क्या मनमोहन सरकार में रेल मंत्रालय लेना लालू यादव को भारी पड़ गया? इसकी चर्चा इसलिए, क्योंकि हाल ही में लैंड फॉर जॉब स्कैम में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़ा फैसला लिया है. मंत्रालय ने इस मामले में सीबीआई को चार्जशीट फाइल करने की मंजूरी दे दी है. 


मंत्रालय के इस आदेश के बाद लैंड फॉर जॉब स्कैम (नौकरी के बदले जमीन) केस में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई जारी रहेगी. 


हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब रेल मंत्री रहने की वजह से लालू यादव मुश्किलों में घिरे हैं. लैंड फॉर जॉब स्कैम में ही सीबीआई लालू के करीबी भोला यादव को गिरफ्तार कर चुकी है. भोला यादव लालू यादव के ओएसडी रह चुके हैं.


2004 में रेल मंत्री बने लालू यादव की 2005 में बिहार से सरकार चली गई, तब से उनके परिवार का कोई भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया. 


लालू यादव कैसे बने थे रेल मंत्री?
पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान अपनी जीवनी 'पासवान: संकल्प, साहस और संघर्ष' में बताते हैं- प्रधानमंत्री पद के लिए जब मनमोहन सिंह का नाम फाइनल हो गया, तो उसी रात मुझे 10 जनपथ से सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव का फोन आया.


पासवान आगे बताते हैं- जब मैं 10 जनपथ गया, तो ड्रांइग रूम में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और अहमद पटेल बैठे थे. मनमोहन सिंह ने मुझे मंत्रालय चुनने के लिए कहा. ऊपर के सभी मंत्रालय रिजर्व कर लिए गए थे, तो मैंने रेल मंत्रालय चुना. फिर मैं इसके बाद घर आ गया.


पासवान के मुताबिक शपथ ग्रहण की सुबह कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने फोनकर उनको बताया कि रेल मंत्रालय लालू यादव ने कांग्रेस पर दबाव डालकर ले लिया है. लालू अपने लिए पहले गृह या रक्षा मंत्रालय मांग रहे थे. यूपीए की सरकार में आरजेडी सीपीएम के बाद दूसरा सबसे बड़ा सहयोगी दल था. 


लालू पार्टी के पास लोकसभा में कुल 24 सांसद थे. रेल मंत्रालय की वजह से रामविलास पासवान ने कांग्रेस को खूब खरी-खोटी सुनाई. 


हालांकि, वीपी सिंह और अहमद पटेल के हस्तक्षेप के बाद रामविलास दूसरे मंत्रालय लेने पर राजी हो गए. मनमोहन सरकार में पासवान को रसायन और उर्वरक मंत्रालय के साथ इस्पात मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली.


रेल मंत्रालय लालू के लिए क्यों पड़ा भारी?


1. पासवान का साथ छूटा, राबड़ी की सरकार गई
लालू के रेल मंत्री बनने के बाद रामविलास पासवान ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी. रामविलास की जीवनी में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव लिखते हैं- लोजपा ने इसे सम्मान के साथ जोड़ लिया. 


इसका नतीजा यह हुआ कि 2004 में आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली लोजपा ने 2005 में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. 2004 के लोकसभा चुनाव में लोजपा को 8.19 प्रतिशत वोट मिले थे, जो कांग्रेस से काफी ज्यादा था. 


रामविलास पासवान की गिनती उस वक्त देश और बिहार के बड़े दलित नेता में होती थी. मंत्री बनने के बाद रामविलास पासवान ने बिहार में राबड़ी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लोजपा ने बिहार की 243 में से 172 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. 


रामविलास का कैंपेन काम कर गया और बिहार में पहली बार लोजपा को विधानसभा की 29 सीटों पर जीत मिली. लोजपा के उभार ने सत्ता के समीकरण को गड्ड-मड्ड कर दिया. आरजेडी 75 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई, लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं जुटा पाई. 


एनडीए गठबंधन का भी यही हाल था. लालू ने रामविलास से संपर्क साधा, लेकिन पासवान की शर्तों ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया. आखिर में राज्यपाल बूटा सिंह को विधानसभा भंग करने की घोषणा करनी पड़ी. 


अक्टूबर के चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला और 15 साल बाद बिहार से लालू परिवार की सत्ता चली गई. इसके बाद बिहार में लालू परिवार सत्ता में तो आई, लेकिन उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली. 


लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव अभी नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं.


2. अब लैंड फॉर जॉब स्कैम का जिन्न बाहर निकला
चारा घोटाले में सजायफ्ता लालू यादव अभी जमानत पर बाहर हैं. सीबीआई इस मामले में अब तक 2 चार्जशीट पहले ही दाखिल कर चुकी है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक यह मामला राजद प्रमुख लालू प्रसाद के 2004 से 2009 के बीच रेल मंत्री रहने के दौरान कथित तौर पर उपहार में दी गई या बेची गई जमीन के बदले रेलवे में की गई नियुक्तियों से जुड़ा है. 


सीबीआई का आरोप है कि लालू यादव के समय में रेलवे के ग्रुप-डी में भर्ती के नियमों तथा प्रक्रियाओं का उल्लंघन कर नियुक्तियां की गई है.


आरोप है कि नियुक्ति के लिए कोई विज्ञापन या सार्वजनिक नोटिस जारी नहीं किया गया, लेकिन पटना के कुछ निवासियों को मुंबई, जबलपुर, कोलकाता, जयपुर तथा हाजीपुर में स्थित विभिन्न जोनल रेलवे में स्थानापन्न (सब्स्टिट्यूट) के रूप में नियुक्त किया गया.


इसके बदले लालू परिवार को कम कीमत में पटना में जमीन मिली है. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के मुताबिक लालू परिवार के पास 121 ऐसे भूखंड है, जो गलत तरीके से अर्जित की गई है.


इस मामले में ईडी भी मनी लॉन्ड्रिंग एंगल से जांच कर रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि कभी भी लालू परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी हो सकती है. लालू परिवार के कई सदस्य भी इसकी आशंका जता चुके हैं.


मनमोहन की पहली सरकार में आरजेडी का था दबदबा
2004 में बिहार-झारखंड से लोकसभा की 24 सीटें जीतने वाली आरजेडी का मनमोहन सरकार में दबदबा था. मनमोहन कैबिनेट में 2004-09 तक आरजेडी के कुल 9 मंत्रियों को जगह मिली थी. इनमें लालू यादव, रघुवंश प्रसाद और प्रेमचंद्र गुप्ता को कैबिनेट स्तर का मंत्री बनाया गया था. 


वहीं तसलिमुद्दीन, कांति सिंह, अली अशरफ फातमी, रघुनाथ झा, जय प्रकाश यादव और अखिलेश प्रसाद सिंह को राज्य मंत्री बनाया गया था. आरजेडी को रेल, कंपनी और ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण महकमा मिला था. 


हालांकि, 2009 में कांग्रेस ने लालू यादव को रेल मंत्रालय  देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद लालू सरकार में शामिल नहीं हुए. 2009 में लालू यादव की पार्टी को लोकसभा की सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिली थी. 


2009 में लालू को बदले तृणमूल के ममता बनर्जी को रेल मंत्रालय का प्रभार मिला था.