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चंद्रशेखर ही नहीं, लालू-नीतीश भी IAS पाठक से रहे चुके हैं परेशान; सनकी कहने पर सुशील मोदी को भेजा था नोटिस

2016 में नालंदा के हरनौत में केके पाठक के करीबी एसआई ने जेडीयू नेता के यहां छापा मारकर 168 बोतल शराब बरामद की. इस घटना से नीतीश कुमार की खूब किरकिरी हुई, जिसके बाद स्थानीय प्रशासन ने इसे साजिश बताया.

1990 बैच के आईएएस अधिकारी केके पाठक बिहार के सियासी और प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों सुर्खियों में है. पाठक नीतीश सरकार के 2 मंत्री चंद्रेशखर और रत्नेश सादा के रडार पर हैं. मंत्री चंद्रशेखर से तो विवाद इतना बढ़ गया कि खुद मुख्यमंत्री को सुलह के लिए आगे आना पड़ा है. 

यह पहली बार नहीं है, जब कोई बड़ा राजनेता केके पाठक से परेशान हैं. पाठक की हनक से पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव, पूर्व सांसद रघुनाथ झा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी मुश्किलें बढ़ा चुके हैं. 2015 में सनकी कहने पर पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी को पाठक ने लीगल नोटिस भेजा था. 

केके पाठक आबकारी, लघु जल संशाधन के बाद अब शिक्षा विभाग में बड़े पद पर हैं. आबकारी विभाग रहते हुए उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें अपने मातहतों को गाली देते नजर आए थे. दिलचस्प बात है कि पाठक पर इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई.

सियासी जानकारों की मानें तो केके पाठक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते अधिकारी हैं. महागठबंधन की सरकार बनने पर 2015 में पाठक को दिल्ली से नीतीश ने बुलाया था. इस स्टोरी में केके पाठक और उनसे जुड़े विवादों के बारे में विस्तार से जानते हैं...

केशव कुमार उर्फ केके पाठक कौन हैं?
1968 में जन्मे केशव कुमार पाठक ने शुरुआती पढ़ाई यूपी से की है. 1990 में पाठक की तैनाती कटिहार में हुई. इसके बाद गिरिडीह में भी एसडीओ रहे. पाठक का पहला विवाद गिरिडीह में ही सामने आया था. वे बेगूसराय, शेखपुरा और बाढ़ में भी एसडीओ पद पर तैनात रहे. 

1996 में पाठक पहली बार डीएम बने. उन्हें गिरिडीह की कमान मिली. राबड़ी शासन के दौरान पाठक को लालू यादव के गृह जिले गोपालगंज की जिम्मेदारी भी मिली. यहीं पर पाठक ने पहली बार सुर्खियां बटोरी. केके पाठक ने गोपालगंज में एमपीलैड फंड से बने एक अस्पताल का उद्घाटन सफाईकर्मी से करवा दिया.

यह फंड गोपालगंज के सांसद और राबड़ी देवी के भाई साधु यादव ने मुहैया कराया था. केके पाठक के इस रवैए से खूब बवाल मचा था. गोपालगंज में पाठक की हनक से आखिर में राबड़ी सरकार तंग आ गई और उन्हें वापस सचिवालय बुला लिया गया.

2005 में नीतीश कुमार की सरकार बनी तो केके पाठक को बड़ा ओहदा मिला. पाठक को बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (BIADA) का प्रबंध निदेशक बनाया गया. साल 2008 में हाईकोर्ट ने एक आदेश में पाठक पर 5000 का जुर्माना भी लगाया. 

पाठक बिहार आवास बोर्ड के सीएमडी भी रहे. नीतीश कुमार के करीबी अधिकारी अरुण कुमार के निधन के बाद शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी पाठक को सौंपी गई.

साल 2010 में पाठक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए. 2015 में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश ने उन्हें वापस बुलाया. 2015 में आबकारी नीति लागू करने में केके पाठक ने बड़ी भूमिका निभाई. 2017-18 में फिर से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए, जहां से 2021 में पदोन्नत होकर वापस लौटे.

2021 में फेम इंडिया मैगजीन ने भारत के 50 असरदार ब्यूरोक्रेट्स की एक सूची प्रकाशित की, जिसमें केके पाठक का भी नाम शामिल था. 

मंत्री चंद्रशेखर से विवाद क्यों, 2 वजहें...

1. विभाग में कद के हिसाब से अधिकारियों को नहीं मिल रहा काम
शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के आप्त सचिव ने एक पीत पत्र जारी कर कहा कि विभाग में राजपत्रित अधिकारियों को उनके पद के अनुसार काम नहीं दिए जा रहे हैं. विभाग के अधिकारियों से उनके पद से नीचे स्तर के काम लिए जा रहें हैं, इसलिए इस तरह की कार्यशैली में सुधार लाने की जरूरत है.

पत्र में कहा गया कि शिक्षा विभाग में ज्ञान से अधिक चर्चा कड़क, सीधा करने, नट बोल्ट टाइट करने, शौचालय सफाई, झाड़ू मारने, ड्रेस पहनने, फोड़ने, डराने, पैंट गीली करने, नकेल कसने, वेतन काटने, निलंबित करने, उखाड़ देने, फाड़ देने जैसे शब्दों का हो रहा है.

मंत्री के आप्त सचिव ने इस पत्र के जरिए सीधे तौर पर केके पाठक को निशाने पर लिया. इसके तुरंत बाद शिक्षा विभाग ने मंत्री के आप्त सचिव पर कड़ा रूख अपनाया. शिक्षा विभाग के निदेशक ने आप्त सचिव को विभाग में एंट्री पर रोक लगा दी.


चंद्रशेखर ही नहीं, लालू-नीतीश भी IAS पाठक से रहे चुके हैं परेशान; सनकी कहने पर सुशील मोदी को भेजा था नोटिस

मीडिया रिपोट्स के मुताबिक पाठक के विभाग में आने के बाद से ही मंत्री की नहीं सुनी जा रही थी. शुरुआती कोशिश के बाद मंत्री ने अपने आप्त सचिव से पीत पत्र लिखवा दिया, जिसके बाद पूरा बवाल मचा. 

2. मंत्री को कंट्रोल में करने के लिए भेजे गए हैं अधिकारी
आरजेडी के एमएलसी सुनील कुमार सिंह ने मीडिया को बताया कि नीतीश कुमार इसी तरह काम करते हैं, जब कोई मंत्री अपने रास्ते से भटक जाते हैं या इधर-उधर करने लगते हैं तो नीतीश उनके विभाग में पाठक जैसे अधिकारियों को भेजते हैं.

सिंह के मुताबिक शिक्षा विभाग मिलने के बाद से चंद्रशेखर काम के बजाय अनर्गल बयानबाजी कर रहे थे, जो गलत था. उन्हीं को कंट्रोल में करने के लिए नीतीश कुमार ने पाठक को भेज दिया.

शिक्षा मंत्री इस बात को समझ नहीं पाए, इसलिए पूरा विवाद शुरू हुआ है. इधर, गुरुवार को मुख्यमंत्री आवास पर शिक्षा मंत्री और केके पाठक को बुलाकर नीतीश ने मामला शांत कराने की कोशिश की. 

आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने पत्रकारों को बताया कि मंत्री चंद्रशेखर मेरे पास आए थे, जिसके बाद मैंने नीतीश कुमार से पूरे मामले को देखने के लिए कहा है. 

केके पाठक के विरोध में 2 बयान...

रत्नेश सादा, मंत्री (बिहार)- केके पाठक सामंती विचारधारा को लागू करना चाहते है. महादलित टोले के शिक्षक जो महादलित के बच्चों को पढ़ाते हैं, उसको लेकर नई गाइडलाइन जारी की है. मैंने इसका विरोध किया है और कहा है कि इस तरह का फरमान सही नहीं है. शिक्षा विभाग में बैठे अधिकारी अब मनमानी पर उतर आए हैं.

अजय आलोक, बीजेपी नेता- बददिमाग मंत्री और सनकी अधिकारी रहेगा तो दोनों में ठनेगी ही. यह देखना नीतीश का काम है कि मंत्री और अधिकारी के बीच सब ठीक रहे, लेकिन नीतीश कुमार ने बिहार को बर्बाद कर दिया है. हर विभाग की हालत ऐसी है.

अब आईएएस पाठक के 3 किस्से

1. चुनाव में स्थानीय सांसद को कर दिया जिला बदर- साल 2005 और महीना था फरवरी का. बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था. लालू यादव सत्ता वापसी की तैयारी में थे, लेकिन उनके गृह जिले में ही केके पाठक मुश्किलें बढ़ा रहे थे. पाठक ने गोपालगंज के सांसद और लालू यादव के साले साधु यादव पर जिला बदर की कार्रवाई कर दी. 

साधु यादव पर पाठक की यह कार्रवाई देशभर में छायी रही. यादव ने सारण के कमिश्नर के पास अपील की और आदेश पर स्टे लगवा लिया, लेकिन पाठक ने आयोग में शिकायत कर दी. चुनाव आयोग ने पाठक के पक्ष में फैसला दिया और साधु यादव को पूरे चुनाव में गोपालगंज से बाहर रहना पड़ा. गोपालगंज की 6 में से 3 सीट पर ही राजद जीत दर्ज कर पाई.

2005 के चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. अगस्त 2005 में राज्यपाल ने केके पाठक की बदली कर दी. 

2. अधिकारियों को गाली देने का वीडियो आया- बिहार में जहरीली शराब से होने वाली मौतों ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया, जिसके बाद नीतीश कुमार ने नवंबर 2021 में उन्हें आबकारी विभाग की जिम्मेदारी सौंपी. आबकारी विभाग के सचिव बनते ही पाठक मीडिया के सुर्खियों में रहे.

इसी बीच उनका एक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें अपने मातहतों को गाली दे रहे थे. इस वीडियो ने नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ा दी. वीडियो वायरल होने के बाद बिहार प्रशासनिक संघ भी उनके विरोध में उतर गए. इस वीडियो के कुछ दिन बाद पाठक का एक और वीडियो सामने आ गया.

इस वीडियो में जिला स्तर के अधिकारियों को पाठक भला-बुरा कहते हुए सुने जा रहे थे. हालांकि, उनकी बदजुबानी पर नीतीश कुमार ने कोई कार्रवाई नहीं की. जून 2023 में पाठक को शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी दे दी गई.

3. सनकी कहने पर सुशील मोदी को नोटिस भेजा- बिहार में आबकारी नीति के विरोध में साल 2016 में विधानपरिषद में तत्कालीन विपक्ष के नेता सुशील मोदी ने केके पाठक को सनकी कह दिया. इस पर पाठक ने अपने वकील के जरिए लीगल नोटिस भिजवा दिया. 


चंद्रशेखर ही नहीं, लालू-नीतीश भी IAS पाठक से रहे चुके हैं परेशान; सनकी कहने पर सुशील मोदी को भेजा था नोटिस

(Photo- ANI)

पाठक ने सुशील मोदी से कहा कि आपका यह बयान पूरी तरह गलत है. माफी मांगिए नहीं तो कार्रवाई की जाएगी. बाद में सुशील मोदी ने विधानपरिषद में नीतीश कुमार के सामने इस मुद्दा को उठाया. इतना ही बीजेपी नेताओं ने विधानपरिषद में पाठक के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव दिया.

बीजेपी नेताओं का कहना था कि सदन और उसके बाहर की चर्चा पर नोटिस भेजना गलत है. हालांकि, नालंदा में शराब कांड के बाद केके पाठक को विभाग से हटा दिया गया, जिसके बाद मामला शांत हुआ. 

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