac196f01226eaaf999aa51667898944361169_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
पटना से गंगा पुल पार करने के बाद हाजीपुर होते हुए जब मुजफ्फरपुर की तरफ बढ़ेंगे तो जिले की सीमा कुढ़नी विधानसभा सीट से ही शुरू होती है. मुजफ्फरपुर शहर से पहले नेशनल हाईवे 77 पर दोनों तरफ कुढ़नी विधानसभा का इलाका आता है. वैशाली जिले की सीमा से सटा कुढ़नी खेती किसानी वाला इलाका है. पांच दिसंबर को इस सीट पर विधानसभा का उपचुनाव है. आइए समझते हैं इस सीट के बारे में और किन नामों को लेकर चर्चा है उसे भी जानते हैं.
सबसे पहले यह जान लीजिए कि 2020 में चुनाव हुआ तो इस सीट से आरजेडी के टिकट पर अनिल सहनी जीते थे. घोटाले में फंसने की वजह से सदस्यता गई है जिसकी वजह से उपचुनाव हो रहा है. कुढ़नी का ये उपचुनाव ऐसे वक्त में हो रहा है जब बिहार में दो सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं और सामाजिक समीकरणों को लेकर पॉलिटिकल पंडित जीत हार का पोस्टमार्टम करने में जुटे हैं.
टिकट का फैसला बीजेपी के लिए मुसीबत
कुढ़नी में बीजेपी का लड़ना तय है. उम्मीदवार कौन होगा इसको लेकर लॉबिंग चल रही है. पूर्व विधायक केदार गुप्ता यहां से टिकट के प्रबल दावेदार हैं, लेकिन बिहार की राजनीति में इन दिनों जिस भूमिहार वोट को लेकर भूचाल मचा है उस भूमिहार जाति से आने वाले शशि रंजन की दावेदारी ने बीजेपी के रणनीतिकारों को उलझा दिया है. शशि रंजन बिहार में बीजेपी युवा मोर्चा के प्रवक्ता हैं और इलाके में उन्होंने बाहरी बनाम स्थानीय के मुद्दे को हवा देकर अपनी दावेदारी को मजबूत किया है. कुढ़नी में टिकट का फैसला बीजेपी के लिए मुसीबत इसलिए है क्योंकि इसी साल की शुरुआत में मुजफ्फरपुर जिले की ही बोचहां सीट पर उपचुनाव में भूमिहारों की नाराजगी से बीजेपी उम्मीदवार की हार हो गई थी. तब बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन था.
बोचहां बिहार में बीजेपी से भूमिहारों की नाराजगी की प्रयोगशाला बना था. इसका असर गठबंधन टूटने से लेकर महागठबंधन मंत्रिमंडल और मोकामा में अनंत सिंह की जीत तक दिखा है. मुजफ्फरपुर जिले में भूमिहारों की नाराजगी की एक स्थानीय वजह भी है. असल में मुजफ्फरपुर शहर में भूमिहार जाति से आने वाले बीजेपी विधायक और मंत्री रहे सुरेश शर्मा 2020 में हार गए. इस हार की एक बड़ी वजह ये रही कि बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले वैश्य समुदाय ने इस सीट पर महागठबंधन के उम्मीदवार विजेंद्र चौधरी को वोट किया. मुजफ्फरपुर और कुढ़नी विधानसभा आसपास है लिहाजा इस समीकरण ने कुढ़नी पर भी असर डाला. कुढ़नी में तब बीजेपी से वैश्य उम्मीदवार केदार गुप्ता थे. भूमिहारों ने मुजफ्फरपुर का बदला कुढ़नी में बीजेपी के वैश्य उम्मीदवार के खिलाफ वोट देकर ले लिया.
केदार गुप्ता की दावेदारी का ग्राफ इसलिए गिर गया है क्योंकि अभी गोपालगंज के उपचुनाव में आरजेडी ने वैश्य जाति के जिस मनोहर गुप्ता को उम्मीदवार बनाया था वो भले ही दो हजार वोट से हार गये लेकिन यहां के वैश्य वोटरों ने मनोहर गुप्ता को वोट देकर बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है. बीजेपी क्या करेगी? सुरेश शर्मा इस उप चुनाव में क्या करेंगे? भूमिहारों का रुख कैसा रहेगा? ये काफी कुछ टिकट बंटवारे पर निर्भर करेगा.
जेडीयू से मनोज कुशवाहा दावेदार
2020 में बीजेपी और नीतीश का गठबंधन था और सीट बीजेपी के कोटे में गई थी लिहाजा इस सीट से जेडीयू विधायक रहे मनोज कुशवाहा को टिकट नहीं मिला. इस बार उप चुनाव में जेडीयू और आरजेडी का गठबंधन है. लिहाजा मनोज कुशवाहा जेडीयू से टिकट के दावेदार हैं. मनोज कुशवाहा ने पिछले दिनों जेडीयू के बड़े नेता विजय चौधरी से मुलाकात की थी. माना जा रहा है कि जेडीयू मनोज कुशवाहा के लिए यहां दावेदारी कर सकती है.
इसकी वजह ये है कि आरजेडी के अनिल सहनी की विधायकी घोटाले के आरोप में गई है. अनिल सहनी के परिवार से किसी को टिकट मिलता है तो सहानुभूति का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. आरजेडी किसी और को टिकट देता है तो करप्शन का मुद्दा उसके खिलाफ बैठेगा. ऐसे में नीतीश कुमार की पार्टी मनोज कुशवाहा को उतारकर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर सकती है. वैसे भी मनोज कुशवाहा एक तो स्थानीय हैं दूसरा वो कई बार यहां से जीत चुके हैं. मंत्री भी रहे हैं और छवि भी साफ नेता की है.
जातियों का बड़ा इफेक्ट
कुढ़नी में भूमिहार, कोइरी, मल्लाह, यादव वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. मुसलमान और वैश्य वोटर भी प्रभावशाली हैं. वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने यहां से चुनाव लड़ने का एलान किया है. एमआईएम ने भी उम्मीदवार उतारने का एलान किया है. जातियों का बड़ा इफेक्ट भी दिखेगा.
आरजेडी के टिकट के लिए पूर्व विधायक साधु शरण शाही के पोते नीलाभ कुमार भी कोशिश कर रहे हैं. चार बार विधायक रहे और 1990 में आखिरी बार जीते साधु शरण शाही इस सीट से आखिरी भूमिहार विधायक थे. 1995 में भूमिहार जाति के बाहुबली अशोक सम्राट निर्दलीय चुनाव लड़े थे और लालू की पार्टी के बसावन भगत जो कि कोइरी जाति के थे उनसे हारे थे. 2000 में एनडीए ने ब्रजेश ठाकुर को उतारा था जो बिपीपा के उम्मीदवार थे. ब्रजेश ठाकुर बालिका गृह कांड में जेल में बंद हैं. 2005-2015 तक मनोज कुशवाहा जेडीयू के विधायक रहे. 2015 में केदार गुप्ता बीजेपी से जीते. 2020 में अनिल सहनी आरजेडी के टिकट पर महज 712 वोट से विजयी हुए थे. कुढ़नी में मनियारी को प्रखंड बनाने की मांग के अलावा जलजमाव बड़े स्थानीय मुद्दे हैं. तीन लाख के आसपास वोटर हैं.
यह भी पढ़ें- Kurhani By Election Date: बिहार की कुढ़नी विधानसभा सीट पर उप चुनाव की तारीख का एलान, देखें डिटेल्स
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/e4a9eaf90f4980de05631c081223bb0f.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)