सुप्रीम कोर्ट से मानहानि केस में सजा पर रोक लगने के बाद राहुल गांधी ने पहली बड़ी मुलाकात बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव से की. शुक्रवार शाम मीसा भारती के सरकारी आवास पर संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और बिहार अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ राहुल आरजेडी सुप्रीमो से मिलने पहुंचे थे.
मीसा आवास पर तेजस्वी यादव और अब्दुल बारी सिद्दीकी पहले से मौजूद थे. आरजेडी और कांग्रेस नेताओं के बीच करीब 1 घंटे तक बंद कमरे में बातचीत हुई, जिसके बाद से सियासी अटकलों का बाजार गर्म है. राजनीतिक गलियारों में राहुल और लालू के बीच मुलाकात के मायने निकाले जा रहे हैं.
लालू-राहुल के बीच मुलाकात को सीधे बिहार में कैबिनेट विस्तार से जोड़ा जा रहा है. कांग्रेस बिहार में लंबे समय से कैबिनेट विस्तार की मांग कर रही है. पार्टी की कोशिश मुंबई में INDIA गठबंधन की बैठक से पहले कैबिनेट विस्तार कराने की है.
खुद राहुल गांधी भी पटना में विपक्षी मोर्चे की मीटिंग में कैबिनेट विस्तार की मांग उठाई थी. राहुल ने सीधे नीतीश से पूछा था कि कैबिनेट विस्तार कब कर रहे हो? हालांकि, इस घटना के 42 दिन बीत जाने के बाद भी बिहार में मंत्रिमंडल फेरबदल नहीं हो पाया है.
कैबिनेट विस्तार पर बयानों की क्रोनोलॉजी
23 जून 2023- पटना में विपक्षी दलों की मीटिंग खत्म होने के बाद राहुल गांधी ने नीतीश कुमार से पूछा कि कैबिनेट विस्तार क्यों नहीं कर रहे हैं? इस पर नीतीश हक्का-बक्का रह गए. उन्होंने राहुल को आश्वासन दिया कि जल्द ही कैबिनेट विस्तार कर लिया जाएगा.
22 जुलाई 2023- नीतीश कैबिनेट विस्तार पर बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि डेट फाइनल का काम मुख्यमंत्री को है. मुख्यमंत्री जब चाहेंगे, तब कैबिनेट का विस्तार होगा. सही तारीख नीतीश कुमार ही बता पाएंगे.
26 जुलाई 2023- पत्रकारों ने जब कैबिनेट विस्तार का सवाल मुख्यमंत्री से पूछा तो नीतीश कुमार ने गेंद तेजस्वी के पाले में डाल दिया. नीतीश ने कहा कि यही जवाब दे सकते हैं. जब हमारे पास फाइनल नाम आ जाएगा, तब हम राजभवन भेज देंगे.
बिहार में कैबिनेट विस्तार पर क्यों फंसा है पेंच, 3 वजहें...
कांग्रेस 2 से कम पद पर मानने को तैयार नहीं- जुलाई 2022 में नीतीश कुमार बीजेपी से नाता तोड़कर महागठबंधन में शामिल हो गए. उस वक्त सरकार को 164 विधायकों का समर्थन प्राप्त था, लेकिन वामदलों ने सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया.
इसके बाद सरकार में शामिल विधायकों की संख्या 150 हो गई. कांग्रेस का कहना है कि मंत्रिमंडल में आनुपातिक भागीदारी मिले. नीतीश सरकार में मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री समेत कुल 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं. यानी औसतन हर 5 विधायक पर एक मंत्री पद.
कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं और पार्टी का तर्क है कि उसे कम से कम 4 मंत्री पद मिलना चाहिए. आरजेडी 3 से ज्यादा देने को तैयार नहीं है. आरजेडी विधानपरिषद् की सीट और लेफ्ट पार्टियों की सीट को जोड़कर फॉर्मूला तैयार कर रही है.
आरजेडी का कहना है कि लेफ्ट के हिस्से वाले मंत्रीपद कांग्रेस को कैसे दिया जा सकता है?
सरकार में बड़े विभागों पर भी कांग्रेस का दावा- कांग्रेस विभाग बंटवारे में भी उचित हिस्सेदारी की मांग कर रही है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस 2015 के फॉर्मूले के तहत विभागों का बंटवारा चाह रही है.
2015 में महागठबंधन की सरकार बनने पर कांग्रेस को शिक्षा, राजस्व और आबकारी जैसे मलाईदार विभाग मिले थे.
2022 में कांग्रेस के हिस्से मतस्य कल्याण और पंचायती राज जैसे छोटे विभाग आए हैं. कांग्रेस की नजर राजस्व, शिक्षा या ग्रामीण कार्य विभाग पर है. यह तीनों विभाग वर्तमान में आरजेडी के पास है. कांग्रेस का कहना है कि विधानसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद भी आरजेडी-जेडीयू ने बांट लिया.
इसी तरह विधानपरिषद् में भी हुआ. सरकार में कांग्रेस को कम से कम बेहतरीन हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.
नीतीश नहीं कर रहे हैं सीधा हस्तक्षेप- नीतीश कुमार 2015 की तरह इस बार कैबिनेट का कोई फॉर्मूला खुद तैयार नहीं कर रहे हैं. 2020 में बीजेपी के साथ बने फॉर्मूले पर ही काम कर रहे हैं. गठबंधन के शुरुआत में ही उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था.
नीतीश ने बीजेपी कोटे के सारे विभाग और मंत्रियों का पद आरजेडी को दे दिया. 2015 में नीतीश की वजह से ही कांग्रेस को कैबिनेट में 4 पद और बड़े विभाग मिले थे. विधानसभा में नीतीश कुमार ने खुद इसका जिक्र भी किया था.
जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार ने फॉर्मूला सुलझाने से खुद को दूर कर लिया है. इसलिए आरजेडी सियासी दबदबा बनाने में कामयाब हो गई है.
कांग्रेस की रणनीती से आरजेडी हो गई थी हैरान
अगस्त 2022 में कैबिनेट विस्तार के वक्त कांग्रेस को 2 पद दिया गया था. जानकार सूत्रों के मुताबिक उस वक्त आरजेडी को उम्मीद थी कि कांग्रेस 2 में से एक ब्राह्मण चेहरे को कैबिनेट में अपने कोटे से शामिल करेगी.
कांग्रेस ने आरजेडी को इसका आश्वासन भी दिया था, लेकिन ऐन मौके पर पार्टी ने अपनी रणनीति बदल दी. कांग्रेस ने ब्राह्मण के बदले एक मुस्लिम और एक दलित को अपने कोटे से कैबिनेट में शामिल करा दिया.
आरजेडी और कांग्रेस कोटे से नीतीश कैबिनेट में एक भी ब्राह्मण मंत्री नहीं बनाए गए, जिसके बाद तेजस्वी के ए टू जेड अभियान पर सवाल उठे. इतना ही नहीं, कांग्रेस ने उस वक्त ही 4 मंत्री पद मिलने की घोषणा कर दी.
जब कांग्रेस हाईकमान के दबाव में आरजेडी ने बदला फैसला
1. 2019 के चुनाव में आरजेडी कांग्रेस को 5 से ज्यादा सीट देने को तैयार नहीं थी, लेकिन कांग्रेस हाईकमान एक्टिव हो गई. गांधी परिवार के करीबी अहमद पटेल खुद सीट शेयरिंग मसला को सुलझाने में जुट गए. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें मिली. कांग्रेस ने एक सीट किशनगंज में जीत भी दर्ज की.
2. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 से ज्यादा सीट देने को आरजेडी राजी नहीं थी. पार्टी का तर्क था कि कांग्रेस के पास जिताऊ उम्मीदवार नहीं हैं. कांग्रेस की ओर से खुद प्रियंका गांधी ने सीट शेयरिंग को लेकर तेजस्वी यादव से बात की.
कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया. बदले में 70 सीटें झटक ली.